गणेशगढ़ नाम का किला बनाया था गणेश वर्मन ने

अकबर सिकंदर शाह सूरी का पीछा करने के लिए पहाड़ों में बहुत भीतर तक प्रवेश कर गया था। 1558 ई. में सिकंदर शाह ने माओकोट के किले में शरण ली। नूरपुर के राजा ने उसकी सहायता की। मुगल सेना ने सिकंदर शाह को तो परास्त किया ही, नूरपुर के राजा को भी पकड़ कर लाहौर ले गए और उसे वहां मार दिया…

गतांक से आगे …

गणेश वर्मन ने परगना मौथीला में एक गणेशगढ़ नाम का किला बनाया, जहां से वह अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा कर सके और दक्षिण की ओर धौलाधार के उस पार अपनी सीमाओं को संगठित रख सके। संभवतः उसने कांगड़ा में मुगलों के विस्तार को देखकर ऐसा किया होगा। चार सौ वर्षों तक तो चंबा मुसलमानों के क्रूर आक्रमण से बचा रहा, क्योंकि वे आपसी झगड़े तथा मैदानी भाग में अपने राज्य के विस्तार में व्यस्त रहे और दुर्गम पहाड़ों की ओर पांव बढ़ाने का उन्हें समय ही नहीं मिला। उनकी गतिविधियां शिवालिक पहाडि़यों तक ही सीमित रहीं। परंतु अकबर सिकंदर शाह सूरी का पीछा करने के लिए पहाड़ों में बहुत भीतर तक प्रवेश कर गया था। 1558 ई. में सिकंदर शाह ने माओकोट के किले में शरण ली। नूरपुर के राजा ने उसकी सहायता की। मुगल सेना ने सिकंदर शाह को तो परास्त किया ही, नूरपुर के राजा को भी पकड़ कर लाहौर ले गए और उसे वहां मार दिया। इससे चंबा आदि के राजाओं के मन में भी भय होने लगा। संभवतः गणेश वर्मन ने इस उद्देश्य से गणेशगढ़ का किला बनवाया हो। इसके छह पुत्र थे, जिनके नाम ‘सिंह’ में अपनाए गए। ये थे-प्रताप सिंह, जीत सिंह, बीर बहादुर सिंह, हरि सिंह, शत्रुध्न सिंह तथा रूपानंद सिंह। चंबा में एक ताम्रपत्र लेख है। इसके अनुसार यह ताम्रपत्र कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने चंबा के राजगुरु रामपति को कुल्लू में कुछ भूमि दान के साथ प्रदान किया था। रामपति चंबा के राजा गणेश वर्मन, उसके पुत्र राजा प्रताप सिंह और पौत्रें का राजगुरु था। इस ताम्रपत्र लेख से पता चलता है कि कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने अपनी तीन पुत्रियों का विवाह गणेश वर्मन के पुत्र प्रताप सिंह से किया था। ऐसा लगता है कि इन दो राज्यों के बीच यह वैवाहिक संबंध स्थापित करने में रामपति का बड़ा सहयोग था, जिससे प्रसन्न होकर बहादुर सिंह ने रामपति को कुल्लू में भूमिदान की थी। डा. हटचीसन तथा डा. भोगल-जिन्होंने चंबा के इतिहास पर उल्लेखनीय काम किया, के अनुसार गणेश वर्मन की मृत्यु 1559 ई. में हुई। गणेश वर्मन का एक ताम्रपत्र लेख 1559 का मिलता है और कुछ तिथि रहित मिलते हैं। उकसे पुत्र प्रताप सिंह वर्मन का एक ताम्रपत्र लेख चंबा के भूरी सिंह संग्रहालय में रखा है। इसमें शास्त्र संवत् 52 लिखा है। इसके अनुसार यह ईसा के 1586ई. के बराबर आता है, परंतु डा. छाबड़ा का अनुमान है कि 6 का आंकड़ा न होकर 4 का आंकड़ा हो तो इस प्रकार से ईसा के 1566 ई. बनते हैं। इस ताम्रपत्र में लिखा है कि ‘ प्रताप सिंघ ब्रह्मदेवस्य’ ने यह भूमिदान अपने पिता गणेश वर्मन के कहने पर ‘बद्रत्ना’ को दिया।