क्या सबरीमाला में सीपीएम जीती?

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

 

सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि आखिर सीपीएम इस प्रश्न पर केरल के हिंदुओं से इस खुली लड़ाई में क्यों उलझ रही है? सीपीएम के लिए यह सारा खेल भारतीयों की परंपराओं को खंडित करने के साथ-साथ उनकी वोटों की राजनीति का भी हिस्सा है। केरल में उन केरलवासियों, जिनके पूर्वजों ने कभी इस्लाम और ईसाईयत को अपना लिया था, की संख्या को यदि जोड़ लिया जाए तो उनकी संख्या हिंदुओं से ज्यादा हो जाती है । सीपीएम को लगता है कि हजारों साल पुराने अय्यपा मंदिर की मर्यादा को भंग करने से केरल के मुसलमान और ईसाई खुश होंगे और चुनाव में उसका साथ देंगे। इस रणनीति में उन्हें हिंदू वोटों की इतनी चिंता नहीं रहेगी…

केरल में सीपीएम के लोग, सबरीमाला में पिछले आठ सौ साल से भगवान अय्यपा के मंदिर की परंपरा को समाप्त करने में लगे हुए थे। इसमें सीपीएम का दोष नहीं है। सीपीएम जिस कार्ल मार्क्स से अपनी प्रेरणा ग्रहण करता है, वे कार्ल मार्क्स पंथ, मजहब, आस्था और ईश्वर को अफीम मानते हैं। सीपीएम के लोग पूरे भारतवर्ष में यह विचारधारा फैलाना चाहते हैं। लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि भारत के लोग अपनी विरासत और परंपराओं को छोड़ नहीं रहे। विज्ञान के क्षेत्र में इतनी उन्नति कर लेने के बावजूद वे अपनी विरासत मंदिरों को भी नहीं छोड़ रहे।

सीपीएम और भारत के लोगों में यह लड़ाई लंबे समय से चली हुई है। इस लड़ाई में भारत के लोगों ने अपनी आस्थाओं और विरासत को तो नहीं छोड़ा, बल्कि सीपीएम की इस जिद के चलते सीपीएम को छोड़ दिया। सीपीएम की इन्हीं हरकतों के चलते सीपीएम के बंगाल और त्रिपुरा के अंतिम किले भी भारत के आस्थावान लोगों ने ध्वस्त कर दिए,

लेकिन सीपीएम ने अपनी अभारतीय विचार प्रणाली नहीं बदली। वे अभी भी भारतीयों की आस्था के केंद्रों पर हमले कर रहे हैं। केरल में सबरीमाला मंदिर में चल रहे विवाद को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। यह सीपीएम का सौभाग्य कहा जाना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय का एक निर्णय उसे अपनी रणनीति सफल बनाने के लिए सहायक दिखाई देने लगा। वर्जित आयु की महिलाओं को भी मंदिर में जाने का अधिकार है, ऐसा एक निर्णय उच्चतम न्यायालय ने दिया था, लेकिन सीपीएम ने यह ध्यान नहीं दिया कि तब भी मंदिर में जाने का अधिकार उसी को है जो भगवान अय्यपा में विश्वास और आस्था रखती हो। सीपीएम यह भी जानती थी कि कोई भी हिंदु महिला जो भगवान अय्यपा में आस्था रखती हो वह स्वयं ही वर्जित आयु में सबरीमाला मंदिर नहीं जाएगी। वह घर में ही अय्यपा की पूजा अर्चना करेगी, लेकिन सीपीएम को तो आस्थावानों की जरूरत है भी नहीं। उसे तो दास कैपिटल को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए सबरीमाला मंदिर की आठ सौ साल से चली आ रही परंपरा को नष्ट करके अपनी पीठ थपथपानी थी।

इसलिए सीपीएम की केरल सरकार कई दिनों से उन महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करवाने की कोशिश करती रही है, जिनका शायद अय्यपा में उतना विश्वास नहीं है, जितना विश्वास कार्ल मार्क्स पर है। अपने इस अभियान में केरल सरकार पुलिस का भी खुलकर प्रयोग कर रही है, लेकिन अय्यपा में विश्वास रखने वाले भारतीयों ने भी अय्यपा मंदिर की परंपरा की रक्षा करने का संकल्प लिया हुआ था। ग्यारहवीं शताब्दी में भारत के लोग महमूद गजनवी से सोमनाथ मंदिर की रक्षा तो नहीं कर पाए थे, लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी में वे अय्यपा के मंदिर की मर्यादा और परंपरा की रक्षा के लिए कृतसंकल्प हैं। यह मोर्चा कई महीनों से चला हुआ था। यही कारण था कि सीपीएम के लोग केरल सरकार और पुलिस की पूरी सहायता के बावजूद अब तक मंदिर की परंपरा को खंडित नहीं कर पाए थे। परंतु लगता है लड़ाई का पहला राउंड अंततः सीपीएम ने जीत लिया है। दो महिलाएं बदले भेष में आधी रात के कुछ समय बाद पुलिस के घेरे में मंदिर में प्रवेश कर ही गईं। एक के बारे में तो कहा जा रहा है कि वह सीपीएम से भी आगे सीपीएम-एम से जुड़ी हुई है। कुछ लोगों ने इस दुर्घटना पर टिप्पणी करते हुए यहां तक कहा कि सीपीएम ने आखिर में भगवान अय्यपा को भी हरा दिया। मंदिर को धोकर उसे पवित्र किया गया। इसको लेकर सारे केरल में हंगामा हो रहा है। क्रुद्ध जनता ने केरल में बंद रखा हुआ है। सारा केरल बंद है। विश्वविद्यालयों ने अपनी परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है। परिवहन ठप है।

सीपीएम के लोगों से हुई झड़पों में सौ से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। भाजपा के एक कार्यकर्ता की तो हत्या ही कर दी गई है। केरल के मुख्यमंत्री इस सारी स्थिति को अपनी जीत बता रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने मंदिर के पुजारियों पर ही एक्शन लेने की धमकी दी है, लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न तो यह है कि आखिर सीपीएम इस प्रश्न पर केरल के हिंदुओं से इस खुली लड़ाई में क्यों उलझ रही है? सीपीएम के लिए यह सारा खेल भारतीयों की परंपराओं को खंडित करने के साथ-साथ उनकी वोटों की राजनीति का भी हिस्सा है। केरल में उन केरलवासियों, जिनके पूर्वजों ने कभी इस्लाम और ईसाईयत को अपना लिया था, की संख्या को यदि जोड़ लिया जाए तो उनकी संख्या हिंदुओं से ज्यादा हो जाती है । सीपीएम को लगता है कि हजारों साल पुराने अय्यपा मंदिर की मर्यादा को भंग करने से केरल के मुसलमान और ईसाई खुश होंगे और चुनाव में उसका साथ देंगे।

इस रणनीति में उन्हें हिंदू वोटों की इतनी चिंता नहीं रहेगी। सीपीएम अपने अंतिम किले केरल को मुसलमानों और ईसाईयों की सहायता से बचाने में कितनी कामयाब होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात निश्चित है कि केरल का हिंदू हर स्थिति में मंदिर की मर्यादा बचाने के लिए कृतसंकल्प है। सीपीएम और भगवान अय्यपा के भक्तों में यह लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच रही है।

ई-मेल- kuldeepagnihotri@gmail.com