मसूद अजहर ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकी’

एक ओर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में नक्सली आतंकवाद ने हमारे 15 रणबांकुरों को ‘शहीद’ कर दिया, मन बेहद उदास और क्षुब्ध है तथा खुद से ही सवाल कर रहा है, दूसरी तरफ जैश-ए-मुहम्मद आतंकी संगठन के सरगना मसूद अजहर को अंततः ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी’ घोषित किया गया है। चीन के हाथ पीछे खींच लेने के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लिया गया यह निर्णय बेशक भारत की ऐतिहासिक और कूटनीतिक कामयाबी है। यह भारत की मोदी सरकार के निरंतर वैश्विक प्रयासों की भी सफलता है। मौत और समारोह दोनों ही विरोधाभासी स्थितियां हैं, लेकिन परस्पर पूरक भी हैं। मसूद अजहर हत्यारा आतंकी है। सबसे ताजातरीन घटना पुलवामा की है, जिसमें जैश के ‘बारूदी आतंकवाद’ ने 40 से ज्यादा जवानों को ‘शहीद’ कर दिया था। हम पठानकोट और उरी के सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों को कभी भी भूल नहीं सकते। हमें 13 दिसंबर, 2001 और उसी साल 1 अक्तूबर के दिन भी हमेशा याद रहेंगे, जब मसूद अजहर की साजिश ने क्रमशः भारतीय संसद और जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमले कर, हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता पर प्रहार किए थे। 1999 के कंधार विमान अपहरण कांड का साजिशकार भी मसूद अजहर था। विमान में 180 यात्री सवार थे। उन्हें बचाने के मद्देनजर आतंकियों से समझौता करना पड़ा और उसमें मसूद को भी तिहाड़ जेल से रिहा करना पड़ा। भारत 2009 से ही कोशिशें कर रहा था कि मसूद अजहर को आतंकवाद की ‘काली सूची’ में डाला जाए, लेकिन चीन हर बार ‘वीटो’ का विशेषाधिकार इस्तेमाल कर हमारी और अंतरराष्ट्रीय दुनिया की कोशिशें चूर-चूर करता रहा। चीन पाकिस्तान के साथ अपनी ‘आर्थिक दोस्ती’ निभा रहा था, लेकिन भारत भी तमाम ब्यौरे मुहैया करा चीन से आग्रह करता रहा कि अजहर सरीखे खूंखार चेहरे मानवता के दुश्मन हैं। अंततः चीन को भी सहमत किया गया कि मसूद अजहर एक हत्यारा आतंकी है। इसमें अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी आदि देशों ने बड़ी सार्थक भूमिकाएं निभाईं। इस बार तो अमरीका ने ही प्रतिबंध समिति के सामने प्रस्ताव रखा। इससे पहले के प्रस्तावों में ब्रिटेन, फ्रांस और भारत भी साथ होते थे। बहरहाल रणनीति कुछ भी रही हो, लेकिन मसूद अजहर को ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकी’ घोषित करवा आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा जीता गया है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत भी ‘वैश्विक नेता’ बन गया है। इस निर्णय के फलितार्थ यहीं तक सीमित नहीं रहेंगे। यदि पाकिस्तान ने अजहर, उसके संगठन, आतंकी अड्डों, मदरसों आदि पर ईमानदारी से विविध पाबंदियां नहीं थोपीं, तो वह दिन भी दूर नहीं होगा, जब पाकिस्तान को भी ‘आतंकवादी राष्ट्र’ घोषित कर दिया जाएगा। फिलहाल पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में जरूर रहेगा। इस निर्णय के बाद यूएन के सदस्य देशों को मसूद अजहर और जैश की तमाम संपत्तियां जब्त करनी पड़ेंगी और बैंक खाते सीज करने होंगे। आतंकी किसी भी देश की यात्रा नहीं कर सकेगा, क्योंकि कोई भी देश वीजा आदि यात्रा दस्तावेज जारी नहीं कर सकेगा। जैश को हथियारों की सप्लाई और देशों से आर्थिक मदद पर भी विराम लग जाएगा। पाकिस्तान पर ऐसा दबाव पड़ेगा कि अंततः उसे मसूद अजहर को भारत को सौंपना पड़ेगा। हालांकि पुलवामा के बाद भारत की वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश के आतंकी अड्डों और आतंकियों पर हवाई हमला कर उन्हें नेस्तनाबूद करने की कोशिश की थी, लेकिन उसके मात्र पांच दिनों के बाद ही मसूद अजहर ने जो बैठक बुलाई थी, उसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के अफसर भी मौजूद थे। यह नापाक रिश्ता जारी रहा है। उस बैठक में भारत पर आतंकी हमले की साजिशों पर चर्चा हुई थी, लेकिन उस पर अमल होने से पहले ही इसे ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकी’ करार दे दिया गया। अब मसूद अजहर पाकिस्तान में भी छुट्टा नहीं घूम सकेगा। पाकिस्तान की हुकूमत को अनचाहे ही उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी पड़ेगी, क्योंकि निर्णय सुरक्षा परिषद का है। पाकिस्तान को तमाम किस्म के आर्थिक प्रतिबंध भी चस्पां करने होंगे। संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति ने अंततः भारत सरकार के 12 पन्नों के उस डॉजियर का ही संज्ञान लिया, जिसे पाकिस्तान की हुकूमत नकारती रही थी। अब आतंकवाद पर पाकिस्तान भी व्यापक दृष्टि से सोचेगा। क्या वह आतंकवाद से मुक्त होकर अपने देश को चलाना चाहेगा? क्या फौज आतंकवाद से पिंड छुड़ाने में हुकूमत की मदद करेगी? क्या पाकिस्तान की राष्ट्रीय नीतियों में से आतंकवाद को निकाल दिया जाएगा? ये कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब पाकिस्तान से लगातार पूछे जाएंगे। मसूद अजहर पर यूएन का प्रतिबंध ही पर्याप्त नहीं है। उसे व्यावहारिक स्तर पर अंजाम सबसे पहले पाकिस्तान को ही देना है।