मुद्दाविहीन भारतीय राजनीति

ललित ठाकुर

प्रवक्ता, राजनीति विज्ञान

विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत, जहां बहुदलीय व्यवस्था है। सभी राजनीतिक दल वर्तमान में 17वीं लोकसभा के चुनावों में  जोर आजमाइश कर रहे हैं। देश की सत्ता किस राजनीतिक दल के पास आती है, यह तो वक्त ही बताएगा, परंतु वर्तमान में भारतीय राजनीति की दशा-दिशा क्या होनी चाहिए, यह एक बड़ा प्रश्न है? भारत विश्व में उभरती हुई शक्ति के रूप में सामने आ रहा है, परंतु  कहीं न कहीं हम अंदर से खाली होते जा रहे हैं। वर्तमान में लोगों का राजनीति से मोहभंग होता जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, महंगाई, देश की आंतरिक व बाह्य सुरक्षा, गरीबी, सामाजिक असमानता, न्याय, अधिकार, महिला सुरक्षा आदि आवश्यक मुद्दे लुप्त होते जा रहे हैं। वर्तमान में इन मुद्दों की तरफ कोई ध्यान न देकर सिर्फ एक-दूसरे दल या व्यक्ति को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है। भारत की अधिकतर जनसंख्या गांव में रहती है। आज बहुत से गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गांव बिजली, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य, यातायात सुविधाओं से वंचित हैं। आज आजादी के 71 वर्ष बाद भी नागरिकों को अपने नेता से पानी, बिजली के बारे में बात करनी पड़ रही है, हालांकि काम हो या न हो, यह बाद की बात है। इसी वजह से लोग अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। आज देश के युवा बेरोजगारी के इस दौर में भटकते फिर रहे हैं। 21वीं सदी के इस वैश्वीकरण के दौर में  देश ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व बहुराष्ट्रीय निगमों व निजीकरण की ओर चल रहा है, परंतु सरकार की उदारीकरण की नीतियों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र पर कम ध्यान दिया जा रहा है। सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा में देश की मिश्रित अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। आज देश की सरकारों या यूं कहें कि राजनीतिक दलों को देश के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, विदेश नीति आदि मुद्दों को अपने घोषणा-पत्र में स्थान देकर उसे अमलीजामा पहनाने की आवश्यकता है, नहीं तो इस मुद्दाविहीन राजनीति से देश की दशा व दिशा अस्त-व्यस्त हो जाएगी। आज देश का नागरिक देश का विकास चाहता है, चाहे यह किसी भी पार्टी की सरकार करे।