‘किरा’ नामक जाति ने ब्रह्मपुर पर आक्रमण कर दिया

इस बर्बादी से लाभ उठाने के उद्देश्य से उत्तर की ओर से एक ‘किरा’ नामक जाति ने ब्रह्मपुर पर आक्रमण कर दिया। उन लोगों ने राजा को मार दिया और राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। ये किर कौन थे? इसके बारे में ओरिल स्टायन का मत है कि ये कश्मीर से पूर्व की ओर बसने वाले पर्वतीय तिब्बती या यारकंदी हो सकते हैं…

गतांक से आगे …

लक्ष्मी वर्मन (लगभग 800 ई.):

 यह राजा थोड़े ही समय राज कर सका। इसके राज्यकाल में हैजा और महामारी फैल गई। इससे बहुत लोग मर गए और जनसंख्या बहुत घट गई। इस बर्बादी से लाभ उठाने के उद्देश्य से उत्तर की और से एक ‘किरा’ नामक जाति ने ब्रह्मपुर पर आक्रमण कर दिया।

उन लोगों ने राजा को मार दिया और राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। ये किर कौन थे? इसके बारे में ओरिल स्टायन का मत है कि ये कश्मीर से पूर्व की ओर बसने वाले पर्वतीय तिब्बती या यारकंदी हो सकते हैं। उस समय उन्होंने अपना विस्तार कांगड़ा में ‘किरग्राम’ अर्थात बैजनाथ तक बढ़ा लिया था।

ब्रह्मपुर में यह उथुल-पुथल देखकर कुल्लू के शरणार्थी राजा श्री जरेश्वर पाल ने बुशहर से सहायता लेकर ब्रह्मपुर की सेनाओं को कुल्लू से खदेड़ कर अपने राज्य को फिर उनसे वापस ले लिया। जब राजा लक्ष्मी वर्मन मारा गया तो उस समय उसके कोई संतान नहीं थी, लेकिन रानी गर्भवती थी।

अतः मंत्रियों तथा पुरोहितों ने शत्रु के भय से रानी को पालकी में बैठाया और ब्रह्मपुर से पूर्व की ओर भाग गए। जब वह देओल के पास गड़ोह गांव पहुंचे तो रानी को प्रसव-पीड़ा होने लगी। रानी दिशा किनारे का बहाना बनाकर पालकी से उतर गई और पास की एक गुफा में चली गई। वहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसे वहीं छोड़कर वह वापस पालकी के पास आई। पालकी उठाने वालों को कुछ संदेह हुआ। उन्होंने मंत्री और पुरोहित से बात की। रानी से पूछताछ की गई पर उसने कोई उचित उत्तर नहीं दिया। अंत में मंत्री और पुरोहित ने रानी को कहा कि तुम्हारे पास हमारी अमानत थी और इसीलिए तुम्हें हम पालकी में उठा लाए थे। इस पर रानी ने सच-सच कह दिया। सब लोग उस गुफा के पास गए। देखा कि बच्चा वहां पर ठीक से है और उसके चारों ओर जंगली चूहे (स्थानीय बोली में मुशे) एकत्रित हो रहे थे।

यह देखकर सब लोग प्रसन्न हुए और बच्चे को उठाकर ले आए। वहां से वे लोग कांगड़ा के इलाका बंगाहल में आए और रानी ने एक ब्राह्मण के घर रहना आरंभ किया। रानी ने उस ब्राह्मण को अपना गुरु बनाया। रानी तथा उसका पुत्र, जिनका नाम उसने मुशान वर्मन रखा, आठ नौ वर्ष तक उसी के घर में रहे, परंतु रानी ने अपने घर-बार का भेद ब्राह्मण को नहीं दिया था। मुशा वर्मन नामकरण उन चुहों के कारण ही हुआ।

-क्रमशः