राजनीति में धूमिल सच्चाई

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

सच्चाई को इसलिए भी जानना जरूरी है क्योंकि प्रधानमंत्री को लेकर यह दावा किया जाता रहा है कि वह पूरी तरह ईमानदार हैं तथा अब तक उन्हें भ्रष्टाचार के किसी भी केस में संलिप्त नहीं पाया गया है। वर्ष 2014 में आम चुनाव इस सवाल पर लड़ा गया था कि भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया जाएगा तथा इस मसले ने जनता को भी प्रभावित किया था।  वास्तव में मोदी ने पारदर्शिता के मसले पर चुनाव जीता था जिनका दावा था कि देश को भ्रष्टाचार मुक्त शासन उपलब्ध कराया जाएगा…

भारत में इस तरह का कोहरेदार राजनीतिक वाद-विवाद पहले कभी नहीं देखा गया जिस तरह आजकल देखा जा रहा है। इस धुंधलके में सत्य कहीं शिकार हो गया है तथा किसी को भी यह पता नहीं है कि वास्तविकता क्या है। जब हमने स्वतंत्रता हासिल की तो विभिन्न नेताओं में मतभेद देखे गए तथा आजादी के बाद जैसा कि इंडियन नेशनल कांग्रेस का उदाहरण है, इसमें विभाजन हो गया। सुभाष चंद्र बोस, जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया तथा अन्य नेताओं ने अपने-अपने लक्ष्य पूरे करने के लिए विभिन्न समूह बना लिए। भगत सिंह और उनके साथी पहले ही संघर्ष की विभिन्न मुद्रा में थे। आजादी की प्राप्ति के बाद भारत के विभिन्न नेताओं जैसे नेहरू, पटेल व आजाद में वैचारिक विविधता देखी गई। इन नेताओं ने अलग-अलग मत प्रकट किए। भारत के राष्ट्रपति के रूप में राजेंद्र प्रसाद के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मतभेद थे। इस तरह के बहु अवधारणात्मक वातावरण में ये नेता एक-दूसरे से अलग विचार प्रकट करते रहे, किंतु इन्होंने एक-दूसरे को गालियां नहीं निकालीं। उस समय शिष्टता की एक संस्कृति थी जो अब कहीं खो गई लगती है। इस प्रक्रिया में सबसे बुरा यह हो रहा है कि कोई भी सच्चाई को नहीं जानता है क्योंकि राजनीतिक दल हर मसले को अपनी-अपनी रंगत चढ़ा कर पेश कर रहे हैं तथा आम जनता सच्चाई को जानने में विफल हो रही है। इस संदर्भ में राफेल घोटाले की मिसाल लेते हैं। यह एक संवेदनशील तथा देश के लिए महत्त्वपूर्ण मसला है। सरकार, जिसने इस मामले में नेगोशिएट किया तथा लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए आदेश भी दिए, के लिए भी यह मसला महत्त्वपूर्ण है। लड़ाकू विमानों की खरीद का यह मसला एक लंबे समय से लंबित था। वायु सेना के लिए संवेदनशील इस मामले को इतने लंबे समय से क्यों लटका कर रखा गया?

इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं है क्योंकि सारा दोष इनके दामों पर डालने की संभावना नहीं है। मसले का अध्ययन किया गया था तथा इस पर विचार-विनिमय भी हुआ। दाम भी जाने गए क्योंकि एक पार्टी कहती है कि यह अंतिम रूप से जिस पर सहमति हुई, उससे कहीं सस्ते थे। कोई भी यह नहीं जानता कि अंततः जिस पर सहमति हुई, वह वास्तविक मूल्य क्या है, हालांकि वित्त मंत्री कहते हैं कि यह 20 फीसदी सस्ते हैं और यदि इनमें डाले गए आधुनिक उपकरणों को भी गिना जाए तो ये काफी सस्ते हैं। यह बहुत ही निर्णायक मसला है क्योंकि देश को सच्चाई जानने का अधिकार है। यदि वास्तविक मूल्य नहीं तो कम से कम इस सौदे में अपनाई गई खरीद प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। यह बताया जाना चाहिए कि इसमें भ्रष्टाचार हुआ है अथवा नहीं क्योंकि अब तक देश में रक्षा सौदों में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार की चर्चा होती रही है। सच्चाई को इसलिए भी जानना जरूरी है क्योंकि प्रधानमंत्री को लेकर यह दावा किया जाता रहा है कि वह पूरी तरह ईमानदार हैं तथा अब तक उन्हें भ्रष्टाचार के किसी भी केस में संलिप्त नहीं पाया गया है। वर्ष 2014 में आम चुनाव इस सवाल पर लड़ा गया था कि भ्रष्टाचार को खत्म कर दिया जाएगा तथा इस मसले ने जनता को भी प्रभावित किया था।  वास्तव में मोदी ने पारदर्शिता के मसले पर चुनाव जीता था जिनका दावा था कि देश को भ्रष्टाचार मुक्त शासन उपलब्ध कराया जाएगा। सरकार की ओर से दावे किए जाते रहे हैं कि मोदी के चार साल के शासन में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है तथा सरकार ने ईमानदारी के साथ काम किया है। मोदी ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आए तो न खाऊंगा, न खाने दूंगा। उनके इस नारे से जनता प्रभावित हुई थी। विपक्ष के लिए उनके किले पर हमला करना मुश्किल हो गया क्योंकि इस किले के चारों ओर ईमानदारी रूपी पत्थर की दीवार लगाई गई थी। विपक्ष के लिए यह बहुत जरूरी हो गया था कि उनकी छवि को धूमिल करने के लिए कोई केस ढूंढा जाए अन्यथा उसके लिए मोदी पर हमला करना मुश्किल हो गया था। यह माना जा रहा था कि मोदी वर्ष 2019 का चुनाव जीत लेंगे। शेयर बाजार में भी उछाल आने लगा था और यह कहा जाने लगा था कि अगर मोदी फिर से जीत जाते हैं तो यह उछाल जारी रहेगा। शेयर बाजार को लेकर शर्तें लगनी शुरू हो गई थीं। मैंने एक टीवी चैनल पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री भरत झुनझुनवाला को यह कहते हुए भी सुना कि 2019 में मोदी की फिर जीत होगी और शेयर बाजार चढ़ता ही जाएगा। यह सब अटकलबाजियां हैं तथा अब जिस तरह भाजपा तीन राज्यों में चुनाव हार गई है, उससे संदेह पैदा हो रहे हैं। किसी भी देश में विकास इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार किस तरह काम करती है तथा जनता का सरकार की प्रक्रियाओं पर किस हद तक विश्वास है। उद्योग तथा जनता को वास्तविकता का पता होना चाहिए ताकि वे अपने काम की प्रभावशाली योजना बना सकें। मोदी को लेकर अब तक जो अवधारणा बनी हुई थी, वह राहुल गांधी के यह कहने के कारण टूटती नजर आ रही है कि राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है तथा मोदी चोर हैं।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना प्रमाणित किए ही सार्वजनिक रूप से इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। इन आरोपों के कारण प्रधानमंत्री की छवि प्रभावित हुई है तथा जनमत में बदलाव आने के कारण मोदी तीन राज्यों में चुनाव भी हार गए। अब सवाल यह है कि इस महत्त्वपूर्ण मामले में सच्चाई को किस तरह जाना जाए? इसका एकमात्र संवैधानिक रास्ता यह है कि सुप्रीम कोर्ट को एप्रोच किया जाए क्योंकि वही किसी मामले में फैसला देने के लिए सर्वोच्च निकाय है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को निरस्त करते हुए कहा कि इस सौदे में भ्रष्टाचार के कोई सबूत नहीं हैं तथा न ही यह साबित हो पाया है कि सरकार ने यह सौदा फाइनल करते समय किसी का गैर कानूनी ढंग से पक्ष लिया। किसी को अनुचित ढंग से लाभ दिया गया, यह भी प्रमाणित नहीं हो पाया। यह एक स्पष्ट फैसला है, इसके बावजूद नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट को लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है। राहुल गांधी कह रहे हैं वह इस बात को साबित करके ही रहेंगे कि इस मामले में प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार किया है। उनका कहना है कि मोदी सरकार ने न्यायालय में इस बारे में सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देकर झूठ बोला है क्योंकि यह रिपोर्ट अभी तक किसी ने देखी तक नहीं है। राहुल सवाल कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जिस सीएजी रिपोर्ट का जिक्र किया है, वह रिपोर्ट कहां है, क्योंकि अभी तक वह न संसद में पेश की गई और न ही वह रिपोर्ट लोक लेखा समिति के पास आई है। अब इस मामले में फिर से संसद में कोलाहल हो रहा है तथा जेपीसी के गठन की मांग उठाई जा रही है।

अगर यह मान भी लिया जाए कि सुप्रीम कोर्ट ने सीएजी की रिपोर्ट को नहीं देखा है तो भी क्या फर्क पड़ता है क्योंकि पूरे मामले को सुप्रीम कोर्ट ने देखा है तथा इसे निरस्त कर दिया है। हालांकि मामले का अब कोई औचित्य नहीं बचा है, फिर भी देश में इस मामले को लेकर एक ऐसा धुंधलका फैला हुआ है कि झूठ को खुल्लमखुला प्रचारित करके सत्य को समझना मुश्किल हो गया है। अब यह सही समय है जब इस तरह की मशीनरी बनाए जाने की सख्त जरूरत है कि सोशल मीडिया पर सच को दबाकर झूठ व अफवाहें फैलाने पर रोक लगनी चाहिए। हमें अपनी हवा साफ रखनी चाहिए ताकि देश सुचारू रूप से काम कर सके।

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