समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों के रहस्य

समुद्र मंथन के दसवें क्रम में चंद्रमा निकला जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा प्रतीक है शीतलता का। जब मन बुरे विचारों, लालच, वासना, नशा आदि से मुक्त हो जाएगा तब हम सबका मन चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा। परमात्मा को पाने के लिए हम सब के पास ऐसे ही मन की आवश्यकता है। परमात्मा शीतल मन के निकट स्वभाव से ही रहते हैं…

-गतांक से आगे…

  1. वारुणी देवी

समुद्र मंथन के नौवें क्रम में निकली थी वारुणी देवी। सभी देवताओं की अनुमति से इसे असुरों ने ले लिया। वारुणी का अर्थ होता है मदिरा यानी नशा। यह भी एक बुराई है। असुर बुराई के ही प्रतीक होते हैं, इसलिए वे वारुणी को प्रसन्न होकर स्वीकार करते हैं। मांसाहार करना व मदिरा पान करना असुरों के शौक माने जाते हैं। इसी शौक के कारण वे अपनी शक्तियां खो देते हैं।

  1. चंद्रमा

समुद्र मंथन के दसवें क्रम में चंद्रमा निकला जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा प्रतीक है शीतलता का। जब मन बुरे विचारों, लालच, वासना, नशा आदि से मुक्त हो जाएगा तब हम सबका मन चंद्रमा की तरह शीतल हो जाएगा। परमात्मा को पाने के लिए हम सब के पास ऐसे ही मन की आवश्यकता है। परमात्मा शीतल मन के निकट स्वभाव से ही रहते हैं।

  1. पारिजात वृक्ष

समुद्र मंथन के 11वें क्रम में पारिजात वृक्ष निकला। पारिजात वृक्ष की विशेषता थी कि इसे छूने से ही शरीर की सारी थकान मिट जाती थी। पारिजात वृक्ष को भी देवताओं ने अपने पास ही रख लिया। समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष निकालने का अर्थ है किसी भी मनुष्य को सफलता प्राप्त होने से पहले मिलने वाली शांति। जब हम परमात्मा के निकट पहुंचते हैं तो हमारी थकान मिट जाती है और हम सबके मन में शांति का एहसास होता है।

12 पांचजन्य शंख

समुद्र मंथन से बारहवें क्रम में पांचजन्य शंख निकला था। इस शंख को भगवान श्री हरि विष्णु ने ग्रहण किया। शंख को विजय का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही शंख की ध्वनि बहुत ही ज्यादा शुभ मानी गई है। हमारे पुराण कहते हैं कि जब हम सब परमात्मा रूपी अमृत से एक कदम की दूरी पर होते हैं तो मन का खालीपन ईश्वरीय नाद से भर जाता है। ऐसी स्थिति में जाकर हम सबको परमात्मा का साक्षात्कार होता है।

  1. व 14. भगवान धन्वंतरि व अमृत कलश

समुद्र मंथन के सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे। लाइफ  मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से कहा जाए तो भगवान धन्वंतरि प्रतीक हैं निरोगी तन व निर्मल मन के। समुद्र मंथन में 14 नंबर पर अर्थात सबसे अंतिम में अमृत निकला था। इसका अर्थ यह है कि पांच कर्मेंद्रियां, पांच जननेंद्रियां तथा अन्य चार हैं मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। अगर हम इन सभी पर नियंत्रण करने में कामयाब रहे, तभी हम सबको अपने जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो पाएगी।