आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण भूत

आश्चर्य की बात यह सामने आई है कि जड़-पदार्थों से बने ऐसे माध्यम जिनके साथ जीवित मनुष्यों का घनिष्ठ संबंध रहा हो, अपना प्रेत अस्तित्व बना लेते हैं और मूल पदार्थ के नष्ट हो जाने पर भी अपने अस्तित्व का वैसा ही परिचय देते रहते हैं, जैसा कि मरने के बाद मनुष्य अपना परिचय प्रेत रूपों में प्रस्तुत करता रहता है…

-गतांक से आगे…

प्रेतात्मा के अस्तित्व संबंधी जो घटनाएं सामने आती हैं, उनके अधिक गंभीर अन्वेषण किए जाने की आवश्यकता है। इन शोधों से मानव तत्त्व की कितनी ही विशेषताओं पर प्रकाश पड़ेगा और यह जाना जा सकेगा कि मरणोत्तर जीवन में मनुष्य को किन परिस्थितियों में होकर गुजरना पड़ता है? इस तथ्य का जितना ही रहस्योद्घाटन होगा, उतना ही यह स्पष्ट होता जाएगा कि जीवन अनंत है और उसकी संभावनाएं असीम हैं। वर्तमान दृश्य जीवन तो उसका एक छोटा-सा अंग मात्र है।

जड़ वस्तुओं के भी प्रेत?

इस सिलसिले में एक और भी इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह सामने आई है कि जड़-पदार्थों से बने ऐसे माध्यम जिनके साथ जीवित मनुष्यों का घनिष्ठ संबंध रहा हो, अपना प्रेत अस्तित्व बना लेते हैं और मूल पदार्थ के नष्ट हो जाने पर भी अपने अस्तित्व का वैसा ही परिचय देते रहते हैं, जैसा कि मरने के बाद मनुष्य अपना परिचय प्रेत रूपों में प्रस्तुत करता रहता है। समुद्री इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंगों का उल्लेख है, जिसमें सामने से आते हुए जहाज के साथ संभावित टक्कर से बचाने के लिए मल्लाहों ने अपना जहाज तेजी से मोड़ा और उस प्रयास में उनका अपना जहाज उलटकर नष्ट हो गया। यह जहाज जो सामने से आ रहा था और जिसकी टक्कर बचाने के लिए मल्लाह आतुरतापूर्वक प्रयत्न कर रहे थे, यहां यह कौन था, कहां था-ठीक सामने टकराने जैसी स्थिति में क्यों हो रहा था? उसके चालक उसे बचा क्यों नहीं रहे थे? वह पीछे से कहां चला गया? आदि प्रश्नों के उत्तर संतोषजनक नहीं मिले और यह मान लिया गया कि संभवतः वह मल्लाहों की आंखों का भ्रम था, वस्तुतः उस प्रकार के जहाज का अस्तित्व सिद्ध नहीं हुआ। जांच कमेटियों की रिपोर्ट में डूबने वाले और न डूबने वाले जहाजों तथा मल्लाहों की ऐसी अनेक गवाहियां हैं, जिन्होंने समुद्र की सतह पर ऐसे जहाज देखे, जिनका अस्तित्व प्रमाणित नहीं किया जा सका। रिपोर्टों में उसे भ्रम बताकर जांच पर पर्दा डाल दिया, पर उन मल्लाहों और यात्रियों का समाधान न हो सका, जिन्होंने अपनी आंखों से सब कुछ देखा था। भ्रम तो एक-दो को हो सकता था, सारे मल्लाह और परियात्री एक ही तरह का दृश्य देखें, यह कैसे हो सकता है? रिपोर्ट अपनी जगह कायम रही और दर्शकों की मान्यताएं अपनी जगह। पीछे यह अनुमान लगाया गया कि डूबे हुए जहाजों के प्रेत अपने जीवनकाल की आवृत्ति में समुद्र तल पर भ्रमण करते रहते हैं। यह उनका सूक्ष्म शरीर होता है, जिसमें सघन ठोस तत्त्व तो नहीं होते, पर छाया आकृति ठीक वैसी ही होती है जैसी कि उनके जीवित काल में थी। डूबे हुए जलयानों के प्रेत होते हैं, यह अनुमान आरंभ में उपहासास्पद ही माना गया था, पीछे उनके प्रमाण इतने ज्यादा मिलते गए कि उस मान्यता को एक विचारणीय शोध-विषय माना गया।

-क्रमशः

(यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘भूत कैसे होते हैं, क्या करते हैं’ से लिए गए हैं)