हिमाचल के काला जीरा  चूली तेल का जीआई पेटेंट

शिमला – हिमाचल का काला जीरा और चूली के तेल का जीआई यानी भौगोलिक संकेतक पेटेंट हो गया है। हिमाचल प्रदेश विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने हाल ही में इस संदर्भ में पेटेंट   करवाया है। हालांकि प्रदेश में काला जीरा और चूली के तेल को सदियों से बेच जा रहा है, लेकिन इसकी मार्केट में ज्यादा वेल्यू नहीं मिलती थी। इसे देखते हुए हिमाचल प्रदेश पेटेंट सूचना केंद्र विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने जीआई एक्ट 1999 के तहत रजिस्ट्रार जीआई में सफलता पूर्वक पेटेंट करवाया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक हिमाचली काला जीरा को सर्टिफिकेट नंबर 336 और जीआई रजिस्ट्रेशन नंबर 432, हिमाचली चूली तेल को सर्टीफिकेट नंबर 337 और जीआई रजिस्ट्रेशन नंबर 467 के तहत पेटेंट किया गया। गौर हो कि हाल ही में विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने कृषि विवि पालमपुर द्वारा जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स एक्ट 1999 के तहत हिमाचली काला जीरा के लिए संयुक्त आवेदन दायर किया गया था। इस पेटेंट में किन्नौरी चूली तेल, बेमी तेल निर्माता एवं प्रोसेसर सोसायटी किन्नौर द्वारा चूली के निर्माताओं का पूरा पंजीकरण किया गया। इस पेटेंट से अब हिमाचली काला जीरा और चूली तेल की पहचान अंतरराष्ट्रीय बाजार में होगी और निर्माताओं को बाजार कीमत मिलेगी। इसके साथ-साथ देश के रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट्स सहित सभी प्रमुख बस अड्डों पर इन्हें बेचने की भी मंजूरी मिलेगी। उल्लेखनीय है कि हिमाचल में काला जीरा मुख्य रूप से जिला किन्नौर की सांगला घाटी और पूह ब्लॉक में मिलता है, जबकि चूली जिला किन्नौर सहित जिला शिमला और कुल्लू के कई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। गौरतलब है कि कांगड़ा चाय, चंबा रूमाल, कुल्लू शॉल और किन्नौरी शॉल का पेटेंट पहले ही हो चुका है।