निस्वार्थ कर्म ही पूजा है

कला से अध्यात्म तक

किस्त-78

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘पूजा’ पर उनके विचार…

-गतांक से आगे…

आप अपनी इच्छा शक्ति के साथ पर्वतों पर घूम सकते हैं। अपनी आदतों, रास्तों व जीवन को बदलना जरूरी है। इसके बिना आध्यात्मिकता एक स्वप्न ही रह जाती है। अगर आपके पास अपनी इच्छा की शक्ति है तो आप केवल अपने आप को बदलने में ही कामयाब नहीं होंगे, बल्कि आप अपने चारों ओर भी बदलाव ला सकते हैं।

श्रेष्ठ होना

आदमी विश्व में जिस सामान्य मानसिक स्थिति में आम तौर पर रहता है, उसे ऊंचा करने के लिए लक्ष्य में पूरी तल्लीनता एक पूर्व शर्त होती है। यह कहा जाता है कि एक पैगंबर सीमा से आगे जा सकता है, एक संत नॉन-लिमिट को पार कर सकता है तथा एक वैरागी लिमिट तथा नॉन-लिमिट दोनों के पार जा सकता है। नॉन लिमिट को अनंतता कहा जा सकता है। दिमाग की स्थायी स्थिति में हम कुछ प्राप्त करते हैं। यह उस एक मां की तरह है जो विचारमग्न हो या न हो, अपने सारांश में रहती है। वह तब भी अविचलित रहेगी अगर उसका बच्चा उसके बाल या आंखें खींच रहा होता है। सामान्य परंपराओं से ऊपर जाना सामान्य को पार करना है तथा यहां हम उच्चतर विधान के साथ एक हो जाते हैं। हम प्रतीकों को स्वीकार करते हैं तथा प्रतीक रूप में बात करते हैं, किंतु प्रतीक केवल अमूर्त अथवा काल्पनिक होते हैं। पूरी गलतफहमी तब पैदा होती है जब हम मात्र प्रतीकों के सहारे रहना शुरू करते हैं, पूरी वास्तविकता तथा उनके वास्तविक गहन अर्थ को भूल जाते हैं। एक्शन उसको प्रकट कर सकता है जो हमने समझा होता है तथा दिमाग की किस स्थिति में हम हैं, उससे हम क्या अर्थ लगाते हैं। प्रतीक निर्देशन के लिए एक तीर चिन्हित करते प्रतीक से ज्यादा लक्ष्य पूरा नहीं करते हैं। जो हमने समझा होता है, वह तब प्रकट होता है जब हम प्रतीकों से ऊपर उठते हैं।

पूजा

अगर आपकी चेतना इस संसार में आपके आगमन का लक्ष्य जानने में विफल हो जाती है, तो प्रार्थना, पूजा, मनकों को गिनना तथा भगवान का नाम बार-बार लेना, सब कुछ बेकार है। भगवान ने हमें अपना हथियार बनाया होता है तथा हमें उसकी इच्छाओं का अनुपालन करना होता है। अगर मैं वो उद्देश्य पूरा कर रहा हूं जिसके लिए मेरा जन्म हुआ है तथा बाकी सब से चिंतामुक्त रहता हूं तो मैं उसकी पूजा कर रहा हूं। आप तब खुश होते हैं जब आप अपनी प्रतिभा को काम में लगा रहे होते हैं और तब आप अपना काम बिना किसी प्रयास के भी कर रहे होते हैं। आप क्या हैं और आपको क्या काम तय किया गया है, यह जानना आपका काम है। अगर आप अपने कर्त्तव्य से नाम व ख्याति लेने की कोशिश करते हैं तो यह पूजा नहीं है। अपना काम निस्वार्थ होकर व बिना किसी अहम के करें।