योग की संपूर्ण प्रक्रिया

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

ध्यानलिंग यह क्या है? अगर आज आप जीवन पर गौर करें, तो आधुनिक विज्ञान यह बिलकुल साफ  तौर पर कह रहा है कि सारा अस्तित्व बस एक ऊर्जा है, जो खुद को कई अनगिनत रूपों में व्यक्त कर रही है। बात केवल इतनी है कि इसकी अभिव्यक्ति (व्यक्त होने के) के स्तर अलग-अलग होते हैं। अगर हर चीज एक ही ऊर्जा है, तो क्या आप हर चीज के साथ एक ही तरह का बर्ताव करेंगे। अभी-अभी हमने भोजन किया है। इतने किस्म के व्यंजन थे कि मैं देखकर हैरान था। मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि क्या खाऊं। मैंने मोमिता से कहा, कृपया मेरे लिए व्यंजन चुन दो। मैं सैकड़ों किस्म के व्यंजनों में से नहीं चुनना चाहता था। अब यह भोजन, जब आपकी थाली में है, यह बहुत शानदार, स्वादिष्ट और रुचिकर है। आपने जो भोजन किया है, कल सुबह उसका क्या होता है? यह मल बन जाता है। यह स्वादिष्ट भोजन और वह मल, दोनों एक ही ऊर्जा हैं। यह भोजन जो आपने किया है और जो यह बन जाता है, क्या आप दोनों के साथ एक ही तरह से पेश आते हैं। जब यह मिट्टी में मिल जाता है, तो कुछ ही दिनों में यह फिर भोजन के रूप में उग आता है। आप इसे फिर खाते हैं और आप अच्छी तरह से फिर जानते हैं कि यह किस चीज में बदल जाता है। यह एक ही ऊर्जा है जो अलग-अलग रूप धारण करती है। यह रूप और वह रुपए दोनों में कितना बड़ा अंतर है, है न? जब आप मिट्टी को भोजन में बदल देते हैं, तो आप इसे खेती कहते हैं,जब भोजन को ऊर्जा में बदलते हैं, तो उसे पाचन कहते हैं। जब पत्थर को ईश्वर में बदल देते हैं, तो उसे प्रतिष्ठा कहते हैं। इसी तरह से, जिसे आप सृष्टि कहते हैं, वह भी वही ऊर्जा है बहुत स्थूल से लेकर बहुत सूक्ष्म तक। जिसे आप ध्यानिलंग कह रहे हैं वह ऊर्जा को सूक्ष्म से सूक्ष्मतर स्तरों तक ले जाने का नतीजा है। योग की संपूर्ण प्रक्रिया बस यही है, कम से कम भौतिक बनना और ज्यादा से ज्यादा तरल बनना, ज्यादा से ज्यादा सूक्ष्म बनना है। मिसाल के लिए समाधि वह अवस्था है, जहां शरीर के साथ संपर्क को कम से कम करके एक सिर्फ  जगह पर बनाकर रखा जाता है और बाकी ऊर्जा ढीली रहती है, अब वह शरीर से जुड़ी नहीं रहती। एक बार जब ऊर्जा इस तरह से हो जाती है तो फिर उसके साथ बहुत कुछ किया जा सकता है। अगर ऊर्जा अटकी हुई है, शरीर के साथ पहचान बनाए हुए है, तो उसके साथ कुछ खास नहीं किया जा सकता।