सरकार के लिए ऊर्जा क्षेत्र में सुधार चुनौती

मंत्री ने पालिसी में खींचा था संशोधन का खाका, अब नए सिरे से चलाना होगा विभाग

शिमला —सरकार के लिए ऊर्जा क्षेत्र में सुधार बड़ी चुनौती खड़ी है, जिससे पार पाने के लिए अनिल शर्मा ने खासी मेहनत की और उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ा। जिस लय और सोच के साथ वह ऊर्जा क्षेत्र में काम कर रहे थे, उसमें आगे क्या होगा और कौन इस दिशा में आगे बढ़ेगा, यह सोचने की बात है।  अब नए सिरे से सरकार को इस महकमे को चलाना होगा, लेकिन चुनौती उसके सामने वही है। बतौर ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने सबसे पहले निवेशकों को लाने के लिए ऊर्जा नीति में संशोधन सुझाए। सरकार ने उनके सुझावों पर यह संशोधन भी किए। उन्होंने बिजली बोर्ड में बिजली कानून 2003 को लागू करने की पूरी तरह से ठान ली थी, जिस पर कर्मचारियों का विरोध भी उन्हें सहना पड़ रहा था। उनका मत है कि कानून के हिसाब से तीन अलग-अलग एजेंसियां बन चुकी हैं, तो ट्रांसमिशन का काम बोर्ड क्यों कर रहा है। इसके लिए ट्रांसमिशन कारपोरेशन का गठन किया गया है, परंतु कर्मचारी बोर्ड से यह काम नहीं देना चाहते, जिस पर खासी तकरार हो चुकी है। इसके साथ बिजली बोर्ड में उत्तराखंड की तर्ज पर कर्मचारियों की संख्या को कम करने का अहम मुद्दा है, जिसके लिए भी बोर्ड के चेयरमैन के सुझावों पर अनिल शर्मा काम कर रहे थे। पहले जांगी-थोपन-पोवारी परियोजना सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड को देने के हक में भी अनिल शर्मा नहीं थे, परंतु बाद में कैबिनेट के सामने उनकी मंशाएं टिक नहीं पाईं। ऐसे कुछ मामलों में अनिल शर्मा सरकार के बीच में फंसे ही हुए थे, तभी उन्हें यहां तक कहना पड़ा कि वह पावर मिनिस्टर विदाउट पावर हैं। सरकार में रहते हुए उन्होंने कहा था कि ऊर्जा मंत्री रहते विधानसभा में जवाब उन्हें देना पड़ता है, जबकि बिजली बोर्ड से कोई फाइल उनके पास आती नहीं। उनके सख्त रवैये के बाद बोर्ड की फाइलें उनके पास आनी शुरू हुई थीं। पूर्व सरकार में भी यही प्रक्रिया थी कि ऊर्जा विभाग की फाइल या तो बोर्ड के चेयरमैन करेंगे या फिर सीधे मुख्यमंत्री को जाएगी परंतु बतौर ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा काम करने में सक्षम थे लेकिन उनको बाइपास किया जाता रहा।