श्री पंचरत्म स्तोत्र का व्यापक महत्त्व

श्रीविद्या से तात्पर्य त्रिपुरसुंदरी से है। बाला भी श्रीविद्या ही हैं। वस्तुतः सभी रूप भगवती के ही हैं, क्योंकि शक्ति तो केवल एक ही है। देवी के किसी भी रूप की साधना,शक्ति की ही साधना है। भगवती के लीला-विग्रह अनंत हैं, इंद्रादि देवों के गर्व-परिहार हेतु श्रीमाता कुमारी के रूप में प्रकट हुईं। लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भगवती के ही रूप हैं…

 -गतांक से आगे…

मूलाधारा महात्मा हुतवह सलिला मूलमंत्रा त्रिनेत्रा।

हार केयूरवल्ली अखिल त्रिपदका अंबिकायै प्रियायै।।

वेदा वेदांगनादा विनतघनमुखी वीरतंत्री प्रचारी।

सारी संसारवासी सकल दुरितहा सर्वतो ह्रीं नमस्ते।।

ऐं क्लीं ह्रीं मंत्ररूपा सकल शशिधरा संप्रदाय प्रधाना।

क्लीं ह्रीं श्रीं बीजमुख्यैः हिमकर दिनकृत ज्योतिरूपा।।

सों क्लीं ऐं शक्तिरूपा प्रणवहरिस्ते विदुवादात्म कोटि।

क्षां क्षीं क्षूंकारनादे सकल गुणमयी सुंदरी ऐं नमस्ते।।

अध्यानाध्न्यानरूपा असुर भयकरी आत्मशक्तिरूपा।

प्रत्यक्षा पीठरूपी प्रलय युगधरा ब्रह्म-विष्णु त्रिरूपा।।

शुद्धात्मा सिद्धरूपा हिमकिरणनिभा स्तोत्र संक्षोभ शक्तिः।

सृष्टिस्तिाष्ठत्रिमूर्ति त्रिपुर हरजयी सुंदरी एंे नमस्ते।।

श्रीबाला मंत्र साधना

श्रीविद्या से तात्पर्य त्रिपुरसुंदरी से है। बाला भी श्रीविद्या ही हैं। वस्तुतः सभी रूप भगवती के ही हैं, क्योंकि शक्ति तो केवल एक ही है। देवी के किसी भी रूप की साधना, शक्ति की ही साधना है। भगवती के लीला-विग्रह अनंत हैं, इंद्रादि देवों के गर्व-परिहार हेतु श्रीमाता कुमारी के रूप में प्रकट हुईं। लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भगवती के ही रूप हैं। वही दक्षकन्या सती हैं।

चंद्रिका, कात्यायनी, दुर्गा भी वही हैं। वेदमाता, गायत्री, स्वाहा, स्वधा, संध्या, सावित्री, काली, तारा, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, मातंगी, कमला, छिन्नमस्ता, धूमावती और षोडशी (श्रीविद्या) भगवती के ही रूप हैं। भगवती के श्रीविग्रह का वर्णन इस प्रकार किया गया है ः

अष्टमी चंद्र निभ्राजदलिक स्थल शोभिता।

मुखचंद्र कलंकाभ मृगनाभि विशेषका।।

वदन स्मर मांगल्य गृहतोरण चिल्लिका।

वक्त्रलक्ष्म परीवाह चलंमीना भलोचना।।

नवचंपक पुष्पाभ नासा दंड विराजिता।

ताराकांति तिरस्कारि नासाभरण भासुरा।।

कदंब मंजरी क्लृप्त कर्णापूर मनोहरा।

ताटंक युगली भूत तपनोडुप मंडला।।

पद्मराग शिलादर्श परिभावि कपोल भूः।

नव विद्रुम बिंबश्री न्यक्कारि रदनच्छदा।।

शुद्ध विद्यांकुराकार द्विजपंक्ति योज्ज्वला।

कर्पूर वीटिका मोद समाकर्षि दिगंतरा।।

निजसंलाप माधुर्य विनिर्भर्त्सित कच्छपी।

मंदस्मित प्रभापूर मज्जत कामेश मानसा।।

अनाकलित सादृश्य चिबुक श्री विराजिता।

कामेशबद्ध मांगल्यसूत्र शोभित कंधरा।।

कनकांगद केयूर कमनीय भुजान्विता।

रत्नग्रैवेय चिंताक लोल मुक्ता-फलान्विता।।

कामेश्वरी प्रेमरत्न मणि प्रतिपणस्तनी।

नाभ्यालवाल रोमालि लताफल कुचद्वयी।।

लक्ष्य रोमलता धारता समुन्नेय मध्यमा।

स्तनभार दलन्मध्य पट्टबंध वलित्रया।।

अर्थात भगवती (श्रीबाला त्रिपुरसुंदरी) के सिर पर अष्टमी का चंद्रमा है, जो कभी घटता या बढ़ता नहीं, मस्तक पर कस्तूरी का तिलक है। भगवती का मुख मानो कामदेव का सदन है।