भूत से डरें नहीं, वह तो बस भूत है

आश्चर्य इस बात का है कि मनगढ़ंत डाकिनें हानि उतनी ही पहुंचा देती हैं, जितनी कि कोई वास्तविक डायन रही होती और उसने पूरे जोर-शोर से आक्रमण किया होता। मनसा भूत की उक्ति में संकेत है कि मन से भूत उत्पन्न होते हैं। पीपल के पेड़ पर, मरघट में, खंडहरों में भूत-पलीतों के किले बने होने और वहां से उनके तीर चलते रहने की मान्यता असंख्यों अंधविश्वासों के मनों में जड़ें जमाए बैठी रहती हैं…

-गतांक से आगे…

शंका डायन-मनसा भूत

संशय को स्वीकार कर लेने पर मस्तिष्क का पहिया उन्हीं आशंकाओं के समर्थन में चलने लगता है और चित्र-विचित्र कल्पनाएं अवास्तविक को भी तथ्य जैसा मानने लगती हैं। शंका डायन-मनसा भूत की उक्ति अक्षरशः सत्य है। किसी और निर्दोष महिला पर अपनी कुशंकाओं का आरोपण करके, उसे डाकिन, चुड़ैल, जादूगरनी आदि के रूप में भयानक देखा जा सकता है। डायनों का अस्तित्व पूर्णतया संदिग्ध है, किंतु कुशंकाओं के खेत में असंख्यों एक से एक भयानक डाकिनों का उत्पादन निरंतर होता रहा है। आश्चर्य इस बात का है कि मनगढ़ंत डाकिनें हानि उतनी ही पहुंचा देती हैं, जितनी कि कोई वास्तविक डायन  रही होती और उसने पूरे जोर-शोर से आक्रमण किया होता। मनसा भूत की उक्ति में संकेत है कि मन से भूत उत्पन्न होते हैं। पीपल के पेड़ पर, मरघट में, खंडहरों में भूत-पलीतों के किले बने होने और वहां से उनके तीर चलते रहने की मान्यता असंख्यों अंधविश्वासों के मनों में जड़ें जमाए बैठी रहती हैं। सभी जानते हैं कि जड़ों में दौड़ने वाला रस पत्र, पल्लव, पुष्प, फल आदि के रूप में विकसित होता रहता है। आशंकाजन्य भय, भीरूता की जड़ें यदि अचेतन मन में घुस पड़ें तो उतने भर से भूतों की अपनी अनोखी दुनिया बन पड़ेगी और उस सेना के आक्रमण की अनुभूति घिग्घी बंधा देने वाला त्रास देती रहेगी। यह स्वनिर्मित भूत भी उतने ही डरावने और हानिकारक होते हैं, जितने कि यदि वास्तविक भूत कहीं रहे होते और उनके द्वारा आक्रमण किए जाने पर कष्ट सहना पड़ता। हिस्टीरिया का एक प्रकार है, ‘सामयिक उन्माद’, इसे भूत-पलीत या देवी-देवताओं के आवेश के रूप में देखा जा सकता है। शिक्षितों में यह आवेश दूसरी कई तरह की सामयिक उमंगों के रूप में आता है और वे अपने आपको क्रोध आदि आवेशों से ग्रसित पाते हैं। कई बार तो ऐसी स्थिति अपने लिए तथा संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के लिए घातक बन जाती है। आवेशग्रस्त स्थिति के साथ  रोगी जब भूत-प्रेतों के या देवी-देवताओं के आक्रमण के साथ संगति बिठा लेता है, तब वह प्रवाह उसी दिशा में बहने लगता है और ऐसे लक्षण प्रकट होते हैं, जिनमें ऐसा प्रतीत होता है, मानो सचमुच ही कोई भूत-बेताल उन पर चढ़ दौड़ा हो।                                            

(यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘भूत कैसे होते हैं, क्या करते हैं’ से लिए गए हैं)