गहने और घर गिरवी रखकर ख्वाबों को दिए पंख

अर्चना सरदाना सपने देखना और उन्हें हकीकत में बदलने की कोई उम्र नहीं होती। बस उन्हें पूरा करने का हौसला होना जरूरी होता है, लेकिन आज हम जिस शख्सियत की बात कर रहे हैं, उन्होंने कोई आम सपना नहीं देखा था। उन्होंने एक ऐसा ख्वाब देखा जिसे देखने की भी हिम्मत जल्दी-जल्दी कोई नहीं कर पाता है। तभी तो रूढि़वादी सोच रखने वाले परिवार में जन्म लेने वाली अर्चना सरदाना जो कभी बाजार भी अकेले नहीं गई, आज वह आसमान की ऊंचाईयों को छूती हैं, सागर की गहराई को नापती हैं और तो और शायद ही दुनिया की ऐसी कोई मंजिल बची है, जिसने उनके हौसलो को छोटा कर दिया हो। 40 से ज्यादा बसंत देख चुकी अर्चना सरदाना आज देश की पहली महिला स्कूबा डाइवर, बेस जंपर और स्काई डाइवर हैं। पति राजीव सरदाना भारतीय नौसेना में सबमेरिनर कमांडर हैं। ‘स्काई डाइविंग’ नाम ही कितना रोमांचक लगता है, सोचिए जरा, जो इसे करता है उसे कितना रोमांच आता होगा। अब तक भारत में स्काई डाइविंग को पुरुषों का ही एडवेंचर खेल माना जाता था और महिलाएं इस क्षेत्र में कम ही आती थीं, लेकिन अर्चना सरदाना एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ा है। अर्चना सरदाना का जन्म कश्मीर में हुआ था। परिवार में सबसे छोटी होने के कारण वह घर में सबकी लाडली थीं। अर्चना ने बताया कि पति के प्रोत्साहन से उन्होंने सबसे पहले विशाखापट्टनम में 45 किलोमीटर की वॉकाथान में हिस्सा लिया और उस मैराथन को पूरा किया। पहली बार मैराथन में हिस्सा लेने के कारण उनके पैरों में छाले पड़ गए थे। मगर उनको भरोसा हुआ कि वह भी एडवेंचर के क्षेत्र में कुछ नया कर सकती हैं। इसके बाद उन्होंने स्काई डाइविंग सीखने के बारे में सोचा, लेकिन उस समय भारत में आम लोगों के पास स्काई डाइविंग सीखने की सुविधा नहीं थी। तब अपने पति के सहयोग से वे अमरीका के लॉस एंजिलस में इस कोर्स को करने के लिए गई। अर्चना तब उम्र के उस पढ़ाव में थी जब ज्यादातर लोग अपने करियर की बुलंदी पर होते हैं, लेकिन अर्चना ने 32 साल की उम्र में इसे चुनौती के तौर पर लिया और स्काई डाइवर बनने का फैसला लिया।  35 साल की उम्र में बेस जंपिग सीखी। अर्चना बताती है ‘लोग 1 हजार स्काई जंप्स के बाद ही बेस जंपिंग करते हैं मैंने सिर्फ 200 स्काई जंप्स के बाद ही बेस जंपिंग को सीखा। इसे करने वाली भी मैं पहली भारतीय महिला बनीं। अर्चना कहती हैं कि बेस जंप करने को लिए वह मलेशिया के केएल टावर गईं। वहां 120 लोगों में वह अकेली भारतीय थीं। वहां भी उन्होंने भारतीय तिरंगे के साथ छलांग लगाई। खास बात यह थी कि उन्होंने बेस जंप और स्काई डाइविंग दोनों के लिए एक ही पैराशुट का इस्तेमाल किया। अर्चना आसमान की ऊंचाईयों को छू रही थीं, लेकिन पानी से उनको बहुत डर लगता था तब अपने इस डर को दूर करने के लिए उन्होंने अपने बच्चों के कहने पर स्कूबा डाइविंग सीखी। उस समय उनकी उम्र 38 साल थी। वह बताती हैं कि ‘मुझे तैरना नहीं आता था इसलिए पहले 1 महीने तक मैंने तैराकी सीखी और उसके बाद मैंने स्कूबा डाइविंग का कोर्स किया। पहले मैं सोचती थी कि स्कूबा डाइविंग सिर्फ समुद्र में ही सीखी जा सकती है, लेकिन शुरुआत में इसे स्विमिंग पूल में ही सीखा जाता है। अर्चना बताती हैं कि उन्होंने 60 फीट की गहराई में जाकर भारतीय तिरंगे को लहराया है ऐसा करने वाली भी वह पहली भारतीय महिला हैं।  अर्चना अब तक 350 स्काई डाइव, 45 बेस जंपिग, 347 स्कूबा डाइव लगा चुकी हैं। पिछले 4 साल से वह ग्रेटर नोएडा के एडवेंचर मॉल में अर्चना सरदाना ‘स्कूबा डाइविंग अकादमी’ चला रहीं हैं। अब तक 700 बच्चों को वह इसकी ट्रेनिंग दे चुकी हैं। अर्चना विकलांग बच्चों को भी इसकी ट्रेनिंग देती हैं। ऐसे बच्चों के ट्रेंड करने के बारे में उनका कहना है कि इन बच्चों के साथ हमें भी वैसा ही बनना व महसूस करना होता है तभी हम उनकी परेशानियों को जानकर उन्हें सीखा पाते हैं। इसके अलावा मैं बोर्डिंग स्कूलों में भी बच्चों को स्कूबा डाइविंग सिखाने जाती हूं। अर्चना का दिल्ली में भी अपना ब्रांच ऑफिस है। उनके सामने सबसे ज्यादा दिक्कत लोगों को ये समझाने में आती है कि स्कूबा डाइविंग को स्विमिंग पूल में सीखा जाता है। जबकि बच्चों के माता-पिता अपने डर के कारण उन्हें स्कूबा डाइविंग सिखाने के लिए जल्दी तैयार नहीं होते, लेकिन अर्चना के मुताबिक बच्चों को उनकी इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। भविष्य की योजनाओं के बारे में उनका कहना है कि वह अभी बहुत कुछ सीखना चाहती हैं। उनके मुताबिक जीवन में अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है।