केजरीवाल की ‘मुफ्त’ मेट्रो

यह मुफ्त की राजनीतिक और चुनावी संस्कृति कब खत्म होगी? सरकारें अपने नागरिकों की सुविधाओं के लिए योजनाएं शुरू करें, कार्यक्रम बनाएं, लेकिन वोट पाने के चक्कर में सरकारी संसाधनों को क्यों लुटाया जाए? क्या देश का औसत करदाता ‘मुफ्तखोर संस्कृति’ के लिए ही अपना योगदान देता है? किसी राज्य में टीवी, फ्रिज, मिक्सी आदि बांटे जा रहे हैं। कहीं लैपटॉप ही नहीं, चावल, दूध, घी भी मुफ्त दिए जा रहे हैं, तो कहीं सोने के गहने या मंगलसूत्र तक मुहैया कराए जा रहे हैं। सरकारी मदद की एक सीमा होनी चाहिए। बेशक राज्य का राजकोष मुख्यमंत्री और कैबिनेट के अधीन होता है, लेकिन संवैधानिक विवेक भी तो अनिवार्य है। ताजातरीन उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है। उन्होंने महिलाओं के लिए मेट्रो रेल सेवा ‘मुफ्त’ करने की घोषणा की है। मेट्रो के संविधान में कहीं भी ऐसा प्रावधान नहीं है और संविधान में संशोधन का संवैधानिक अधिकार भी मुख्यमंत्री को नहीं है। मेट्रो केजरीवाल की निजी जागीर भी नहीं है। तो इस ‘लॉलीपॉप’ के मायने क्या हैं? दरअसल केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) लोकसभा चुनाव के बाद से बेहद भयभीत हैं, क्योंकि देश के 9 राज्यों में 40 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़कर मात्र एक सीट पर ही जीत हासिल हुई है। जिस ‘आप’ को 2015 के विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी से ज्यादा वोटों के साथ 67 सीटें मिली थीं, उसी पार्टी को लोकसभा चुनाव में सिर्फ 18 फीसदी वोट ही प्राप्त हुए। जाहिर है कि ‘आप’ का जनाधार सिकुड़ रहा है। पासा बिलकुल पलटता महसूस कर मुख्यमंत्री केजरीवाल का डर स्वाभाविक लगता है, लिहाजा दिल्ली की महिलाओं के सामने एक लालच परोसा है। दिल्ली मेट्रो में औसतन 10 लाख महिलाएं हररोज सफर करती हैं। बसों में भी लगभग इतनी ही महिलाएं यात्रा करती हैं। परिवहन सेवा दिल्ली सरकार के अधीन है, जबकि मेट्रो में भारत सरकार और दिल्ली सरकार 50-50 फीसदी की भागीदार हैं। तो अकेले ही केजरीवाल सरकार फैसला लेने की घोषणा कैसे कर सकती है? मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया है कि इससे करीब 1400 करोड़ रुपए का जो खर्च होगा, वह दिल्ली सरकार मेट्रो और डीटीसी को देगी। एक तरफ सबसिडी की अर्थव्यवस्था को खत्म किया जा रहा है, लेकिन केजरीवाल उसे जारी रखना चाहते हैं, क्योंकि किसी भी तरह विधानसभा चुनाव जीतना है। चुनाव जनवरी, 2020 में संभावित हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि यह सुविधा 2-3 महीने में शुरू हो सकती है। हमारा मानना है कि योजना समय से शुरू भी हो गई, तो उसका राजनीतिक लाभ उठाने को शेष 3-4 माह का समय काफी है। गौरतलब है कि महिलाओं की पहली प्रतिक्रिया सुखद है और वे यथाशीघ्र इस योजना को लागू करने की पक्षधर हैं। दिल्ली में 61.4 लाख महिला मतदाता हैं। मेट्रो को मुफ्त करने से केजरीवाल महिला सुरक्षा को भी जोड़ रहे हैं। सवाल ये भी उठने लगे हैं कि सिर्फ महिलाओं को ही क्यों, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए भी मेट्रो मुफ्त की जानी चाहिए। दिल्ली में करीब 13 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। मेट्रो का सफर उनके लिए महंगा है। उन्हें यह सुविधा क्यों न दी जाए? केजरीवाल ने बसों की यात्रा भी मुफ्त घोषित की है। डीटीसी और कलस्टर बसों की कुल संख्या करीब 5500 है। यदि यह योजना लागू की जाए और महिलाओं को सुरक्षा के मद्देनजर आरामदेय यात्रा उपलब्ध कराई जाए, तो कुल 11,000 बसें चाहिए। दिल्ली सरकार इतनी बसों का बंदोबस्त कहां से करेगी? दरअसल केजरीवाल सरकार ने सत्ता के साढ़े चार साल शोर मचाने और मोदी सरकार को ‘खलनायक’ करार देने में गुजार दिए। इस मुफ्त परिवहन को छोड़ भी दें, तो सीसीटीवी कैमरे लगने का काम अभी शुरू हुआ है, मुहल्ला अस्पताल मुफ्त नहीं हैं, आम अस्पताल में जनता कीड़े-मकौड़ों की तरह मौजूद है, बसों में मार्शल तैनात नहीं किए जा सके हैं। ज्यादातर काम चुनाव के आसपास ही याद आते हैं, तो कराए जा रहे हैं। मेट्रो और बस सेवा को महिलाओं के लिए फ्री करने की घोषणा भी यही है कि किसी तरह वोट का जुगाड़ हो जाए। कमोबेश केंद्र की मोदी सरकार और खुद मेट्रो को इस योजना का पुरजोर विरोध करना चाहिए। हालांकि दिल्ली भाजपा अभी खुलकर विरोध में नहीं आई है। सिर्फ कुछ सवाल उठाए हैं।