सदाचार विधि से मिलता है सुख

देवीप्रसाद-जनक सदाचार-विधानकम। श्रावयेत शृणुयान्मर्त्यो महासंपत्तिसौख्यभाक। 82। जो देवी के प्रसादजनक सदाचार विधि को सुनता और सुनाता है, वह सब प्रकार से धनी और सुख का भागी होता है…

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देवीप्रसाद-जनक सदाचार-विधानकम।

श्रावयेत शृणुयान्मर्त्यो महासंपत्तिसौख्यभाक। 82।

जो देवी के प्रसादजनक सदाचार विधि को सुनता और सुनाता है, वह सब प्रकार से धनी और सुख का भागी होता है।

जप्यं त्रिवर्ग-संयुक्तं गृहस्थेन विशेषतः।

मुनीनां ज्ञानसिद्धयर्थ यतीनां मोक्षसिद्धये। 83।

विशेषतः जप करने वाले गृहस्थों को त्रिवर्ग की प्राप्ति होती है। मुनियों को ज्ञान-सिद्धि तथा यतियों को मोक्ष की सिद्धि होती है।

त्रिरात्रोयोषितः सम्यग्घृत हुत्वा सहस्रशः।

सहस्र लाभमाप्नोति हुत्वाग्नौ खदिरेन्धनम। 84।

तीन रात उपवास करके अच्छी प्रकार से हजार घी की आहुति खदिर की समधिओं से अग्नि में देने पर बहुसंख्यक धन-प्राप्ति का लाभ होता है।

पालाशैहि समिद्भिश्रव घृताक्तैस्तु हुताशने।

सहस्र लाभमाप्नोति राहुसूर्य-समागमे। 85।

घृतयुक्त पलाश की समिधाएं अग्नि में सूर्यग्रहण के समय हवन करने से सहस्र धन की प्राप्ति होती है।

हुत्वा तु खदिर वन्हौ घृताक्त रक्तचंदनम।

सहस्र हेममाप्नोति राहुचंद्र-समागमे। 86।

रक्तचंदन-चूर्ण तु सघृतं हवयवाहने।

हुत्वा गोमयमाप्नोति सहस्र गोमयं द्विजः। 87।

रक्त चंदन को घी में भिगोकर अग्नि में हजार बार आहुति देने से घी, दूध आदि गोमय की कमी नहीं रहती।

जाती-चंपक-राजार्क-कुसुमानां सहस्रशः।

हुत्वा वस्त्रमवाप्नोति घृताक्तानां हुताशने। 88।

जाती, चंपा, राजार्क के राजा फूलों को घृतयुक्त करके अग्नि में हवन करने से वस्त्र प्राप्त होते हैं।

सूर्यमंडल-विम्बे च हुत्वा तोयं सहस्रशः।

सहस्र प्राप्नुयाद्धेम रोप्यमिन्दुमये हुते। 89।

जब सूर्य मंडल का बिंब मात्र झलक रहा हो अर्थात सूर्योदय हो रहा हो, उस समय हजार बार तर्पण करने तथा सूर्योदय से पूर्व चंद्रकाल में एक हजार आहुतियां देने से सोना, चांदी की प्राप्ति होती है।