बीटी बैंगन की अवैध खेती

राजिंदर चौधरी

स्वतंत्र लेखक

 

जीएम बीज सजीव हैं, पर्यावरण में जाने के बाद उन का प्रजनन रोका नहीं जा सकता। बड़े पैमाने पर खेतों में जाने के बाद इसका स्वतंत्र अस्तित्व हो जाएगा, जो बेलगाम होगा। चौथी बात यह कि इस तरह के कई अनुभव सामने आए हैं कि जीएम फसलों और उनके साथ जुड़े रसायनों के प्रयोग के साथ ही कई तरह की बीमारियां, कैंसर, जन्मजात विकृतियां बढ़ी हैं…

स्थानीय स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर एक नागरिक संगठन के प्रतिनिधि ने 19 अप्रैल को हरियाणा के फतेहाबाद जिले के रतिया कस्बे के एक किसान के खेत से बैंगन खरीद कर जब उसकी प्राथमिक जांच की, तो पता लगा कि वह बीटी बैंगन है। चूंकि बीटी बैंगन संशोधित जीनजीएम उत्पाद है (बीटी एक ब्रांड का नाम है) और भारत में इसके उत्पादन की अनुमति नहीं है, इसलिए बीटी बैंगन की यह खेती अवैध है। किसान से प्राप्त सूचना के अनुसार यह फसल उसने डबवाली कस्बे से खरीदकर 2018 के प्रारंभ में लगाई थी। प्राथमिक जांच में इसकी पुष्टि होने के बाद 23 अप्रैल को ही देश में संशोधित जीन उत्पादों जीएम उत्पादों के उच्चतम नियामक, ‘जीनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी’ (जीईएसी) को इसकी शिकायत कर दी गई एवं बीटी बैंगन के नमूने भी भेज दिए गए।

अगले ही दिन हरियाणा एवं पंजाब के नागरिक संगठनों, किसान संगठनों, उपभोक्ता संगठनों और वैज्ञानिकों के प्रतिनिधि मंडल ने राज्य सरकार को शिकायत की और बैंगन के नमूने सौंपे। इसके बाद का घटनाक्रम देश के नागरिकों के स्वास्थ्य और देश की समृद्ध जैव-संपदा के साथ खिलवाड़ की कहानी है। ‘जीईएसी’ ने शिकायत को राज्य सरकार को प्रेषित करके अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने भी सरकारी प्रयोगशाला तक में अवैध बीटी बैंगन की पुष्टि हो जाने के बाद कोई त्वरित कार्रवाई न करके लीपापोती शुरू कर दी। समाचार पत्रों के अनुसार हरियाणा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति ने विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर उसे स्वास्थ्य पर बीटी बैंगन के असर पर तीन दिनों के अंदर रिपोर्ट देने को कहा। नए सिरे से बीटी बैंगन के स्वास्थ्य पर प्रभाव के अध्ययन के लिए राज्य द्वारा कमेटी गठित करना न केवल गैर-कानूनी है (क्योंकि यह हरियाणा सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर की बात है), अपितु उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और देश की समृद्ध जैव-संपदा के साथ खिलवाड़ भी है। देश में कोई भी संशोधित जीन वाली जीएम फसल देश के सर्वोच्च नियामक ‘जीईएसी’ की अनुमति के बाद ही बोई जा सकती हैं और नियामक ने बैंगन की किसी किस्म को आज तक अनुमति नहीं दी है। वर्ष 2010 में बीटी बैंगन की बिक्री पर लागू किया गया प्रतिबंध अभी तक जारी है। इसलिए सरकारी प्रयोगशाला में बीटी बैंगन की पुष्टि के तुरंत बाद इस अवैध बीज को बाजार में लाने वालों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और ऐसी पूरी फसल को समूल नष्ट करने की कानूनी जिम्मेदारी हरियाणा-केंद्र सरकार की बनती है। ऐसा प्रतीत होता है कि नई कमेटी का गठन करके कार्रवाई में जानबूझ कर देरी करके अपराधियों को बचने का मौका दिया जा रहा है। भारत सरकार के फरवरी, 2010 के बीटी बैंगन पर रोक के निर्देश में स्पष्ट तौर पर स्वीकार किया गया है कि बीटी बैंगन के मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव की कोई स्वतंत्र पड़ताल नहीं हुई है। सारे आंकड़े रिपोर्ट बीज विकसित करने वाली कंपनी द्वारा ही उपलब्ध कराए गए हैं। इस दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि ‘भारतीय चिकित्सा शोध संस्थान’ (आईसीएमआर) के महानिदेशक एवं भारत के दवा-नियंत्रक ने बीटी बैंगन के लंबे समय तक उपभोग के स्वास्थ्य पर प्रभावों की स्वतंत्र पड़ताल की आवश्यकता को रेखांकित किया है।’ जाहिर है, बीटी बैंगन के मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक और कमेटी गठित करने का कोई तुक नहीं है। जीएम फसलों या बीटी बैंगन से हमें खतरा क्या है? इस प्रश्न से पहले यह समझना जरूरी है कि जीएम उत्पाद होता क्या है? जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड) उत्पाद यानी संशोधित या परिवर्तित जीन वाला उत्पाद जो नया जीव बीज है, जिसमें विजातीय जीन डाले गए हों। जैसे मछली से निकाल कर कोई जीन टमाटर में डाला जाए, बीटी बैंगन में मिट्टी में पाए जाने वाले एक सूक्ष्म जीव को जीन में डाला गया है। सैद्धांतिक तौर पर यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि अपने परिवेश से कटकर विजातीय परिवेश में एक विशेष जीन का क्या प्रभाव रहेगा। किसी जीव के गुण-दोष केवल किसी विशेष जीन से तय न होकर पूरे परिवेश, जीनों के परस्पर संबंधों से तय होते हैं। इसलिए विजातीय जीन को ग्रहण करने वाले जीव का भी बाह्य स्वरूप वही रहने के बावजूद वह एक नया जीव बीज बन जाता है। इस नए जीव बीज के क्या गुण-दोष होंगे, विशेष तौर पर दीर्घकाल में विजातीय जीन का क्या प्रभाव रहेगा, यह लंबे शोध का विषय है। दुर्भाग्य से या तो जीएम बीजों की जैव सुरक्षा बाबत स्वतंत्र शोध हुआ ही नहीं है या फिर तात्कालिक व मध्यम अवधि के प्रभावों का ही अध्ययन हुआ है। दूसरा, जीएम बीज आने के बाद सदियों से चली आ रही हमारी देशी किस्मों का प्रदूषण अवश्यंभावी है। मधुमक्खी, तितली और हवा को पता ही नहीं चलता कि वह जीएम फसल से आ रही है और अब उसे गैर-जीएम फसल पर बैठकर उसे प्रदूषित नहीं करना है। भारत की समृद्ध जैव-विविधता जीएम बीजों के आने के बाद नष्ट हो जाएगी। तीसरा खतरा यह है कि एक बार बड़े पैमाने पर पर्यावरण में फैल जाने के बाद इन बीजों को वापस लेना नामुमकिन है। अगर किसी रासायनिक पदार्थ के बनाने के बाद उसके हानिकारक प्रभावों का पता चलता है, तो उसका उत्पादन रोका जा सकता है और यह आशा की जा सकती है कि थोड़े या ज्यादा समय के बाद उसका प्रभाव खत्म हो जाएगा, परंतु जीएम बीज सजीव हैं, पर्यावरण में जाने के बाद उन का प्रजनन रोका नहीं जा सकता।

बड़े पैमाने पर खेतों में जाने के बाद इसका स्वतंत्र अस्तित्व हो जाएगा, जो बेलगाम होगा। चौथी बात यह कि इस तरह के कई अनुभव सामने आए हैं कि जीएम फसलों और उनके साथ जुड़े रसायनों के प्रयोग के साथ ही कई तरह की बीमारियां, कैंसर, जन्मजात विकृतियां बढ़ी हैं। अमरीका, जहां जीएम फसलों का सबसे ज्यादा प्रयोग होता है, के नागरिकों का स्वास्थ्य विकसित देशों में सबसे खराब पाया जाता है। भले ही इसके लिए केवल जीएम बीजों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, परंतु वैज्ञानिक मापदंडों के अनुसार भी ये ‘संयोग’ या संगति जीएम बीजों के अतिरिक्त गंभीर एवं स्वतंत्र अध्ययन की जरूरत दर्शाते हैं। सवाल केवल बीटी बैंगन का नहीं है। समाचार पत्रों के अनुसार 100 से अधिक जीएम बीज अनुमति लेने की कतार में हैं।

इनमें धान, गेहूं, भिंडी, अदरक, मक्का, तुलसी, प्याज, मूंगफली, टमाटर, बांस, सेब, खीरा, गन्ना, गोभी, चाय, कॉफी, रोंगी, अरंडी, सूरजमुखी, काली मिर्च, मटर, सोयाबीन, पपीता, इलायची, गाजर, केला, संतरा, तंबाकू, बाजरा, आलू, दालें और बैंगन इत्यादि शामिल हैं। अगर एक बार किसी भी रूप में, चाहे अवैध रूप में ही क्यों न हो (बीटी कपास की देश में आमद अवैध ही थी), देश में जीएम खाद्य फसलों की खेती शुरू हो गई, तो फिर बाकी खाद्य फसलों के जीएम बीजों को रोकना असंभव हो जाएगा। भारतीय कृषि विशालकाय कंपनियों का बाजार बन जाएगी। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, खेतों और बाजार में बड़े पैमाने पर जांच करके बीटी बैंगन की खेती के फैलाव को चिन्हित करके, इसके बीज पौध की बिक्री व्यवस्था को चिन्हित कर उसको खत्म करना तथा उपलब्ध बीज एवं फसल को नष्ट करना होगा। किसानों को प्रताडि़त न करके  उनकी नष्ट फसल का मुआवजा दिया जाना चाहिए, क्योंकि किसान को क्या मालूम कि बाजार में बिक रहा बीज वैध है या अवैध। कड़ी दंडात्मक कार्रवाई बीज विकसित करने वाले एवं उसको बाजार में लाने वालों के खिलाफ होनी चाहिए।