छट्टी नृत्य के साथ दक्ष लोकवादक जरूरी

यह नृत्य भी प्रायः पुरुष ही नाचते हैं, इसलिए साधारण लोक-नर्तक इस नृत्य को ठीक तरह से नहीं नाच पाते। इस नृत्य के लिए दक्ष नर्तक के साथ दक्ष लोकवादक की भी आवश्यकता रहती है। इस नृत्य के साथ नृत्य गीत यदि कंठों की अपेक्षा शहनाई पर भी गाया जाए तो भी काम चल  पड़ता है …

गतांक से आगे …

छट्टी नृत्य :

यह वीर नृत्य अन्य लोक नृत्यों की अपेक्षा कुछ कठिन है। इसके लिए काफी पूर्वाभ्यास की आवश्यकता होती है। यह नृत्य भी प्रायः पुरुष ही नाचते हैं, इसलिए साधारण लोक-नर्तक इस नृत्य को ठीक तरह से नहीं नाच पाते। इस नृत्य के लिए दक्ष नर्तक के साथ दक्ष लोकवादक की भी आवश्यकता रहती है। इस नृत्य के साथ नृत्य गीत यदि कंठों की अपेक्षा शहनाई पर भी गाया जाए तो भी काम चल पड़ता है। नहीं तो ढाकिण तुरिण स्त्री के मधुर कंठ से निकले गीत की लय और ढोलक या नगाड़े की ताल पर भी यह लोक नृत्य अत्यंत लुभावना लगता है। इस नृत्य के लिए विशेष लोक गीतों को उतार चढ़ाव के साथ गाया जाता है। इस लोक नृत्य में एक-दूसरे के हाथ नहीं पकड़े जाते। नर्तक एक हाथ में रूमाल लेकर और दूसरे में खांडा या तलवार लेकर एक-दूसरे के आगे पीछे गोल दायरे में क्रम से खड़े होकर झूम-झूमकर नाचते हैं। इसमें कदमों का क्रम अत्यंत जटिल होता है। धूर में नाचने वाले नर्तक का अनुकरण करते हुए नर्तक दल के अन्य नर्तक नाचते हैं। इस नृत्य की गति बड़ी धीमी रहती है।

प्रयाण, बिशू, बिरशू, युद्ध नृत्य :

 इस नृत्य में लोक नर्तक हाथ में कोई डंडा, रूमाल, तलवार या डांगरू लेकर एक-दूसरे के पीछे या इधर-उधर बिना क्रम के खड़े होकर नाचते हैं। जब नर्तक दल, देव मंदिर से मेले के मैदान में या अपने गांव से मेले के मैदान तक या एक गांव से दूसरे गांव तक नाचते हुए आते और जाते हैं, तब यह लोक नृत्य प्रदर्शित होता है। इसमें ढोल, नरसिंगा, ढोलक, नगाड़ा, शहनाई और करनाल इत्यादि वाद्य बजाते हैं। दो नर्तक प्रारंभ से गाते हैं और शेष नाचते हुए आगे बढ़ते और गाते जाते हैं।

दिवाली नृत्य :

दिवाली के समय खुले मैदान के मध्य में बहुत सारी लकडि़यों को इकट्ठी कर उन्हें रात को जलाया जाता है और उसके चारों ओर लोग दिवाली नृत्य करते हैं। दो-दो नतृकों की जोड़ी एक-दूसरे की कमर पर हाथ रखकर दूसरे हाथ में मशाल तथा रूमाल लेकर ढोल या खंजरी के साथ दिवाली के गीत गाते हुए नाचते हैं।  इसमें नर्तक बारी-बारी दाएं और बाएं कदम उठाते, छलांगे लगाते हुए एक-दूसरे के आगे-पीछे बढ़ते हैं और दायरे में रहकर नाचते गाते हैं। दिवाली के नृत्य-गीतों में प्रायः श्रीराम, श्रीकृष्ण और राजा बलि के गीत ही अधिक गाए जाते हैं। ऐसे ही पौराणिक गीतों को स्थानीय लोक-गीतों के सांचे में ढाला गया है।