सजने-संवरने में बेमिसाल हैं शहनाज

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है पांचवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

फिर उन्होंने मुड़कर बड़ी ही नजाकत से अपने बालों के बुफे को थामने वाली बड़ी सी काली पिन को निकाल दिया। उनके लंबे, शानदार बाल उनके कंधों पर से झूलते हुए नीचे आ गए। मैं उन्हें देखकर मुस्कुरा रही थी। ‘अब खुश हो?’, उन्होंने पूछा।  ‘हां, मम, आपके बाल ऐसे ही बेहद प्यारे लगते हैं। आप इन्हें बांधती क्यों हो?’ मैंने बड़े ही जोश से कहा, क्योंकि फरमाइश पूरी हो गई थी। मैं उन्हें बाल बनाते हुए देख रही थी, उनकी उंगलियां बड़ी होशियारी से चोटी की गुंथ पर चल रही थीं, जिसे वह पीछे झूलने के लिए छोड़ने वाली थीं। आंखों के कोने से वह मुझे भी देख रही थीं कि किस कद्र मैं उन्हें देख रही हूं। एक छोटी बच्ची के लिए यह रूपांतरण किसी जादू से कम नहीं था। उन्होंने अपनी आंखों में काजल डाला और फिर अपनी पसंदीदा लिपस्टिक लगाई। उनके टाइट्स उनके टॉप के साथ बहुत अच्छी तरह मैच कर रहे थे और उस पर से बड़े गो-गो ग्लासेस ने तो चार चांद ही लगा दिए। फिर वह एक बार और खुद को शीशे में देखने के लिए मुड़ीं, उसकी रंजामंदी के लिए, और जब इस डे्रस-अप में उन्होंने अपनी मुस्कान भी जोड़ दी तो आईना भी कह उठा-सजने-संवरने की कला में आप लाजवाब हैं। और मैं इसी खुमार से खुश थी कि एक दिन मैं भी उन्हीं की तरह दिखूंगी। गाड़ी का तेज हॉर्न बजने से हम भागकर, बाहर इंतजार कर रहे पापा की गाड़ी में जा बैठे, वह हमें खुले नए होटल में लेकर जाने वाले थे। छोटी सी लाल-सफेद रंग की स्टैंडर्ड हेराल्ड दिल्ली की आलीशान सड़कों पर दौड़ पड़ी। ओबरॉय होटल तभी बस खुला ही था, जो आगे आने वाले सालों में दिल्ली की पसंदीदा जगहों में से एक बनने वाला था। वहां का कॉफी शॉप मस्ती का नया ठिकाना था, उसमें कॉफी और स्नैक्स की मिली-जुली महक आ रही थी। माहौल में चहल-पहल थी, कॉफी मशीन बराबर अपना काम कर रही थी और कभी-कभी हाई हील शूज की टकटक सबका ध्यान खींच लेती थी। जैसे ही हमने ठंडी लॉबी में पैर रखा, हमारी नजर भीड़ से घिरे आकर्षक युगल पर पड़ी। वहां क्रिकेट के हीरो, नवाब पटौदी अपनी बेगम, ग्लैमरस हीरोइन शर्मिला टैगोर के साथ खड़े थे। मेरी मां भी उन्हें देखकर बेहद रोमांचित हो गई थीं। वह बार-बार मुड़कर उनकी नजदीकी झलक देखने की कोशिश कर रही थीं। उन्होंने इससे पहले किसी सुपर स्टार को नहीं देखा था और वह एक सपने के सच होने जैसा था। आज मैं जब भी मॉम के साथ शॉपिंग के लिए निकलती हूं, तो उनके प्रशंसकों की भीड़ से बच पाना मुश्किल हो जाता है। उनके ऑटोग्राफ के लिए कोई पेपर आगे करता, कोई स्क्रैप बुक और कोई तो अपना हाथ ही आगे बढ़ा देता। भारत की खूबसूरत मल्लिका, जिन्होंने खुद अपने हाथों से अपना साम्राज्य खड़ा किया।