पंचांग उल्लेख
अमांत पंचांग के अनुसार माघ मास की मासिक शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं, परंतु पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की मासिक शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। दोनों पंचांगों में यह चंद्र मास की नामाकरण प्रथा है, जो इसे अलग-अलग करती है। हालांकि दोनों, पूर्णिमांत और अमांत पंचांग एक ही दिन महाशिवरात्रि के साथ सभी शिवरात्रियों को मानते हैं।
पौराणिक वर्णन
भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्मा द्वारा की गई थी। इसीलिए महाशिवरात्रि को भगवान शिव के जन्म दिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। हिंदू पुराणों में शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।
महत्त्व
वे भक्त जो मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते हैं, वे इसे महाशिवरात्रि से आरंभ कर सकते हैं और एक वर्ष तक कायम रख सकते हैं। यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की विशेष कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असंभव कार्य पूरे किए जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। अविवाहित महिलाएं इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएं अपने विवाहित जीवन में सुख और शांति बनाए रखने के लिए करती हैं।
निशिता काल
यदि मासिक शिवरात्रि मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है। द्रिक पंचांग सभी शिवरात्रि के व्रत के लिए शिव पूजन करने के लिए निशिता काल मुहूर्त को सूचीबद्ध करता है। भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है।
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