वेदमंत्रों द्वारा संपन्न करवाई पूजा को बेदी कहते हैं

कन्या के माता-पिता से गणपति नवग्रह पूजन-कलश पूजन करवाया जाता है। फिर अग्नि स्थापना के बाद कन्या को मंडप में लाया जाता है। कन्या का दाहिना हाथ पिता के हाथ में देकर कन्या की माता सवोषधी दुग्ध जल, शंख, चंदन, पंचरत्न से युक्त गंगाजल की मिश्रित जल धारा गिराती है…

गतांक से आगे …

बेदी:

वेदोक्त मंत्रों द्वारा संपन्न करवाई गई प्रक्रिया को यहां की बोली में बेदी कहते हैं। विद्वान आचार्यों, पुरोहितों द्वारा सुंदर मंडप रचना कर वर से तथा कन्या के माता-पिता से गणपति नवग्रह पूजन कलश पूजन करवाया जाता है। फिर अग्नि स्थापना के बाद कन्या को मंडप में लाया जाता है। कन्या का दाहिना हाथ पिता के हाथ में देकर कन्या की माता सवोषधी दुग्ध गंगाजल मिश्रित जल, शंख, चंदन, पंचरत्न से युक्त जल धारा गिराती है। आचार्य कन्या दान संकल्प पढ़कर कन्या का हाथ वर के हाथ में दिलवा देते हैं। शंख और पंचरत्न साथ होने का अर्थ है कन्या अंतिम समय तक उसी के साथ रहे, जिसे उसे सौंपा जा रहा है। चंदन का अर्थ वह अपने गुणों से चंदन की तरह वर के घर को सुगंधित कर दे। फिर पहले धान की वर वधू अग्नि की तीन परिक्रमा करते हैं उसके बाद कन्या भ्राता फुल्लियां (खिलां) वर के हाथ में देता है फिर वर कन्या के हाथ में कन्या उसे अग्नि में अर्पण कर देती है। (खिलां) की आहुति से यह अभिप्राय है कि जिस प्रकार धान की पौध कहीं लगाई जाती है और फिर अनाज वह किसी दूसरे खेत में जाकर दूसरे के घर को भरती है इस प्रकार कन्या भी पतली बढ़ती कहां है और फलती-फूलती दूसरे कुल में है। इससे पूर्व कन्या दान संकल्प के समय वर पक्ष का लाया गया तेल आदि कन्या को लगाया जाता है। पाठा मुंदी (बायीं तर्जनी में पहनाई जाने वाली चांदी की छाप) मंगल सूत्र आदि लगाया जाता है। चार परिक्रमा फिर होती हैं अंतिम में कन्या पीछे वर आगे हो जाता है। इस अंतिम परिक्रमा में ब्राह्मण वर पुस्तक हाथ में लेकर, क्षत्रिय तलवार और वैश् गरी गोला के साथ करते हैं। इसमें कन्या की बहनें वर का रास्ता रोकती हैं जिसे अंगूठा दबाना कहते हैं। हास-परिहास के बाद 51 या 101 रुपए लेकर वर का अंगूठा छोड़ देती हैं। इसके बाद वर-वधू सात कदम साथ-साथ चल कर प्रतिज्ञा करते हैं कि 1-अन्न प्राप्ति, 2-ऊर्जा प्राप्ति, 3-धन प्राप्ति, 4-सांसारिक सुख, 5-पशु सुख, 6-ऋतुओं की अनुकूलता, 7-सखी भाव हमें साथ-साथ प्राप्त हों। इसके बाद वर वधू की मांग में सिंदूर भरने की प्रथा है फिर वधू के हाथों में वर के पैर धुलाना परस्पर दही गुड़ खिलाने की प्रथा है। इसके बाद विद्वान आचार्य वर-वधू उपस्थित समुदाय को विवाह संस्कार की परंपराओं से अवगत कराते हुए नवयुगल को सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।