पृथ्वी सिंह ने मंडी से मदद मांगी

 1637 से 1664 तक मंडी का राजा सूरज सेन था। पृथ्वी सिंह सेना लेकर कुल्लू होता हुआ रोहतांग को पार करके लाहुल- पांगी की ओर बढ़ा। पहले उसने चुराह को अपने अधीन किया था। इसके पश्चात उसने चंबा नगर पर आक्रमण करके राजा जगत सिंह के अधिकारियों को मार भगाया और इस प्रकार 1641 ई. के ग्रीष्मकाल में सत्तारूढ़ हुआ…

गतांक से आगे …

यह अवसर देखकर पृथ्वी सिंह ने मंडी और सुकेत के राजाओं से धन और सैनिक सहायता मांगी। उस समय मंडी में राजा सूरज सेन (1637-64) का राज था। पृथ्वी सिंह सेना लेकर कुल्लू होता हुआ रोहतांग को पार करके लाहुल पांगी की ओर बढ़ा। पहले उसने चुराह को अपने अधीन किया था। इसके पश्चात उसने चंबा नगर पर आक्रमण करके राजा जगत सिंह के अधिकारियों को मार भगाया और इस प्रकार 1641 ई. के ग्रीष्मकाल में सत्तारूढ़ हुआ। 1641 ई. के दिसंबर मास के आरंभिक दिनों में वह पठानकोट गया और वहां उसने मुरादाबख्श से भेंट की। मुरादबख्श ने शाही आदेनशानुसार उसे 16 दिसंबर, 1641 ई.को शाहजहां के पास मुगल दरबार दिल्ली में उपस्थित किया। कुछ एक यह भी कहते हैं कि वह लाहौर में ही मुगल सम्राट के दरबार में गया था। मुगल दरबार में पृथ्वी सिंह का बहुत मान हुआ। उसे खिल्लत में एक जड़ाऊ तलवार, एक हजारी का मनसब, राजा की उपाधि और एक घोड़ा मिला। उधर, नूरपुर के राजा जगत सिंह ने मुगल सम्राट शाहजहां के विरुद्ध विद्रोह कर रखा था और अपने ही राज्य के माओ, नूरपुर और तारागढ़ के दुर्गों में बैठकर अपनी सैनिक शक्ति को सुदृढ़ कर रहा था। जगत सिंह स्वयं तो माओ दुर्ग में था और नूरपुर दुर्ग में उसके अधिकारी। जब शाही सेना का दबाव माओ दुर्ग पर बढ़ा तो जगत सिंह ने उसको छोड़कर चंबा में स्थित तारागढ़ किले में शरण ली।

इन्हीं दिनों पृथ्वी सिंह मुगल दरबार में था। अतः सम्राट ने उससे कहा कि वह वापस चंबा जाकर और सैनिक तैयारी करके चंबा की दिशा में तारागढ़ पर चढ़ाई कर दे। जब पृथ्वी सिंह वापस चंबा आया तो उसने बसौली के राजा संग्रामपाल से बात करके जगत सिंह के विरुद्ध सहायता प्राप्त की। इस सहायता के बदले में पृथ्वी सिंह ने बसौली को ‘भलई का परगना’ दे दिया। इसके पश्चात वे दोनों कलानौर में मुगल सूबेदार के पास गए और सहायता मांगी। अतः एक ओर से मुगल सेना ने तारागढ़ दुर्ग पर घेरा डाल दिया और चंबा की ओर से पृथ्वी सिंह और गुलेर के राजा मान सिंह ने। गुलेर का राजा मन सिंह भी जगत सिंह का बड़ा वैरी था। तीन मास के घेरे के पश्चात जगत सिंह ने मार्च 1642 ई. में हार मान ली। जगत सिंह को मुगल दरबार में उपस्थित किया गया। सम्राट ने उसे क्षमा कर दिया और तारागढ़ के दुर्ग में मुगल सेना को रख दिया। पृथ्वी सिंह के समय तक पांगी का क्षेत्र छोटे-छोटे सामंत राणाओं के अधीन था। परंतु इन पर प्रभुत्व चंबा के राजा का ही था। पृथ्वी सिंह ने इन राणाओं को दबाकर सारा पांगी क्षेत्र सीधा अपने आधिपत्य में कर लिया और वहां अपने अधिकारियों को नियुक्त कर दिया। इसका पता हमें ‘किलाड़’ और ‘साच’ के मध्य एक शिलालेख से मिलता है।