दलिये में किरकिर

जेन कहानियां

जेन गुरु बेंकई के आश्रम में एक पाक-कला निपुण साधक आया। इस साधक का नाम देयरो था। देयरो ने सोचा, अपने गुरु के खाने की देखभाल अब से वह खुद करेगा। देयरो ने सोयाबीन और गेहूं में खमीर उठा कर एक विशेष प्रकार का दलिया तैयार किया। इसको चखते ही बेंकई ने पूछा, आज खाना किसने बनाया है। देयरो पेश हुआ। उसने अपने गुरु बेंकई को बताया कि उम्र और पद दोनों के लिहाज से उन्हें ऐसा ही भोजन करना चाहिए। तो तुम्हारा मतलब है कि अब मुझे कुछ भी खाना नहीं चाहिए। कहते हुए बेंकई उठे और अपने कक्ष में घुस कर अंदर से कुंडी चढ़ा ली। देयरो ने बाहर से बहुतेरी क्षमायाचना की। बेंकई ने कोई जवाब न दिया। सात दिन बीत गए। बेंकई बाहर नहीं निकले और देयरो भी वहीं दरवाजे पर बैठा रहा। आठवें दिन एक भूखे शिष्य ने पुकार कर कहा, हे गुरुदेव ! आपका बर्ताव बिलकुल सही है, मगर आपके इस नन्हे शिष्य से अब भूख और बर्दाशत नहीं होगा। सुन कर बेंकई ने दरवाजा खोला। उनका मुख मुस्कान से खिला था। इसी मुस्कान के साथ उन्होंने देयरो को समझाया, मैं वही खाना पसंद करता हूं जो मेरे शिष्य खाते हों। तुम भी गांठ बांध लो, जब गुरु बनो तो इस बात को हरगिज मत भूलना।