मुद्दे बटोरने की पहल

कांगड़ा में अपने प्रत्याशी के नामांकन से गद्गद कांग्रेस ने मुद्दे बटोरने शुरू किए हैं। हालांकि कांग्रेस के भीतर मतैक्य का अभाव पार्टी की चोटी पकड़ कर चेतावनी दे रहा है, फिर भी कांगड़ा के प्रांगण में मुद्दों की लू महसूस होने लगी है। पवन काजल के नामांकन ने कुछ अहम मुद्दे चुनकर कांगड़ा के माहौल में गरमाहट ला दी है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दूसरी राजधानी का मसला उठाया, तो नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने केंद्रीय विश्वविद्यालय की सियासत पर भाजपा के सिर पर दोष मढ़ा है। चंबा सीमेंट प्लांट, फोरलेन, रेलवे ब्रॉडगेज तथा स्मार्ट सिटी परियोजना पर छाई खामोशी पर प्रहार करती कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि अब मुद्दों के साथ प्रचार करते हुए भाजपा की जवाबदेही तय की जाएगी। इससे पूर्व अमर्यादित संस्कारों में पलती सियासत ने हिमाचल में वैमनस्य भरे जज्बात जाहिर किए, तो लगा कि पहाड़ भी अपनी शैली भूल गया। हिमाचल की खासियत राजनीतिक आचरण में रही है और इसलिए नेताओं का चरित्र अपने दायरों को अंगीकार करता रहा। कुछ अनावश्यक विवादों को भूल जाएं, तो दोनों प्रमुख पार्टियों ने मर्यादा के भीतर रहकर ही विरोध दर्ज किए। ऐसे में अब अगर मुद्दों पर बात होने लगी है, तो इम्तिहान तमाशबीन नहीं रहेगा और न ही मतदाता अपनी जिरह को भूल कर किसी संभावना का अपमान करेगा। कांग्रेस ने कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के मुद्दे या यूं कहें कि भाजपा के वादों की बिखरती रेत दिखाई है, तो अब हिमाचल के अधिकार भी गूंजेंगे। इसलिए फिर से हिमाचल या हिमालय रेजिमेंट की बात भाजपा की ओर से आ रही है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में एम्स का पता पूछती सियासत को अगर बिलासपुर से सुरेश चंदेल का कांग्रेस में आगमन प्रभावित कर रहा है, तो नेताओं के आदान प्रदान में हम हिमाचल के चरित्र को पहचान सकते हैं। आश्चर्य यह कि केंद्रीय मुद्दे हिमाचल को नजरअंदाज करते रहे हैं, इसलिए प्रदेश के नेताओं की काबिलीयत संसद में दर्ज नहीं होती। पिछले एक डेढ़ दशक से सियासत ने दिल्ली की निगाहों से देखना शुरू किया, तो विस्थापन के दर्द व रेल विस्तार के मर्ज का इलाज पूछा जा रहा है। हिमाचल में कनेक्टिविटी के प्रश्न पर फोरलेन से एयरपोर्ट विस्तार तक की अपेक्षाओं का हिसाब है। कांगड़ा से तो पूर्व सांसद शांता कुमार के कई ड्रीम प्रोजेक्ट दिल्ली से ओके नहीं हुए, लेकिन वर्तमान राज्य सरकार के वादों में भी ‘उड़ान’ का जिक्र मंडी की महत्त्वाकांक्षा में एक अदद एयरपोर्ट का इंतजार कर रहा है। जयराम सरकार ने पर्यटन की नई दृष्टि से हिमाचल को पेश करना शुरू किया है, तो केंद्रीय मदद का हिसाब जरूर होगा। यहां उन रिश्तों की महफिल भी सजी है, जो घनिष्ठता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पिछले पांच साल देखती रही। यह अटल बनाम मोदी भी है, क्योंकि कुल्लू घाटी में स्वर्गीय वाजपेयी की यादें इस बार भी लोकसभा चुनाव से कुछ पूछ रही हैं। यह जिक्र इसलिए कि अंजाम तक पहुंची रोहतांग सुरंग पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल के नाम को चरितार्थ करता हिमाचली संबंधों का यादगार सत्य है। अटल के कारण ही औद्योगिक पैकेज ने बीबीएन को हिमाचल की रीढ़ बनाया, तो ग्रामीण सड़क परियोजनाओं के कारण गांव और ग्रामीण आर्थिकी को नया आयाम मिला। मोदी सरकार ने हिमाचल को दो स्मार्ट सिटी तथा अनेक नेशनल हाई-वे व फोरलेन दिए, लेकिन ये परियोजनाएं चुनावी हिसाब की तरह केवल जिरह बनकर ही दिखाई देती हैं। सैन्य पृष्ठभूमि होने के नाते हिमाचल में वन रैंक वन पेंशन का खिताब भले ही मोदी सरकार को मिलेगा, लेकिन आतंक की वारदातों ने जो सूरमा मौत की नींद सुलाए हैं, वहां प्रश्न उठते हैं। सरहद पर हिमाचली जज्बात की कहानी अगर राष्ट्रवाद की जुबानी पसंद आएगी, तो मोदी प्रचार का यह मंत्र चुनाव का सूत्रधार बन सकता है। कांग्रेस ने मुद्दों की खाक छाननी शुरू की है, लेकिन पार्टी के भीतर जो छन नहीं रहा उस मिलन की अदाकारी भी तो मतदाता को समझ नहीं आ रही। बेशक मुद्दे बैसाखियों पर नहीं  चलते और न ही हिमाचली मतदाता को अपशब्दों की आग का दरिया पसंद नहीं आता, फिर भी उम्मीदवारों की पहचान और पृष्ठभूमि पर चर्चा तो गली-गली होने लगी है।