पदमदेव ने किया था कई रीति-रिवाजों के विरुद्ध प्रचार

भमनोली का एक युवक पद्मदेव शिमला में आर्य समाज के लिए प्रचारक का काम करता था। उसने बुशहर के हरिजन लोगों के उत्थान, रीत प्रथा तथा बाल विवाह के विरुद्ध भी प्रचार करना आरंभ किया। उसने अमरीका से आए एक ईसाई प्रचारक सेमुअल इवन्ज स्टोक्स को हिंदू बना दिया, परंतु कुछ का कहना है कि बुशहर के राजा पद्मसिंह उसे हिंदू समाज में लाए थे…

गतांक से आगे …

बुशहर रियासत में प्रजामंडल आंदोलन : 17 दिसंबर, 1927 ई. को बंबई में आल इंडिया स्ट्ेटस पीपल कान्फ्रेंस का सम्मेलन हुआ। इसमें रियासतों से लगभग 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, परंतु यहां की पहाड़ी रियासतों में से किसी ने भाग नहीं लिया। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि सभी रियासतों में प्रजामंडलों को संगठित करके लोगों के अधिकारों के लिए राजनीतिक गतिविधियां आरंभ की जाएं। पहाड़ी रियासतों के हिमालय की दुर्गम घाटियों में स्थित होने के कारण यहां पर प्रजामंडलों का संगठन तथा उनका आंदोलन बहुत समय के पश्चात हुआ। इस अवधि में बुशहर की रोहड़ू तहसील की एक गांव भमनोली का एक युवक पद्मदेव शिमला में आर्य समाज के लिए प्रचारक का काम करता था। उसने बुशहर के हरिजन लोगों के उत्थान, रीत प्रथा तथा बाल विवाह के विरुद्ध भी प्रचार करना आरंभ किया। उसने अमरीका से आए एक ईसाई प्रचारक सेमुअल इवन्ज स्टोकस को हिंदू बना दिया, परंतु कुछ का कहना है कि बुशहर के राजा पद्मसिंह उसे हिंदू समाज में लाए थे। फिर उसने कोटगढ़ की एक राजपूत लड़की से विवाह किया और अपना नाम बदल कर सत्यानंद स्टोक रख लिया। स्टोक महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुआ और उसने भी पहाड़ों में बेगार प्रथा के विरुद्ध बहुत प्रचार किया और कई लेख लिखे। उसने गांधी जी के एक सहयोगी सीएफ ऐन्ड्रियू को कोटगढ़ अपने पास बुलाया। उसने लिखा है :- मिस्टर स्टोकस ने मुझे बार-बार अपने पास कोटगढ़ इसलिए बुलाया कि मैं समाचार पत्रों द्वारा लोगों पर बेगार की ज्यादतियों का प्रचार करूं। दिसंबर 1939 में हिमालय रियासती प्रजामंडल का गठन किया गया। इसका कार्य पहाड़ी रियासतों में राजनीतिक तथा सामाजिक आंदोलन चलाने का था। 1940 ई. में बुशहरियों ने बुशहर प्रजामंडल शिमला की ओर से कुछ परचे प्रकाशित किए। राजा के पास एक प्रतिवेदन भी भेजा। इसमें लोकप्रिय सरकार की स्थापना बेगार के उन्मूलन, राज्य सेवा का पुनर्गठन, राज्य की ओर से शिक्षा की सुविधा और हरिजन जातियों को विवाह आदि में गाजे-बाजे की अनुमति की मांगें प्रस्तुत कीं। इसी के कारण बुशहर की कोठी क्षेत्र के तीन अनुसूचित जाति के लोगों ने बेगार देने से इनकार कर दिया। सन् 1939-45 तक का काल विश्व युद्ध द्वितीय का काल था जहां अंग्रेजी सत्ता स्थानीय समस्याओं की अपेक्षा युद्ध के प्रति अधिक संवेदनशील थी। 1945 में बुशहर प्रजामंडल को फिर सक्रिय किया गया और सत्यदेव बुशहरी ने रामपुर-बुशहर से तथा पद्मदेव ने शिमला से अपनी संस्थाआें द्वारा कुछ कार्य किया। इसी अवधि में बुशहर के लोगों ने बुशहर सुधार सम्मेलन, सेवक मंडल दिल्ली, बुशहर प्रेम सभा जैसी संस्थाएं बनाईं, परंतु बुशहर प्रजामंडल 1947 से पूरी तरह से सक्रिय हुआ।