सवा लाख हेक्टेयर जमीन बंजर

महंगे बीज; सबसिडी कम होने से सात लाख किसानों ने छोड़ी खेती, उपयोगी नहीं रही पौने आठ लाख हेक्टेयर भूमि

शिमला – हिमाचल में किसानों की सात लाख 77 हजार 484 हेक्टेयर कृषि लायक भूमि अनुपयोगी हो गई है।  हैरानी की बात है कि कृषि लायक अब अनुपयोगी हुई, इस भूमि पर लगभग प्रदेश के सात लाख किसान-बागबान खेतीबाड़ी कर सकते थे।  वर्तमान में इस भूमि पर ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लाखों किसान कुछ और बिजनेस कर रहे हैं।  एक तरफ केंद्र व राज्य सरकार सबसे ज्यादा किसानों व बागबानों की आर्थिक सहायता की बात करती हैं, वहीं हिमाचल में अच्छी पैदावार को लेकर भी बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती हैं। बावजूद इसके हर साल हिमाचल में किसानों व बागबानों की स्थिति साल दर साल खराब होती जा रही है। हिमाचल में एक तरफ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात भी की जा रही है, वहीं दूसरी और किसानों को मिलने वाले बीज व उपकरणों में सबसिडी कम करने की वजह से गिने-चुने किसान ही प्राकृतिक खेती को भी अपना रहे हैं। भले ही कृषि विभाग इस बात पर अपनी पीठ थपथपा रहा हो कि उन्होंने एक साल में 3000 किसानों को प्राकृतिक खेती के साथ जोड़ा है, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि बंजर व अनुपयोगी भूमि को उपयोगी बनाने के लिए विभाग ने क्या पहल की। बता दें कि हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों को मिलाकर एक लाख 21 हजार 667 हेक्टेयर भूमि भी कुछ वर्षों से खेतीबाड़ी न करने की वजह से बंजर बन गई है। हैरानी तो इस बात की है कि हिमाचल में दस फीसदी किसान ही अपने-अपने खेतों में सही रूप से फसलों व विभिन्न प्रोडेक्टों का उत्पादन कर रहे हैं।  अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में हिमाचल में कृषि लायक बची भूमि भी बंजर बन जाएंगी। सूत्रों की मानें तो हिमाचल में सात लाख 77 हजार 484 हेक्टेयर भूमि के बंजर होने का एक कारण यह है कि प्रदेश में किसानों पर लाखों का कर्जा हो गया है। लाखों के कर्ज में डूबे किसानों का कर्जा माफी करने को लेकर भी कोई कदम नहीं उठाए जा रहे है। यही वजह है कि  किसानों ने कर्ज चुकाने के लिए अब अपनी जमीन पर दूसरे कार्य शुरू किए हैं। हालांकि अब अगर कई किसान दूसरी बार अपनी जमीन में कृषि करना भी चाहते हैं, तो उन्हें अपने लेवल पर ही अपनी भूमि को उपजाऊ बनाना होगा। प्रदेश में कृषि विश्वविद्यालय व हार्टीकल्चरल विभाग में होने वाले रिसर्च भी फीके पड़ गए हैं। बेहतर कृषि के लिए मृदा, बीज व अच्छे प्रोडेक्ट को लेकर किए जाने वाले रिसर्च भी रिसर्च ऑफ डिवेलपमेंट विभाग की ओर से नहीं हो रहे हैं।