गर्मी का पसीना

कहानी

हमारा परिवार दिल्ली शहर में रहता है हर बार की तरह इस बार भी गर्मी की छुट्टियां आने वाली है। हमारे स्कूल के सभी विद्यार्थी अलग-अलग स्थान पर जाने की बात कर रहे है। देखते ही देखते हैं कब छुट्टियों के दिन आ गए पता ही नहीं चला हमने इस बार की छुट्टियों का कोई प्लान नहीं बनाया है। इसलिए मैं और मेरी छोटी बहन अपने दादा-दादी के पास जा रहे हैं, जो कि हमारी पैतृक गांव में रहते है। गांव का रहन-सहन बहुत ही साधारण है यहां का वातावरण शांत ठंडा और भीड़ रही है जिसके कारण हमें यहां पर आना अच्छा लगता है। मेरे दादाजी रोज सुबह उठ कर हमें खेत की शहर कराने जाते हैं वहां पर सुबह ठंडी-ठंडी हवा चलती है चिडि़यों की चह चाहट मन मोह लेती है। किसान फसल को पानी दे रहे होते है गाय भैंस बकरी इधर-उधर चहल कदमी करते रहते है इतना मनमोहक नजारा हमें दिल्ली शहर में तो देखने को ही नहीं मिलता है। खेतों में दादा जी हमें अन्य किसानों से परिचय करवाते है वहां के किसान बहुत अच्छे हैं उन्होंने हमें पानी पिलाया और खेत में से गन्ना ला कर दिया जो कि खाने में बहुत स्वादिष्ट था। दोपहर होने से पहले हम घर आ जाते हैं और स्वादिष्ट भोजन करते हैं साथ ही पीने के लिए दही छाछ और रबड़ी मिलती है जो कि गर्मी को कम कर देती है। शाम को हम दोस्तों के साथ खेलने चले जाते हैं वहां पर हमने प्रकार के खेल खेलते हैं जैसे गिल्ली डंडा, चोर पुलिस, गेंद मार, क्रिकेट इत्यादि खेलते है। खेल खेल में बहुत मजा आता है और शाम तक हम बहुत थक जाते हैं इसलिए वापस घर चले जाते है। शाम को भोजन करने के पश्चात दादा-दादी हमें नई-नई रोचक कहानियां सुनाते हैं साथ ही हमें पुराने जमाने की रोचक बातें भी बताते हैं जैसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है और मजा भी आता है। कभी-कभी दादी हमें मंदिर लेकर जाती है जहां का माहौल एकदम शांत होता है मंदिर की घंटियां मीठी-मीठी धुन सुनाती है। मंदिर के पुजारी जी बहुत अच्छे हैं वह हमें बहुत प्यार करते हैं और नई-नई कहानियां सुनाते है। पुजारी जी ने हमें बताया कि कल मंदिर में बहुत बड़े मेले का आयोजन होने वाला है यह सुनकर तो हम फूले नहीं समा रहे थे। बस फिर क्या था दूसरे दिन का इंतजार था। दूसरे दिन दादा जी ने मुझे कंधे पर बिठाया और मेले की सैर कराने निकल पड़े। मेला बहुत ही सुंदर सजा था कहीं कोई नाच गा रहा है तो कहीं कोई झूल झूल रहा है। मैंने भी दादाजी को बोलकर झूला झूला जिसमें मुझे बहुत आनंद आया फिर वहां पर हमने समोसे खाए जोकि अत्यंत स्वादिष्ट थे। इसके बाद हमने मंदिर में दर्शन किए और वापस आकर दादा जी ने मेरे और मेरी छोटी बहन के लिए कुछ खिलौने खरीदे साथ ही घर के लिए भी कुछ सामान खरीदा इसके बाद हम घर वापस आ गए। यह मेला देखकर मुझे बहुत खुशी हुई और आनंद भी आया। कुछ ही दिनों में मेरे पिताजी और माताजी भी गांव आ गए और हम सब मिलकर एक छोटे पिकनिक पर गए जहां पर मैंने और मेरी छोटी बहन ने खूब मस्ती की हमने वहां पर तरह-तरह के झूले झूले और समुंदर किनारे बैठ कर भोजन किया। समंदर की गीली रेत से छोटे-छोटे घर बनाए इस तरह समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला और फिर हम सब पुनः दिल्ली लौट आए। दिल्ली आने के पश्चात मैंने स्कूल मैं दिया गया कार्य पूर्ण किया। इस तरह मैंने गर्मी की छुट्टियों का भरपूर इस्तेमाल किया। यह छुट्टियां मेरे को हमेशा के लिए यादगार रहेगी।