टर्मिनल मार्केट बनी महज शोपीस

चंबा—लोकसभा चुनावों में इस बार टर्मिनल मार्केट भी चुनावी मुद्दा बनकर उभरेगा। राज्य में अकेले सेब से ही हर साल करीब 1700 सौ करोड़ रुपए का कारोबार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किया जाता है राज्य में फल और सब्जी उत्पादन से हर वर्ष करोड़ों रुपए का कारोबार होता है और राज्य के बागबानी और किसानों से हर साल बिचौलिए करीब दस करोड़ की कमीशन गलत तरीके से वसूलते रहे हैं। पिछले कई सालों से बागबान और किसान फसलों की बिक्री के लिए राज्य के भीतर ही टर्मिनल मार्केट स्थापित करने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है। बतातें चलें कि प्रदेश की 80 फीसदी आबादी कृषि और बागबानी पर निर्भर है और ये लोग मतदाता भी है। इसके बावजूद इनकी मांग ठंडे बस्ते में डाली हुई है। बागबानी राज्य के रूप में अपनी अलग पहचान बनाए राज्य के बागबान और किसानों को आज भी दूसरे राज्यों की टर्मिनल मार्केट पर पूरी तरह से निर्भर रहना पड़ रहा है। इस कारण किसानों व बागबानों को तैयार फसलों के उचित दाम भी नहीं मिल पाते हैं। मंडियों में फसलें बेचने का दारोमदार आढतियों के ऊपर निर्भर रहता है। सेब की सबसे बड़ी मंडी दिल्ली की आजादपुर मंडी है और यहां पर देश में उत्पादित 90 फीसदी फसलों को बेचने के लिए लाया जाता है । इसी मंडी में प्रदेश के बागबान और किसानों का सबसे बड़ा शोषण किया जाता है। सेब और अन्य फलों की बिक्री पर यहां बागबानों से मोटी कमीशन बिचौलियों द्वारा वसूली जाती है। इस कमीशन वसूली से किसानों की जेब से हर साल करीब दस करोड़ से ज्यादा वसूले जाते हैं। यह मामला भाजपा और कांग्रेस सरकारों के सत्ता पर रहते हुए उठाया जाता रहा है। हालांकि राज्य सरकार ने परवाणू में टर्मिनल मार्केट बनाई थी, मगर यह बागबानों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी और यह महज शोपीस बनकर रह गई। इसके बाद से न तो यहां विपणन व्यवस्था को सुचारू किया जा सका है न ही नई टर्मिनल मार्केट तैयार की गई है।