सज्जन की सजा का अर्थ

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

जिस षड्यंत्र को पंजाब के लोगों ने पूरा नहीं होने दिया, उसको सोनिया कांग्रेस के इन्हीं सज्जन कुमारों ने पूरा कर दिखाया। इन्होंने भाड़े के लोगों से दिल्ली में ही तीन दिन में तीन हजार लोग मार दिए। सरकार और पुलिस ने सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें बंद कर लीं। इतना ही नहीं, जब न्यायालयों में केस चलने लगे, तो उनमें बाधा डालने के लिए सोनिया कांग्रेस की सरकार जितना जोर लगा सकती थी, उसने लगाया, केस की फाइलें बंद करवा दीं, गवाहों को परिणाम भुगतने की धमकियां दीं। लगभग सभी कांग्रेसी न्यायालयों से बरी होने लगे, परंतु अब लग रहा है कि महाकाल का एक चक्र पूरा हो गया है…

सोनिया कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को न्यायालय ने 1984 में दिल्ली में हुए नरसंहार के मामले में दोषी मानते हुए मरने तक जेल में रखने की सजा सुनाई है। यह सजा नरसंहार के 34 साल बाद सुनाई गई। दरअसल इससे पहले वे इस दोष से बरी कर दिए गए थे, लेकिन अंततः न्याय हुआ और उनको सजा दी गई। सज्जन कुमार संजय गांधी की जुंडली के सदस्य माने जाते थे। नरसंहार में हिस्सेदारी होने के बावजूद सोनिया कांग्रेस सज्जन कुमार को लोकसभा चुनावों में अपना प्रत्याशी बनाती रही और उसे चुनाव जिता कर सांसद बनाती रही। दरअसल इंदिरा गांधी की उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री बने उनके बेटे राजीव गांधी ने कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती तो हिलेगी ही।

तब सोनिया कांग्रेस के इन सज्जन कुमार ने पूरा जोर लगा कर धरती को हिलाने का काम किया था, ताकि राजीव गांधी की बात झूठी न पड़ जाए। धरती हिलाने वाले महारथियों में सज्जन कुमार ही नहीं थे और भी कई वरिष्ठ कांग्रेसी थे। जगदीश टाईटलर का भी उनमें नाम आता है। अभी यह भी चर्चा शुरू हो गई है कि जिन कमल नाथ को सोनिया कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की कमान सौंपी है, वे भी उन धरती हिलाने वालों में से ही थे। सोनिया कांग्रेस के इन शूरवीरों द्वारा धरती हिलाने से लगभग तीन हजार निर्दोष लोग मारे गए थे।

इन सज्जन कुमारों द्वारा धरती हिलाने से तीन हजार निर्दोष मारे गए, इतना ही नहीं, बल्कि इनके इस अमानवीय कृत्य ने पंजाब के दो समुदायों में दरार डालने का राष्ट्र विरोधी काम भी किया। दरअसल जिन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या की योजना बनाई थी, उनका मकसद केवल इंदिरा गांधी की हत्या तक ही सीमित नहीं था, उनका अंदाजा था कि सिख अंगरक्षकों द्वारा इंदिरा की हत्या करने की घटना से उत्तेजित होकर पंजाब में दुनिया सिख दंगे होंगे, जिसके कारण दोनों समुदायों के दिलों में दरार पड़ेगी और सिख समुदाय में अलगाव वादियों को इसका लाभ मिलेगा। जाहिर है इस पूरे षड्यंत्र का एक सिरा इंदिरा की हत्या था और दूसरा सिरा पंजाब में हिंदू-सिख दंगे था। ये दोनों कार्य पूरे होने पर ही यह षड्यंत्र पूरा कहा जा सकता था, लेकिन इस षड्यंत्र का पहला हिस्सा, तो अंगरक्षक हत्यारे पूरा कर सकते थे, परंतु इसके दूसरे हिस्से की पूर्ति तभी हो सकती थी यदि पंजाब में हिंदू-सिख आपस में उलझ पड़ते, लेकिन पंजाब में ऐसा नहीं हुआ। इसलिए षड्यंत्रकारियों की योजना असफल हो गई। परंतु जिस षड्यंत्र को पंजाब के लोगों ने पूरा नहीं होने दिया, उसको सोनिया कांग्रेस के इन्हीं सज्जन कुमारों ने पूरा कर दिखाया। इन्होंने भाड़े के लोगों से दिल्ली में ही तीन दिन में तीन हजार लोग मार दिए।

सरकार और पुलिस ने सब कुछ देखते हुए भी अपनी आंखें बंद कर लीं। इतना ही नहीं, जब न्यायालयों में केस चलने लगे, तो उनमें बाधा डालने के लिए सोनिया कांग्रेस की सरकार जितना जोर लगा सकती थी, वह उसने लगाया। केस की फाइलें बंद करवा दीं। गवाहों को परिणाम भुगतने की धमकियां

दीं। लगभग सभी कांग्रेसी न्यायालयों से बरी होने लगे। दुख तो इस बात का था कि मनमोहन सिंह के दस साल के प्रधानमंत्रित्व काल में भी दोषियों को सजा नहीं हो सकी, लेकिन लगता है महाकाल का एक चक्र पूरा हो गया है। दशकों से खुले घूम रहे सज्जन कुमार न्याय के शिकंजे में फंसने लगे हैं। आशा करनी चाहिए सज्जन कुमार के दूसरे दुर्जन साथी भी कानून के फंदे में आ जाएंगे, लेकिन लगता है सोनिया कांग्रेस ने अभी भी हार नहीं मानी है। उसने सज्जन कुमार की सजा का उत्तर कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना कर दिया है।

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