सड़कों पर दौड़ती साक्षात मौत

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

 

यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बढ़ते सड़क हादसों के कसूरवार इन बस ड्राइवरों के हौसले इतने बुलंद क्यों हैं? क्या पुलिस और परिवहन अधिकारियों द्वारा सभी ड्राइवरों के वाहन परिचालन पर नजर रखी जा रही है? क्या यह जांचा भी जा रहा है कि कहीं ड्राइवर-कंडक्टर ने दिनदहाड़े ही तो शराब नहीं पी रखी है…

हिमाचल प्रदेश में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का सिलसिला अंतहीन है। हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी सूचना के अनुसार 2007-08 से 2009-10 की तीन वर्षों की अवधि में हिमाचल प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं में तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इनमें से 98 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं शराब पीकर वाहन चलाने, मानवीय गलतियों, लापरवाही और तेज रफ्तार के कारण हुई हैं। इसके अलावा सवारियों और सामान की ओवरलोडिंग, ओवरटेक करना, तीखे मोड़ों पर तेज वाहन दौड़ाना, वाहन चलाते वक्त फोन सुनना, सीट बैल्ट तथा हेल्मेट न पहनना इत्यादि भी इन दुर्घटनाओं के पीछे के मुख्य कारण माने गए हैं।

विश्व में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं के चलते 12 लाख लोग मारे जाते हैं, जिनमें से 46 प्रतिशत पदयात्री और मोटरसाइकिल चालक होते हैं। विश्व के मात्र एक फीसदी वाहन भारत में हैं, लेकिन विश्व में सड़क दुर्घटना में मरने वाले लोगों में भारतीय हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है। भारत में हर घंटे 15 व्यक्ति सड़क दुर्घटना में मरते हैं और 1400 घायल हो जाते हैं। सड़क दुर्घटना में 30 प्रतिशत से अधिक संख्या बच्चों और 25 वर्ष से कम आयु वाले युवाओं की होती है। ऐसे में इनके परिवारों को होने वाली पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में सड़क दुर्घटना डाटा प्रबंधन प्रणाली की शुरुआत जुलाई 2015 में हुई, तो हिमाचल सड़क दुर्घटनाओं का डाटा एकत्र करने वाला देश का पहला राज्य बना था। इसे ब्रिटेन की कंपनी टीआरएल लिमिटेड द्वारा केरल की एक्सपीरियन टेक्नोलॉजी इंडिया के सहयोग से तैयार किया गया था। इसके द्वारा प्रदेश में दुर्घटना संभावित स्थल चिन्हित करने, घटना के कारणों को जानने, इनसे संबंधित आंकड़े एकत्रित करने तथा इनका आकलन कर सुधार के लिए समुचित कदम उठाने की सोच थी। क्या वास्तव में ही हम इस प्रणाली का भरपूर फायदा उठा पाए हैं? आज हिमाचल प्रदेश की सड़कों पर बढ़ती वाहनों की भीड़ के बीच बस चालकों द्वारा अनियंत्रित तथा बदहवास होकर बसों को चलाना कहीं न कहीं आम आदमियों की जिंदगियों को खतरे में डालता है। यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर बढ़ते सड़क हादसों के कसूरवार इन बस ड्राइवरों के हौसले इतने बुलंद क्यों हैं? क्या पुलिस और परिवहन अधिकारियों द्वारा सभी ड्राइवरों के वाहन परिचालन पर नजर रखी जा रही है? क्या यह जांचा भी जा रहा है कि कहीं ड्राइवर-कंडक्टर ने दिनदहाड़े ही तो शराब नहीं पी रखी है और नशे की हालत में सड़क पर गाड़ी को दौड़ा रहे हैं? क्या ड्राइवरों को लाइसेंस जारी करने की पूरी प्रक्रिया में तय मानकों का ध्यान रखा गया है? अन्यथा यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि अधिकतर मामलों में वाहन चलाने के लाइसेंस की प्रक्रिया  खामियों से युक्त है। सड़कों की खस्ता हालत, क्रैश बैरियर्स का न होना, ब्लैक स्पॉट, तेज रफ्तार, पैरापिट का न होना, नशे में वाहन चलाना आदि कुछ ऐसे मूलभूत कारण हैं, जो रोजाना होती दुर्घटनाओं की कहानी बयां करते हैं। बाजारों के अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग पर कहीं भी ट्रैफिक पुलिस और हाई-वे पुलिस के लोग दिखाई नहीं पड़ते हैं। यात्रियों को ढोने की मारामारी में पहले बस ड्राइवर आधा-आधा घंटा बस अड्डों या चौक पर खड़े रहते हैं, फिर अपना टाइम पूरा करने की गर्ज के चलते बेतहाशा स्पीड से बसों को दौड़ाते हैं, इन पर कौन लगाम कसे?

हिमाचल में औसतन हर 96 मिनट में एक सड़क हादसा होता है और हर साढ़े तीन घंटे में एक व्यक्ति की मौत होती है। 2017 में हिमाचल प्रदेश में कुल 3114 सड़क हादसों में 1203 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं और 5452 लोग घायल हुए थे। आज परमिट-टाइम टेबल, रूट्स, टैक्स, सड़क दुर्घटनाओं में हुईं मौतों के मुआवजों और प्रदूषण को लेकर अनेक मामले अदालतों में चल रहे हैं। निजी और सरकारी बसों के ड्राइवरों में समयसारिणी और सवारियों को लेकर होती मारपीट लोगों में भय पैदा करती है। आखिर कब हमारे नागरिकों को शांतिपूर्ण, सुखमय एवं भयमुक्त वातावरण में यात्रा करने की सुविधाएं नसीब होंगी? क्या कोई मसीहा आएगा, हमारे दुख-संकटों को हरने के लिए अथवा ‘ऐसे ही चलता है’ वाला रवैया बना रहेगा?

मनुष्य जीवन अनमोल है, इसलिए सभी प्रकार के वाहन चालकों को सावधानी से वाहन चलाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि सड़क सुरक्षा संबंधी जानकारी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इसके अलावा पुलिस, ट्रैफिक एवं परिवहन विभाग को संयुक्त रूप से स्कूलों और महाविद्यालयों में विशेष सेमिनार आयोजित कर युवाओं को वाहन चलाने की बारीकियों को समझाने, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने तथा सड़क सुरक्षा उपायों को सिखाने की जरूरत है।