आखिर ये लोग कौन हैं?

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

अब असली प्रश्न जिस पर विचार करना जरूरी हो गया है, वह यह है कि आखिर ये लोग जो हिंदोस्तान में बैठकर पाकिस्तान के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं, वे लोग कौन हैं? जो लोग दावा करते हैं कि यदि वे न चाहते, तो हिंदोस्तान ही न होता, ये लोग कौन हैं? इस संकट काल में इन लोगों की शिनाख्त करना और भी जरूरी है, क्योंकि देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है। दुनिया के अनेक देश चाहते हैं कि हिंदोस्तान आगे न बढ़े। चीन की चिंता मोदी को लेकर यह है कि किसी तरह मोदी हट जाए, तो हिंदोस्तान की सांझा सरकारें रेंगती रहेंगी। रेंगती सरकारों से न चीन को चिंता रहेगी और न ही पाकिस्तान को। न अमरीका को चिंता रहेगी और न ही कनाडा को। न विजय माल्या को चिंता रहेगी और न ही मसूद अजहर को…

आजकल दिल्ली के गलियारों में एक प्रश्न बहस का विषय बना हुआ है कि क्या पाकिस्तान को दिल्ली में अपने दूतावास की अभी भी जरूरत है? यह प्रश्न इसलिए चर्चित हो रहा है, क्योंकि पाकिस्तान के दूतावास को अपने देश के हितों के लिए जो काम करने होते हैं, वे सभी काम हिंदोस्तान के ही कुछ लोग उसके लिए बखूबी कर रहे हैं, तो उसे आर्थिक संकट के इन दिनों में दिल्ली में दूतावास पर इतना खर्च करने की जरूरत ही क्या है। दरअसल पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की धमकियों का उत्तर दिया था। पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न रहता है।

भारत में सुनियोजित आतंकवादी हमले करवाता है, उसके बाद धमकाता रहता है कि यदि भारत ने कोई कार्रवाई की, तो उसके पास एटम बम है। भारत में जितनी सरकारें रहीं, वे सदा पाकिस्तान की इस धमकी को ध्यान में रखकर ही आतंकवाद से लड़ने के लिए अपनी नीति बनाती रही हैं, लेकिन पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में पूछ लिया कि पाकिस्तान इतने सालों से एटम बम की धमकी देता रहता है, तो भारत ने एटम बम क्या केवल दीवाली के लिए रखा हुआ है। मोदी के इस भाषण के बाद लगता था कि पाकिस्तान सरकार जरूर इसका कोई न कोई उत्तर देगी। नहीं तो, कम से कम दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास कोई औपचारिक प्रोटेस्ट तो दर्ज करवाएगा ही, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तब सभी को हैरानी हुई। एक दिन बाद ही पाकिस्तान की इस चुप्पी का रहस्य खुला। पाकिस्तान की ओर से भारत के एक दूसरे राजनीतिक दल पीपुल्ज डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती ने इसका उत्तर दिया। उसने तैश में आकर कहा कि पाकिस्तान ने भी अपना एटम बम ईद के लिए नहीं रखा हुआ है। तब साफ हुआ कि जब पाकिस्तान की ओर से मोर्चा संभालने वाले हिंदोस्तान में ही मौजूद हैं, तो उसे प्रोटेस्ट करने की जरूरत ही क्या है, लेकिन नेशनल कान्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने भी अपना मोर्चा पहले से ही संभाल रखा है। फारूक और उमर, बाप-बेटे की यह जोड़ी पहले से ही पाकिस्तान की ओर से मोर्चा संभाले बैठी है, लेकिन उनकी चिंता एटम बम को लेकर नहीं थी, उनकी चिंता तो बालाकोट की कार्रवाई को लेकर थी।

उनका ग़ुस्सा इतना था कि भारत की यह हिम्मत कि वह पाकिस्तान की सीमा में घुसकर वार करे। इसलिए उसने सबसे पहले तो बालाकोट पर हमले की बात को ही सिरे से नकार दिया। जब किसी ने समझाया कि इतना झूठ दुनिया पचा नहीं पाएगी। बालाकोट तो हो गया, चाहे किसी को अच्छा लगे, चाहे बुरा। इसलिए बालाकोट पर हमले को तो मान लेना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान ने भी परोक्ष रूप से इसे मान ही लिया है। इसलिए हमारा स्टैंड यह होना चाहिए कि भारतीय वायु सेना पाकिस्तान का बाल बांका नहीं कर सकी। फारूक अब्दुल्ला बोले कि दो पेड़ों पर बम गिरा कर आते हैं और वापस आकर, पाकिस्तान को सबक सिखा दिया, के नारे लगाते हैं। फारूक अब्दुल्ला गरजते-गरजते बहुत आगे निकल गए। बोले, यदि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की हिम्मत की, तो जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा। पाकिस्तान ने तुरंत कहा कि भारत अपने संविधान में से अनुच्छेद 370 को नहीं हटा सकता।

फारूक अब्दुल्ला ने तुरंत बात आगे बढ़ाई, यदि हम न होते, तो हिंदोस्तान ही न होता। महबूबा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर हिंदोस्तान में नहीं रहेगा, यदि अनुच्छेद 35-ए हटाया गया। अब असली प्रश्न जिस पर विचार करना जरूरी हो गया है, वह यह है कि आखिर ये लोग जो हिंदोस्तान में बैठकर पाकिस्तान के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं, वे लोग कौन हैं? जो लोग दावा करते हैं कि यदि वे न चाहते, तो हिंदोस्तान ही न होता, ये लोग कौन हैं? इस संकट काल में इन लोगों की शिनाख्त करना और भी जरूरी है, क्योंकि देश इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा है। दुनिया के अनेक देश चाहते हैं कि हिंदोस्तान आगे न बढ़े। चीन की चिंता मोदी को लेकर यह है कि किसी तरह मोदी हट जाए, तो हिंदोस्तान की सांझा सरकारें रेंगती रहेंगी। रेंगती सरकारों से न चीन को चिंता रहेगी और न ही पाकिस्तान को। न अमरीका को चिंता रहेगी और न ही कनाडा को। न विजय माल्या को चिंता रहेगी और न ही मसूद अजहर को। जेल में बैठा मिशेल भी निश्चिंत हो जाएगा। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जमानत की चिंता भी समाप्त हो जाएगी।

इन सब को चिंता मोदी सरकार के बने रहने से है। इसीलिए सभी एक स्वर से चिल्ला रहे हैं – ‘मोदी हटाओ, मोदी हटाओ’। महबूबा मुफ्ती, अब्दुल्ला परिवार और सोनिया कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं।  इसलिए इनकी सही शिनाख्त करना जरूरी है कि आखिर ये लोग कौन हैं? क्या इनकी पहचान इनके उतरी आवरण से अलग भी है। 

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