इच्छा शक्ति से सफलता आती है

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘इच्छा शक्ति’ पर उनके विचार…

-गतांक से आगे…

इसी तरह मेरी जीवात्मा ने मेरे शरीर में से एक पेंटर को बनाया। यह जानते हुए कि आत्मा एक है, आपने सभी लोगों से संबंध विकसित किए तथा केवल जीवात्मा ही उनका विभेद करती है। जीवात्मा या आत्मा यानी वैयक्तिक आत्मा तथा परमात्मा यानी सुपर सोल अर्थात भगवान एक ही चीज हैं। जीवात्मा परमात्मा का छोटा भाग होता है। अपने को जानना अपने सार अर्थात सुपर सोल को जानने के बराबर है। अन्य मनुष्यों के साथ आप भी एक ही हैं। आप और वह एक ही हैं।

समाज

अगर आपके पांव को बीमारी लगती है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि अब यह आपका पांव नहीं रहा। अगर यह बीमारी ज्यादा फैल जाती है तो आपको पूरे शरीर में जहर फैलने से रोकने के लिए इसे काट देना पड़ेगा। इसी तरह हमें समाज का वह भाग ठीक करना होगा जो विकृत हो चुका है। समाधान उचित होना जरूरी है। सिर के नीचे रखी गई बाजू में अगर दर्द शुरू हो जाता है तो हम सिर को चांटा नहीं मारते। हम सिर के नीचे से बाजू को हटा देते हैं।

इच्छा शक्ति

व्यक्ति का अपने ऊपर जो विश्वास होता है, उसी से इच्छा शक्ति आती है। महान व्यक्ति सामान्यतः अपने बाल नहीं काटते, न ही दाढ़ी कटवाते हैं। उन्हें अपने को युवा दिखाने की जरूरत नहीं होती, न ही वह यह सोचते हैं कि यह सुंदर दिखने का तरीका है। उनकी अपनी इच्छा शक्ति होती है जो उन्हें वास्तविकता से दूर नहीं होने देती। इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने बालों को बढ़ाते रहते हैं। वे उन्हें काटते नहीं हैं। उन्हें इसकी जरूरत नहीं होती है। वे प्राकृतिक रूप से रहना चाहते हैं जैसे कि वे संसार में आए हैं। वे अपनी मैस्कुलिन पहचान को कायम रखते हैं जो उन्हें भगवान ने दी होती है। वे अपने बाल काटकर महिला नहीं बनना चाहते हैं। वे अपनी अंतरात्मा की आवाज से लय बनाए हुए जीना चाहते हैं। पुरुष से कम आदमी (लैसर मैन) को क्या कहें, एक  आम आदमी एक आदमी तक नहीं होता है। अपने भीतर की कमजोरियों को छिपाने के लिए अर्थात आत्मविश्वास की कमी, के लिए वह दाढ़ी मुंडवाता है तथा अपने बाल कटवाता है।  ऐसे लोग अपना विकास अपने बाहर से करना चाहते हैं। वे नाइयों व दर्जियों के दास होते हैं। उनसे अच्छा तो एक पेड़ तक होता है। एक पेड़ बाहर से भोजन लेता है तथा अपने भीतर से विकसित होता है। एक कमजोर आदमी फैशन व रीति-रिवाजों के पीछे चलता है।  अगर नाक कटवाने का फैशन आ जाता है तो वे इसे कटवाने के लिए पंक्ति में कतारबद्ध लगे होंगे। अगर कोई व्यक्ति प्रकृति से समझौता करता है तो वह नीचे को नहीं टूटेगा। प्रत्येक सफलता इच्छा शक्ति के साथ आती है।