प्रो. एनके सिंह
अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार
इन दलों ने कांग्रेस के लिए मात्र दो सीटें छोड़ी जो उस पार्टी के लिए अपमान के बराबर था जो कई दशकों तक देश को प्रधानमंत्री देती रही है। अब कांग्रेस के पास कोई विकल्प शेष नहीं बचा था सिवाय इसके कि वह अपने उम्मीदवारों की सूची जारी करती। सहानुभूति का संकेत देते हुए कांग्रेस ने भी गठबंधन के लिए सात सीटें छोड़ दी हैं। उधर सपा-बसपा के छोटे गठबंधन ने इस पेशकश को भी ठुकरा दिया है। बंगाल में भी ममता बैनर्जी चुनाव में एकला चलो रे के मार्ग पर हैं तथा उनकी पार्टी का कांग्रेस व कम्युनिस्टों से कोई गठजोड़ नहीं हुआ है। इसी तरह उड़ीसा में तिकोना मुकाबला लग रहा है। यहां बीजू जनता दल की एक ओर भाजपा से टक्कर होगी, दूसरी ओर कांग्रेस भी उसके सामने है। उधर बिहार में भी तिकोना मुकाबला ही लग रहा है जहां भाजपा-जेडीयू-लोजपा के सामने एक ओर लालू प्रसाद यादव का राजद है तथा दूसरी ओर कांग्रेस है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि चुनाव पूर्व गठबंधन के भाव में महागठबंधन खत्म हो चुका है। अब मन को तसल्ली देने के लिए नजरें चुनाव बाद की संभावनाओं पर टिकी हैं। जहां तक चुनाव पूर्व गठबंधन का संबंध है, भाजपा ने इस दिशा में तेजी के साथ काम किया, जबकि कांग्रेस विकल्पों को ही ढूंढती रह गई। कांग्रेस ने पंजाब में भी कोई व्यवस्था नहीं की है क्योंकि वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंद्र सिंह कह रहे हैं कि कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है। इसके बावजूद केजरीवाल की ओर से कांग्रेस के कुछ प्रतिनिधियों के साथ बातचीत जारी है तथा गठजोड़ की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। ऐसी अफवाहें हैं कि दिल्ली में आप व कांग्रेस में गठजोड़ हो सकता है। किंतु मेरा मानना है कि ऐसा करना दोनों के लिए घातक सिद्ध होगा क्योंकि आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता में गिरावट आती जा रही है। कांग्रेस अब गोवा में सत्ता हथियाने की कोशिश कर रही है जहां मनोहर पर्रिकर की मृत्यु से सत्ता में एक शून्य उभर आया है्। दूसरी ओर भाजपा ने तेजी से काम करते हुए महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मसला हल करते हुए अपना गठजोड़ कायम रखा है तथा वह गोवा में भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए प्रयासरत है। बिहार में भाजपा ने नीतीश व पासवान के साथ सीटों का तालमेल कर लिया है। अब हमें यह जानने के लिए चुनाव का इंतजार करना होगा कि ये गठबंधन किस तरह चुनाव बाद गठजोड़ की ओर अग्रसर होते हैं। मेरा विचार है कि महागठबंधन तो चुनाव के बाद भी संभव नहीं होगा क्योंकि कोई भी दल किसी दूसरे को नेतृत्व करने के लिए प्रमुखता देने को तैयार नहीं लगता है। हां, गठबंधन की संभावनाएं जरूर दिख रही हैं। कांग्रेस पहले से ही स्थापित पार्टी की स्थिति में जरूर है, किंतु वह सभी विपक्षी दलों को नेतृत्व प्रदान करने के योग्य फिलहाल नहीं लग रही है। इस बात की संभावनाएं नहीं हैं।