देवताओं का पूजन

श्रीश्री रवि शंकर

गतांक से आगे…

मूर्तिस्थापना की परंपरा का प्रारंभ क्यों हुआ?

ऐसा इसलिए क्योंकि मूर्ति को देख कर श्रद्धा की भावना भीतर से जाग्रत होती है। दूसरा कारण यह है कि जब बौद्धों व जैनियों ने अपने मंदिर बनवाए, तो उन्होंने इतनी सुंदर प्रतिमाएं रखीं कि सनातन धर्म को मानने वालों को भी लगा कि उन्हें भी ऐसा ही कुछ करना चाहिए । इसलिए उन्होंने भी इसका अनुसरण किया और भगवान विष्णु, भगवान राम और भगवान कृष्ण की विभिन्न मूर्तियां स्थापित करनी शुरू कर दीं। आपको भगवद्गीता या रामायण में पूजा के लिए मूर्तियां लगाने की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलेगा। केवल शिवलिंग ही रखा जाता था। इसीलिए प्राचीन काल में केवल शिवलिंग ही था, जिसकी भगवान राम, भगवान कृष्ण व बाकी सब पूजा करते थे। पैगंबर मोहम्मद के आने से बहुत पहले से ही लोग तीर्थ यात्रा के लिए मक्का जाते थे। इसीलिए तीर्थयात्री वहां जाते हैं और वहां रखे पत्थर (सलीब) को चूमते हैं और इसकी सात बार परिक्रमा करते हैं। यह बिलकुल शिव मंदिरों की तरह किया जाता है। यह प्राचीन काल से चली आ रही परंपराओं के बिलकुल अनुरूप है। इस तरह से गया और मक्का में की जाने वाली पूजा में अद्भुत समानता है। एक ही प्रकार का पत्थर रखा गया है और इसे ही पूजा जाता है, एक ही तरह से परिक्रमाएं ली जाती हैं।

गुरुदेव,वैदिक काल में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव की उपस्थिति का कोई उल्लेख नहीं है?

3500 ईसा पूर्व से 2800 ईसा पूर्व का समय भारतीय इतिहास में वैदिक काल के रूप में जाना जाता है और 2800 ईसा पूर्व से 2600 ईसा पूर्व तक के समय को रामायण का युग कहा गया है। इस सारे समय में भगवान शिव की पूजा का कोई प्रमाण या उल्लेख नहीं है। गुरुदेव, हमने चार महान युगों, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के विषय में पढ़ा है। जबकि स्कूल व कालेज में पढ़ाया जाने वाला इतिहास युगों के विभाजन की इस प्रणाली को नहीं मानता और इसे पूर्णतः नकारता है। यह कहा जाता है कि आर्य जाति का भारत में आगमन लगभग 5,500 वर्ष पूर्व हुआ था। हम इस विसंगति को कैसे समझें? आर्य लोगों के आगमन की धारणा, जिसे पढ़ाया जा रहा है, गलत सिद्ध हुई है। विश्व की आयु 28 बिलियन या 19 बिलियन  वर्ष बताई गई है, जोकि बिलकुल उससे मेल खाता है जैसा कि हमारे पंचाग में बताया गया है। इतिहास की पुस्तकें लिखते समय सब कुछ 6,000 वर्ष पूर्व के बाद हुआ बताया गया है। उसके जैसे विद्वानों ने न तो संस्कृत पढ़ी है और न ही हमारे प्राचीन अभिलेखों को। गुरुजी, उन चीजों को कैसे जाने जो हमारे लिए अज्ञात है? ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें कि हम नहीं जानते। मैं आपकी परेशानी को समझता हूं। कुछ जानने की चाह की तीव्र पिपासा है, पर वह कुछ क्या है, यह आप नहीं जानते। आप जानते हैं कि कुछ है,पर आप नहीं जानते कि उस कुछ को कैसे जाने। ऐसा ही है न, बस शांत हो जाइए और ध्यान कीजिए। यही वहां पहुंचने का मार्ग है।