एक देश, एक चुनाव

हरि मित्र भागी

सकोह, धर्मशाला

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में देश के भविष्य को लेकर ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार आया है, तो उस पर चिंतन करना होगा कि यह कैसे संभव है। चुनाव पर जो खर्च होता है, वह एक मजदूर से लेकर एक संपन्न वर्ग की कमाई है। चुनाव जीतने के लिए दल बदल, शराब का लालच देना आदि कई तरह के हथकंडे आजमाए जाते हैं। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि व्यक्तिगत शत्रुता पर आ पहुंची है। इसी परिस्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री ने निर्णय लिया है कि एक बार ही चुनाव कराए जाएं, ताकि चुनावों में पानी की तरह बहाया जाने वाला पैसा देश के विकास में लगाया जा सके। देश में बहुत बुद्धिजीवी, कानून विधि विशेषज्ञ, राजनीतिक विश्लेषक, पत्रकार, वैज्ञानिक, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, लेखक हैं, सभी को मिलकर इस मत पर विचार कर एक सही निष्कर्ष पर पहुंचना होगा। विचार करना होगा कि प्रधानमंत्री का यह सपना अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली के अतिरिक्त कैसे पूरा हो सकता है। संसदीय प्रणाली में यह असंभव है। विकल्प राष्ट्रपति प्रणाली ही है। संयुक्त राज्य अमरीका का संविधान अमरीका के तीसरे राष्ट्रपति ने बनाया व इसके बहुत कम पृष्ठ हैं। राष्ट्रपति के पास कार्यपालिका शक्तियां चार साल के लिए होती हैं व चार साल के लिए यह चुना जाता है। केवल दो बार यानी आठ वर्ष तक वह इस पद पर बना रह सकता है। कोई प्रधानमंत्री का पद नहीं और कोई मंत्रियों की फौज नहीं। उसी तरह प्रदेशों में राज्यपाल और मुख्यमंत्री का कोई पद नहीं। राष्ट्रपति सिर्फ दो बार चुना जा सकता है, मतलब कुर्सी पर सालों चिपके रहने का मोह और झंझट नहीं। राष्ट्रपति राष्ट्रहित में निर्णय लेने में स्वतंत्र होगा। इससे सरकारी सेवाओं में जटिलता समाप्त होगी। एक सही प्रणालीगत व्यवस्था का चुनाव करने की वजह से ही अमरीका जहां अपने लोगों को रोजगार दे रहा है, वहीं विदेशी भी अमरीका में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इससे बार-बार करोड़ों के हिसाब से चुनावों पर बहाया जाने वाला पैसा बच सकेगा, जिससे उस पैसे को राष्ट्रहित में प्रयोग किया जा सकेगा। समय की बचत होगी, तो प्रशासन का कार्य सुचारू रूप से चल सकेगा। मेरे विचार से राष्ट्रपति प्रणाली के अतिरिक्त अन्य कोई विधि नहीं है, जो ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का उद्देश्य हल कर सके। प्रधानमंत्री महोदय को चाहिए कि प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति प्रणाली का विजन राष्ट्र के सामने रखा जाए। स्व. संजय गांधी ने भी ऐसा ही मत साझा किया था। इस उद्देश्य को पूरा करना है, तो राष्ट्रपति प्रणाली का प्रस्ताव रखा जाना चाहिए और विपक्ष को भी अपने राष्ट्र का हित देखते हुए सही फैसलों में सत्तापक्ष ही नहीं, बल्कि पूरे देश का साथ देना चाहिए। वरना यह महज मुद्दा बनकर ही रह जाएगा। राष्ट्र में बेरोजगारी, किसानों व प्रशासनिक समस्याओं के उपचार के लिए इस प्रणाली की आवश्यकता समय की मांग है।