पाक संदर्भ में पुलवामा हमला

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

 

पुलवामा हमले के बाद महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान के पक्ष में बोल कर इन अलगाववादी समूहों में फिर से अपनी पैठ बना सकेंगी, निश्चित ही ऐसा आकलन पुलवामा हमले की योजना बनाने वालों का रहा होगा और सचमुच उसी आकलन के हिसाब से महबूबा मुफ्ती प्रतिक्रिया कर भी रही हैं। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी भी लगभग उसी तर्ज पर प्रतिक्रिया दे रही है। अंतर केवल भाषा और शैली का है। उसका कारण भी स्पष्ट है…

पिछले दिनों जैश यानी जाइश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर घाटी में पुलवामा में आत्मघाती मानव बम तरीके का इस्तेमाल करते हुए सीआरपीएफ के चालीस जवानों को शहीद कर दिया। भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस जिस तरह घाटी में आतंकवादियों के सफाई अभियान में लगी हुई है और उसने बहुत से आतंकवादी मुठभेड़ में मार भी दिए हैं, उससे इन समूहों और उनके नियंत्रक पाकिस्तान का हड़बड़ी में आना स्वाभाविक ही था। इससे कश्मीर घाटी में आतंकवादी समूहों का मनोबल भी गिरता है। यदि इन आतंकी समूहों का मनोबल बनाए रखना है, तो जरूरी था कि किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया जाता।

पाकिस्तान की सेना ने जैश के माध्यम से पुलवामा में यही सब किया है। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने पुलवामा घटना के कुछ दिन बाद जो वीडियो भाषण दिया, उससे भी पाकिस्तानी सेना की इस घटना में संलिप्तता अपने आप स्पष्ट होती है। पाकिस्तानी सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष पुलवामा हमला करने की जरूरत क्यों पड़ी? पहला कारण तो स्पष्ट ही है कि कश्मीर घाटी में काम कर रहे आतंकवादियों को निराशा के गर्त से बाहर निकाला जाए। दूसरा कारण इससे गहरा है। भारत में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। उन चुनावों में पाकिस्तान की यह अप्रत्यक्ष दखलंदाजी ही नहीं है, बल्कि उसमें बहस के वे मुद्दे खड़े करने की कोशिश है, जो पाकिस्तान के अपने हित में हैं। पुलवामा हमले की संभावित प्रतिक्रिया क्या हो सकती थी, इस पर बहुत ही गहरा सोच-विचार किया गया होगा।

पहली प्रतिक्रिया तो यही कि लोगों का पाकिस्तान के प्रति बहुत ज्यादा गुस्सा भड़केगा और लोग मांग करेंगे कि पाकिस्तान पर सख्त कार्रवाई की जाए। सख्त कार्रवाई के अनेक आयाम हैं। उसका एक आयाम पाकिस्तान पर हमला करना भी है। आम जनता की नजर में यही सख्त कार्रवाई मानी जाती है। पाकिस्तानी सेना ने इस बात का आकलन तो कर ही लिया होगा कि भारत सरकार और जो भी सख्त कार्रवाई करे, वह फिलहाल पाकिस्तान पर हमला तो नहीं कर सकती। ऐसा नहीं कि भारतीय सेना हमला करने में सक्षम नहीं है, लेकिन हमला करने के लिए और उसकी पूरी नीति बनाने के लिए समय दरकार है, लेकिन भारत में लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसी स्थिति में सोनिया, राहुल, प्रियंका बाड्रा यानी कांग्रेस को मौका मिल जाएगा कि वह देश भर में यह राग गाते हुए घूम सकें कि नरेंद्र मोदी का छप्पन इंच का सीना कहां गया? पाकिस्तान और भारत में उसके समर्थकों को लगता है कि पुलवामा हमले के बाद नरेंद्र मोदी के खिलाफ यह मुद्दा चलाया जा सकता है। ध्यान करना होगा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर अरसा पहले यह मांग कर आए थे कि पाकिस्तान नरेंद्र मोदी को अपदस्थ करने में हमारी सहायता करे। दूसरा, कश्मीर घाटी में इस पुलवामा हमले की क्या प्रतिक्रिया हो सकती थी? महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बोल सकेंगी, क्योंकि उसकी पार्टी पीडीपी को दक्षिणी कश्मीर के तीन-चार जिलों में जो वोट मिलते हैं, उसकी व्यवस्था मोटे तौर पर अलगाववादी समूह ही करते थे, लेकिन पीडीपी द्वारा जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना लेने के बाद से ये अलगाववादी सैयद महबूबा मुफ्ती से नाराज चल रहे थे। पुलवामा हमले के बाद महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान के पक्ष में बोल कर इन अलगाववादी समूहों में फिर से अपनी पैठ बना सकेंगी, निश्चित ही ऐसा आकलन पुलवामा हमले की योजना बनाने वालों का रहा होगा और सचमुच उसी आकलन के हिसाब से महबूबा मुफ्ती प्रतिक्रिया कर भी रही हैं। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला परिवार और उनकी पार्टी भी लगभग उसी तर्ज पर प्रतिक्रिया दे रही है। अंतर केवल भाषा और शैली का है। उसका कारण भी स्पष्ट है।

शेख परिवार की नेशनल कान्फ्रेंस मोटे तौर पर कश्मीरियों की पार्टी मानी जाती है और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी सैयदों की पार्टी मानी जाती है। कश्मीरियों और सैयदों की भाषा शैली में जो मौलिक अंतर है, वही इस प्रतिक्रिया में भी दिखाई देता है। प्रतिक्रिया की एक तीसरी संभावना पर भी झांक लेना होगा। पुलवामा हमले से पैदा हुए गुस्से का शिकार देश भर में फैले कश्मीरी भी हो सकते थे। उस गुस्से का शिकार होकर वे घाटी में जाने के लिए व्याकुल हो जाएंगे और वहां जाकर वे कल्पित-अकल्पित भारत विरोध की भावनाओं को हवा देने का काम करेंगे और सचमुच ऐसा हो भी रहा है और अब अंतिम बची भारत में वह टीम, जिसे विनोद अग्निहोत्री ने अर्बन नक्सल का नाम दिया है। इसमें प्रशांत भूषण से लेकर मेधा पाटेकर बरास्ता, अरुंधती राय सभी शामिल किए जा सकते हैं। पुलवामा हमले के बाद इस पर इन अर्बन नक्सलों की प्रतिक्रिया का अंदाजा लगाने के लिए इमरान खान और पाकिस्तानी सेना को भी माथापच्ची करने की जरूरत नहीं थी। इनकी प्रतिक्रिया वही है, जिसका किसी भी भारतीय को अंदाजा था ही। पुलवामा हमले के बाद इस टोली का कहना है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है और कश्मीर घाटी को आजाद होने का हक है। यदि पाकिस्तान द्वारा निर्मित ये मुद्दे सचमुच भारतीय चुनाव में प्रमुखता ग्रहण कर लेते हैं, तो मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान ने पुलवामा हमले के माध्यम से अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है।

सोनिया, राहुल, प्रियंका बाड्रा यानी कांग्रेस और अर्बन नक्सल पूरी कोशिश करेंगे कि चुनावों में यही मुद्दे प्रमुखता ग्रहण कर लें।  यदि ऐसा हो जाता है, तो मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान पुलवामा हमले के माध्यम से अपनी रणनीति को सफल होते देखेगा। हमको ध्यान रखना होगा कि वह ऐसा न कर पाए।

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