विश्वकर्मा पुराण

इसके बाद योग्य विधि से अग्नि स्थापना करके उस अग्नि में ग्रह होम इत्यादि करने के बाद अष्टाक्षर मंत्र का दशांश होम करना चाहिए। होम संपूर्ण करके पूर्णाहुति डालनी चाहिए और इसके बाद पुराण सुनने की विधि तथा उसका फल सुने। इसके बाद पुराण स्वरूप भगवान का पूजन करके भेंट देनी चाहिए। भगवान विश्वकर्मा का पूजन करते समय अनेक प्रकार का उत्तम उपचारों तथा वस्त्रों और अलंकारों से पुराण का पूजन करना चाहिए। इसके बाद पुराण के पास में खड़ाम तथा सुवर्ण का हंस रखना तथा सब आयुध चांदी के बनाकर रखने के बाद ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण को अनेक प्रकार के वस्त्र अलंकार जूता, छतरी अनेक उपयोगी वस्तु बरतन वगैरह का दान करना चाहिए। सब धान्य फल तथा कंद वगैरह अर्पण करना इसके बाद वाचक को तथा जप करने वाले को योग्य दक्षिणा देनी। प्रभु का विसर्जन करना तथा वाचक को बाजे गाने के साथ उसके घर पहुंचा देना। शेषजी बोले, हे बादशायन! प्रभु की लीलाओं का जिसमें समान वंश हुआ है, वह पुराण भी प्रभु में है तथा उन प्रभु की लीलाओं को सुनाने वाला ब्राह्मण भी प्रभु में है। इस प्रकार से सब कार्य करने के बाद अपने रखे हुए अखंड दीपक को विश्वकर्मा के मंदिर में रख आना तथा उसके साथ सवा रुपया भेंट रखनी चाहिए। इस प्रकार से इसको सुनने की पांच दिन की विधि है।  हे बादशायन! इस प्रकार की विधि से जो मनुष्य इसे सुनते हैं उनको सब प्रकार का फल प्राप्त होता है तथा अनेक प्रकार के सुखों को भोग कर उत्तम गति को प्राप्त करते हैं। बादशायन बोले, हे शेषजी! आपने इस कथा की जो विधि कही उससे हमको अत्यंत आनंद हुआ, परंतु आपने ये जो कहा कि पर्वनी के दिन से ही कथा सुननी हो वह पर्वनी के दिन कौन से हैं। वह आप हमसे कहो। शेष जी बोले, हे बादशायन! तुम जानते हो कि महासुदी त्रयोदशी भगवान विश्वकर्मा की जयंती का दिन है। अमावस्या प्रभु के अधिकार की तिथि है। बसंत पंचमी माता रत्नादे की लग्न की तिथि है। श्रावण सुदी पूनों को सूत धारण करने का दिन है। इससे प्रत्येक मास की दोनों पंचमी दोनों त्रयोदशी पूर्णिमा तथा अमावस्या छह तिथियों को पर्वनी के दिनों में गिना गया है। इसमें भी अमावस्या चंद्र के क्षय के लिए नहीं लेनी, परंतु इसके सिवाय पांचों दिनों को पर्वनी के दिन गिनकर पुराण सुनने के लिए गहन करने और अगले दिन महात्म्य सुनकर पर्व के दिन से पुराण सुनना। शेषजी बोले, हे बादशायन! इस प्रकार से तुमने जो कुछ पूछा वह मैंने तुमसे कहा। अब तुम्हारी क्या सुनने की इच्छा है वह हमसे कहो। सूतजी बोले, हे शौनक! तुमने जो कुछ प्रश्न पूछा था। उसके उत्तर में मैंने तुमको शेष बादशायन के संवाद के रूप में सब हकीकत कही, अब आगे तुमको क्या सुनने की इच्छा है वह कहो।

सूत! सूत! महाभाग बंदनो बदतांवर।

पुराण श्रवणे कि स्यात्फलं पाप नाशक।।

हे सूत! हे वक्ताओं में श्रेष्ठ! हे महाभाग्यशाली सूत! इन परम कृपालु प्रभु श्रीविश्वकर्मा के पुराण को सुनने से क्या फल मिलता है। वह भी आप हमसे कहो कारण कि पुराण श्रवण की विधि सुनने के बाद बादशायन के किए हुए प्रश्न के उत्तर में श्रीशेषनारायण ने श्रवण का फल भी कहा था, ऐसे सुना है। सूतजी बोले, हे ऋषियों! तुम कहते हो वह बात सत्य है। जब शेषजी सब ऋषि तथा प्रजा सहित बादशायन से पुराण के श्रवण की विधि कह रहे थे। बादशायन बोले, हे शेष! इस उत्तम पुराण के श्रवण करने से किस फल की प्राप्ति होती है वह तुम हमसे कहो। बादशायन का ऐसा प्रश्न सुनकर शेष जी बोले, हे बादशायन मैंने तुमको विश्वकर्मा पुराण का श्रवण कराया है तथा तुमने वह पुराण पूरा सुना है। फिर पुराण श्रवण का क्या फल है। ये तो तुम अपने आप ही देख चुके हो। तुमने भगवान के इस ज्ञान देह का श्रवण किया इसलिए तुरंत ही भगवान ने अपने दिव्य देह का तुमको दर्शन दिया है।