भाजपा काडर नाराज क्यों?

राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों से भाजपा काडर का एक पक्ष मन ही मन गदगद है। ऐसी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक है। काडर के चेहरे फोन पर आपस में बधाइयां बांट रहे हैं। वे आलाकमान का ‘अहंकार’ चूर होने से संतुष्ट और प्रसन्न हैं। कई काडर नेताओं ने हमसे अपनी महसूसन साझा की। दरअसल काडर ही भाजपा की बुनियादी ताकत रहा है। इस काडर में संघ और उसके सहयोगी संगठनों के सदस्य भी शामिल हैं। काडर की संख्या करोड़ों में है। चुनाव के हर बूथ पर काडर ही मौजूद रहता है। पन्ना प्रमुखों की बात की जाती रही है। यानी मतदाता सूची का एक-एक पन्ना काडर के कुछ हाथों में थमा दिया जाता है और अपेक्षा की जाती है कि मतदाताओं के वोट भाजपा के पक्ष में ही सुनिश्चित किए जाएं। भाजपा के जमीनी स्तर के चेहरे घर-घर, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुंच कर वोट पक्का करने की कोशिश करते हैं। यही काडर बागी उम्मीदवारों को चुनाव न लड़ने की सलाह देते हैं और विरोधी को पार्टी-हित में चुनावी नामांकन वापस लेने का आग्रह करते हैं। निष्कर्ष यह है कि भाजपा का प्रतिबद्ध कार्यकर्ता ही चुनावी विजय का बुनियादी आधार रहा है। तो सवाल है कि इन चुनावों में काडर के बावजूद भाजपा क्यों हारी? क्या काडर निष्क्रिय रहा या उसे उपेक्षित किया गया? अथवा काडर अपने राजनीतिक अभियान में नाकाम रहा? चुनावी पराजय के बावजूद संगठन से जुड़े नेताओं का एक तबका गदगद क्यों है? क्या यह भाजपा के भीतर का ‘छिपा यथार्थ’ है कि काडर ही पार्टी की हार से प्रसन्न है? इन सवालों की अनदेखी नहीं की जा सकती। संगठन के नेता अनौपचारिक बातचीत में मान रहे हैं कि इन चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण इतने निम्न स्तर के रहे कि उन्हें प्रधानमंत्री के आह्वान नहीं माना जा सकता। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ‘अहंकार’ में इतना डूबे हैं कि संगठन के महत्त्वपूर्ण नेताओं को भी मुलाकात का वक्त नहीं देते। कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को बैठकों के दौरान फटकार भी देते हैं। काडर अमित शाह का ‘गुलाम’ है क्या? कमोबेश इन चुनाव नतीजों ने अमित शाह की ‘चाणक्यगीरी’ का भ्रम भी तोड़ दिया है। गदगद काडर के कुछ सूत्रों ने यहां तक खुलासा किया है कि आदिवासियों के बीच सक्रिय ‘बनवासी कल्याण आश्रम’ एक विश्वस्तरीय संगठन है। उसके एक महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री मोदी आज तक खामोश हैं। नतीजतन आदिवासियों के बीच स्पष्ट संकेत गया कि भाजपा उनकी हितचिंतक पार्टी नहीं है, लिहाजा आदिवासियों  ने मप्र और छत्तीसगढ़ में व्यापक स्तर पर भाजपा के विरोध में वोट दिए। इसी तरह अनुसूचित जाति / जनजाति, पिछड़ों, शहर और सवर्णों आदि ने भी भाजपा के खिलाफ जमकर और संगठित तौर पर वोट दिए। नतीजा सामने है। अब प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह काडर की नाराजगी के मद्देनजर कुछ कोशिशें कर रहे हैं। अमित शाह ने पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक कर चिंतन किया है। यही नहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्षों, प्रभारियों, संगठन नेताओं, कोर ग्रुप के नेताओं, जिला अध्यक्षों आदि की एक बैठक 15 दिसंबर को दिल्ली में बुलाई गई है। शायद प्रधानमंत्री भी उसमें मौजूद रह सकते हैं। काडर से उन युवाओं का डाटा भी मांगा गया है, जो स्मार्ट फोन रखते हैं, इंटरनेट और मोबाइल का नियमित इस्तेमाल करते हैं, जिनके पास बाइक आदि वाहन भी हैं। एक वोट बैंक के तौर पर उस युवा जमात को लामबंद करने की योजना है। प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा सांसदों को संबोधित करते हुए विमर्श किया है। अब हिंदी पट्टी के तीन महत्त्वपूर्ण राज्यों की सत्ता गंवाने के बाद 2019 की चुनौती ‘पहाड़’ जैसी लग रही है। भाजपा के पास मात्र 4 महीने शेष हैं। मई में तो चुनाव होने ही हैं। इस दौरान कुछ सहयोगी दलों के भीतर से आवाज उठनी शुरू हो गई है कि उन्हें 2019 के मद्देनजर 2014 वाला नरेंद्र मोदी ही चाहिए। दबाव और चुनौतियों के दौर में पार्टी काडर ही नाराज रहेगा, तो 2019 का लक्ष्य दूर भी खिसक सकता है।