अनुभवी गुरु के निर्देशन में हो साधना

  1. साधक को तमोगुणी और रजोगुणी आहार से स्वयं को बचाना चाहिए तथा मात्र सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। कहा भी गया है कि जैसा अन्न होता है, वैसा ही मन बन जाता है। 15. साधक को कामोत्तेजक चलचित्र, उपन्यास या साहित्य का अध्ययन नहीं करना चाहिए। धार्मिक ग्रंथ और वेदादि का पठन करना चाहिए। 16. साधना में प्रयुक्त हुए पदार्थ इधर-उधर नहीं फेंकने चाहिए, बल्कि उन्हें किसी वृक्ष के नीचे रखें या नदी में प्रवाहित कर दें अथवा मंदिर इत्यादि में रख आएं? ऐसे पदार्थ किसी के पांव के नीचे नहीं आने चाहिए। 17. किसी अनुभवी गुरु के निर्देशन में ही साधना करनी चाहिए। केवल गुरु ही साधना काल में आने वाली बाधाओं को हटाने में सहायक बनता है…

-गतांक से आगे…

  1. जप के मध्य में लौंग, इलायची, फल या अन्य खाद्य लेना निषिद्ध तथा दोषपूर्ण है। जप के समय सात्विक भाव हो। झूठ, छल, प्रपंच, कपट, निंदा, बेईमानी एवं भ्रष्टाचार आदि से बचना चाहिए। यदि यात्रा या रोगावस्था में विधि-विधानपूर्वक जप न कर सकें तो चलते-फिरते मानसिक जप कर सकते हैं।
  2. जन्म या मृत्यु का सूतक होने पर साधना का निषेध है। इस काल में केवल मानसिक जप ही किया जा सकता है।
  3. अपने इष्टदेव के प्रति अटूट आस्था और विश्वास का होना अनिवार्य है। संभवतः यही साधना की नींव है।
  4. साधना काल में अपने गुरु के प्रति श्रेष्ठ भक्ति और आदर का भाव बना रहना चाहिए तथा इस दौरान आए विघ्नों से हताश, उदास या निराश नहीं होना चाहिए। शीघ्र लाभ न होने पर भी उसके प्रति अविश्वास न करें, अपितु तत्संबंधी दोषों को दूर करने का प्रयास करें।
  5. मन की चंचलता पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए अपने इष्टदेव पर ध्यान जमाए रखना चाहिए।
  6. प्रातःकाल के समय माला नाभि के सामने, दोपहर के समय हृदय के

सामने तथा सायंकाल मस्तक के सामने होनी चाहिए।

  1. साधक को तमोगुणी और रजोगुणी आहार से स्वयं को बचाना चाहिए तथा मात्र सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। कहा भी गया है कि जैसा अन्न होता है, वैसा ही मन बन जाता है।
  2. साधक को कामोत्तेजक चलचित्र, उपन्यास या साहित्य का अध्ययन नहीं करना चाहिए। धार्मिक ग्रंथ और वेदादि का पठन करना चाहिए।
  3. साधना में प्रयुक्त हुए पदार्थ इधर-उधर नहीं फेंकने चाहिए, बल्कि उन्हें किसी वृक्ष के नीचे रखें या नदी में प्रवाहित कर दें अथवा मंदिर इत्यादि में रख आएं? ऐसे पदार्थ किसी के पांव के नीचे नहीं आने चाहिए।
  4. किसी अनुभवी गुरु के निर्देशन में ही साधना करनी चाहिए। केवल गुरु ही साधना काल में आने वाली बाधाओं को हटाने में सहायक बनता है।