मोती सिंह की चार महीने के पश्चात मृत्यु हो गई थी। उसके कोई संतान नहीं थी। इसलिए राज परिवार में जय सिंह का पुत्र ध्यान सिंह, जो राज्य का वजीर रह चुका था तथा दूसरी ओर किशन सिंह का छोटा भाई गद्दी के हकदार और दावेदार थे। अतः सरकार ने बीच में हस्तक्षेप करके ध्यान सिंह के हक में निर्णय देकर उसे बाघल का राजा बनाया। ध्यान सिंह एक लोकप्रिय शासक था…
गतांक से आगे …
ध्यान सिंह (1877-1905 ई.) :
मोती सिंह की चार महीने के पश्चात मृत्यु हो गई थी। उसके कोई संतान नहीं थी। इसलिए राज परिवार में जय सिंह का पुत्र ध्यान सिंह, जो राज्य का वजीर रह चुका था तथा दूसरी ओर किशन सिंह का छोटा भाई गद्दी के हकदार और दावेदार थे। अतः सरकार ने बीच में हस्तक्षेप करके ध्यान सिंह के हक में निर्णय देकर उसे बाघल का राजा बनाया। ध्यान सिंह एक लोकप्रिय शासक था।
रियासत के दस्तूर के मुताबिक राजा के छोटे भाई मान सिंह को राज्य का वजीर बनाया गया। राजा ने प्रशासन चलाने में अपने भाईयों और संबंधियों को अधिक अधिकार दिए। परंतु वह स्वयं भी सभी बातों का ध्यान रखता था। उसके समय में उल्लेखनीय कार्य हुए :-
* इस राजा के समय में राज्य के आदेश व अन्य कार्य लिखा-पढ़ी द्वारा होने लगे।
कोर्ट-फीस और नान जुडीशियल स्टाम्प पेपर आरंभ किए गए। यह एक साधारण कागज पर मोहर लगा कर प्रचलित किए गए।
* भंडार (खजाना) की आय और व्यय की समय-समय पर पड़ताल की जाने लगी।
* पहले रियासत में सौ सिपाही होते थे, परंतु इसके समय में 25 सिपाही रखे गए और एक थानेदार नियुक्त किया गया। इससे खर्च में कुछ बचत भी हो गई।
* सारे राज्य को चार तहसीलों में बांटा गया।
ध्यान सिंह के समय में 1897 ई. में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इसे ठकुराई के छोटे-छोटे जागीदारों ने उकसाया और उसमें किशन दास नाम के एक व्यक्ति ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। बड़ौग गांव के ब्राह्मण ने भी इसमें भाग लिया।
उनका कहना था कि एक तो राणा ने उनकी मालगुजारी बढ़ा दी है, दूसरा पशुओं के चराने के लिए बहुत कम भूमि है और तीसरे जंगली सुअरों को मारने पर पाबंदी लगा दी गई थी जो जम्मींदारों की फसलों को नष्ट कर देते थे।
जब यह झगड़ा बहुत बढ़ गया तो सुपरिटेंटेंड हिल स्टेट्स ने 1902 में हस्तक्षेप करके विद्रोहियों को पकड़ा और उन्हें राणा के पास भेज दिया। ध्यान सिंह के समय में लोगों से अधिक जुर्माना वसूल करने की ज्यादातियों होती रहीं। राणा और लोगों के मध्य भूमि के झगड़े भी बहुत चलते रहे। इसके करण रियासत के कर्मचारियों और लोगों में आपस में कटुता पैदा हो गई थी। राणा के सुकेत, मधान व बिलासपुर राज्यों से वैवाहिक संबंध थे। 1904 में राण की मृत्यु हो गई।