वीरभद्र-सुखराम की सियासत में तपता मंडी

2014 के चुनाव में प्रतिभा सिंह को भी लीड नहीं दिला पाया था पंडित परिवार

शिमला – प्रदेश के कद्दावर नेता वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम की सियासी ज्वाला में मंडी हमेशा से ही तपती रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हालांकि प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी और मंडी सीट पर उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह प्रत्याशी। यहां की जनता ने प्रतिभा सिंह पर भरोसा नहीं किया और भाजपा के रामस्वरूप शर्मा पर मुहर लगा दी। जिला मंडी के नौ में से आठ विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिभा सिंह को लीड नहीं मिल पाई। उस समय भी मंडी में पंडित सुखराम और उनके पुत्र अनिल शर्मा की राजनीतिक खूब चलती थी। बावजूद इसके वीरभद्र सिंह पत्नी प्रतिभा सिंह को लीड दिलाने में असफल रहे। इस बार जब वीरभद्र परिवार चुनवी जंग से पीछे हटा तो पंडित सुखराम ने अपने पोते आश्रय को धकेल दिया। मंडी सीट पर वीरभद्र और पंडित सुखराम परिवार की सियासत पर गौर करें तो पिछली बार प्रतिभा हारीं, तो क्या इस बार आश्रय जीत पाएंगे? इसे लेकर दोनों परिवारों में अंदरखाते समीकरण बन रहे हैं और बिगड़ भी रहे हैं।  पिछली बार भाजपा के रामस्वरूप शर्मा को 362824 और कांग्रेस की प्रतिभा सिंह को 322968 वोट मिले। प्रतिभा सिंह को रामस्वरूप शर्मा ने 39 हजार मतों से पराजित किया था। दूसरी तरफ मंडी संसदीय क्षेत्र की सियासत में आज तक राज परिवारों का ही योग रहा। आज तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में 10 बार राजघराने के नेताओं पर ही जनता ने भरोसा किया और उन्हें संसद में पहुंचाया। वर्ष 1952 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए तो मंडी संसदीय सीट से राजकुमारी अमृत कौर जीती थी। उसके बाद 1957 में जोगंद्र सेन, 1962 और 1967 में ललित सेन, 1972 में वीरभद्र सिंह, 1980 में वीरभद्र सिंह, 1989 में महेश्वर सिंह, 1998 और 1999 में भी महेश्वर सिंह, 2004 में प्रतिभा सिंह, 2009 में फिर से वीरभद्र सिंह और 2013 के उप चुनाव में एक बार फिर से प्रतिभा सिंह ने जीत दर्ज की थी। यही नहीं, बल्कि मंडी संसदीय सीट पर पूर्व सांसद पंडित सुखराम का भी दबदबा कायम रहा। उन्होंने 1984, 1991 और 1996 में कांग्रेस टिकट से जीत दर्ज की थी।

आया राम-गया राम पर पंडित सुखराम चुप

मंडी सीट पर कांग्रेस ने सुखराम के पोते आश्रय शर्मा को मैदान में उतारा है, लेकिन वीरभद्र सिंह द्वारा बार-बार दिए जा रहे आया राम और गया राम के बयान पर सुखराम फिलहाल चुप बैठे हैं। भले ही वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम हाल ही में गले भी मिले हों, मगर अभी तक दिल नहीं मिल पाए हैं।  ऐसे में जाहिर है कि चुनावी नतीजे के बाद पंडित सुखराम का गुबार भी निकल सकता है।