स्वजनों-सुहृदों से संबंध के इच्छुक-भूत

कुछ महीने कीरो संयोगवश एक प्रेत आवाहन की बैठक में जा पहुंचे और वहां पिता की प्रेतात्मा ने आकर उनको बतलाया कि ‘हमारे परिवार से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज लंदन के डेविस एंड सन सालिसिटर के यहां रखे हैं। उनका दफ्तर स्ट्रेंड में गिरजाघर के पास एक तंग सड़क पर है, जिसका नाम मैं भूल गया हूं। तुम उनके यहां जाकर उन कागजातों को ले आना।’…

-गतांक से आगे…

ब्राउन के स्वर्गवास से महारानी को आघात लगा। उसे व्यक्त करते हुए, उनके निजी सचिव सर हेनरी पौन सोनवी का एक वक्तव्य टाइम्स पत्र में प्रकाशित हुआ। उन्होंने कहा-स्वर्गीय ब्राउन की सहायता महारानी को निरंतर रहती थी। उनके स्वर्गवास पर साम्राज्ञी को भारी पीड़ा हुई है। इस आघात से इन दिनों वे बहुत दुर्बल हो गई हैं। जगद्विख्यात सामुद्रिक शास्त्र ज्ञाता कीरो के पिता का जिस समय देहांत हुआ, उस समय उनकी शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी और इसलिए वे कुछ आवश्यक बातें बताना चाहते हुए न बता सके और उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। कुछ महीने कीरो संयोगवश एक प्रेत आवाहन की बैठक में जा पहुंचे और वहां पिता की प्रेतात्मा ने आकर उनको बतलाया कि ‘हमारे परिवार से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज लंदन के डेविस एंड सन सालिसिटर के यहां रखे हैं। उनका दफ्तर स्ट्रेंड में गिरजाघर के पास एक तंग सड़क पर है, जिसका नाम मैं भूल गया हूं। तुम उनके यहां जाकर उन कागजातों को ले आना।’ दूसरे दिन कीरो उस सड़क पर पहुंचे और बहुत देर परिश्रम करने के बाद वह कार्यालय मिल गया। उसके पुराने मालिक तो मर चुके थे, पर उस कार्यालय को किसी अन्य वकील ने खरीद लिया था। नए मालिक ने पहले तो इतने पुराने कागजात को जल्दी ढूंढ सकने में असमर्थता प्रकट की, पर जब कीरो ने उसके क्लर्क को पुरस्कार देने की बात कही तो उसने पुराने बंडलों में से आधा घंटा मेहनत करके, उन दस्तावेजों को निकाल दिया। शरीर में त्याग के बाद भी आत्माओं का अस्तित्व बना रहता है। यदि संपर्क का उपयुक्त माध्यम बन सके तो उनके साथ घनिष्ठ संपर्क ही नहीं, वरन आशाजनक सहयोग भी प्राप्त किया जा सकता है। इस तथ्य की प्रामाणिकता में असंख्य उदाहरण उपलब्ध हैं। आवश्यकता उस विधि एवं उन तथ्यों को जानने की है। मृत्युपूर्व की आकांक्षाएं स्वयं प्रेतों को इस संपर्क के लिए आकुल रखती हैं, उचित तालमेल बैठ जाने पर प्रेतात्मा तथा संबंधित व्यक्ति दोनों ही लाभान्वित होते हैं। दोनों की आकांक्षा तृप्त होती है।

भूत से डरें नहीं, वह तो बस भूत है

काल के अनंत प्रवाह में बह रही जीवनधारा का प्रेत योनि एक नया मोड मात्र है। हमारे सीमित बोध जगत के लिए भले ही वह जीवनधारा खो गई प्रतीत होती हो, पर वह सर्वदा अविच्छिन्न रहती है और हमारा संस्कार-क्षेत्र मरणोत्तर जीवन में भी सक्रिय रहता है, अंतःकरण चतुष्ट्य मृत्यु के उपरांत भी यथावत बना रहता है।        

 (यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘भूत कैसे होते हैं, क्या करते हैं’ से लिए गए हैं)