‘न्यू इंडिया’ का आश्वासन

संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति अभिभाषण के जरिए ‘नए भारत’ के सपने, एजेंडे, लक्ष्य और संकल्प के साथ मोदी सरकार के आश्वासन नई उम्मीद भी जगाते हैं। ‘नए भारत’ की संकल्पना ही बेहद सुखद है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश की आजादी के बाद ‘नए भारत’ का आह्वान किया था। उस आह्वान में भी कई सपने और संकल्प थे कि हमने अपने राष्ट्र को क्या प्रारूप देना है। हमारे संविधान के रचनाकार डा. भीमराव अंबेडकर ने भी ‘नए भारत’ की बात कही थी। उस दौर से आज तक भारत राष्ट्र ने एक लंबा सफर तय किया है। भारत बहुत बदला है। अब भारत दुनियाभर में नई बुलंदियां छू रहा है। अंतरिक्ष में तिरंगे के साथ भारतीय को भेजने के लक्ष्य पर हमारे वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। 2024 तक भारत पांच ट्रिलियन डालर की विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी, यह लक्ष्य तय किया गया है। देश में बुनियादी ढांचे के विराट विस्तार की योजनाओं पर काम जारी है। 2022 तक 35,000 किलोमीटर लंबे राजमार्ग के निर्माण का लक्ष्य है। पहली बार किसी सरकार ने किसानों के लिए 25 लाख करोड़ रुपए खर्च करने तय किए हैं। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी होगी या नहीं, यह सवाल है और एक उम्मीद भी है। राष्ट्रपति ने अब सभी किसानों को 2000 रुपए की सम्मान निधि के दायरे में लाने की घोषणा की है। बेशक देश के जीडीपी में कृषि का योगदान 21 फीसदी से घटकर 13 फीसदी हो गया है, लेकिन आज भी यह सबसे बड़ा क्षेत्र है, जिस पर करीब 60 फीसदी लोग आश्रित हैं। लिहाजा राष्ट्रपति ने 22 बार ‘किसान’ शब्द बोलकर सरकार के फोकस को स्पष्ट किया है। छोटे, फुटपाथ और रेहड़ी के कामगारों के लिए मुद्रा ऋण की संख्या 19 करोड़ बताई गई है और लक्ष्य 30 करोड़ का है। यह योजना देश में स्वरोजगार को ठोस आधार देने के मद्देनजर है। यह सवालिया है कि विरोधी या पूर्वाग्रही इसे रोजगार क्यों नहीं मानते? सरकारी नौकरी ही रोजगार नहीं है और न ही सभी नागरिकों को उपलब्ध कराना संभव है। राष्ट्रपति के जरिए मोदी सरकार ने कबूल किया है कि बेरोजगारी की दर, बीते 45 सालों के दौरान अब सर्वाधिक 6.1 फीसदी रही है। यह चिंताजनक है, क्योंकि ‘न्यू इंडिया’ में युवाओं की सार्थक भागीदारी को यह खंडित करती है। क्या ‘नए भारत’ में हमारी नौजवान पीढ़ी को निराश और ‘खाली हाथ’ देखा जा सकता है? लिहाजा मोदी सरकार का फोकस इस पर भी है। बेशक राष्ट्रपति अभिभाषण एक संसदीय परंपरा है, लेकिन उनके जरिए जो खुलासे किए जाते हैं, जो एजेंडा देश के सामने रखा जाता है, उसके प्रति केंद्र सरकार की पूरी जवाबदेही होती है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने परंपरानुसार संसद के दोनों सदनों के सांसदों को संबोधित कर प्रधानमंत्री मोदी की नई सरकार का पांचसाला ब्लू प्रिंट पेश किया है। सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता राष्ट्रीय सुरक्षा, जल संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और गरीब है। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में 15 बार ‘गरीब’ और 18 बार ‘महिला’ शब्दों को दोहराया है। इनके अलावा, देश के तमाम घरों में शौचालय, 2022 तक हरेक भारतीय को अपनी ‘छत’, बिजली और स्वच्छ ऊर्जा, तीन करोड़ छोटे दुकानदारों को पेंशन, 2020 में गंगा मैया निर्मल और स्वच्छ और तीन तलाक, निकाह-हलाला सरीखी कुरीतियों का खात्मा आदि भी मोदी सरकार की प्राथमिकताएं हैं। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे आश्वासन खूब सुने होंगे, लेकिन संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति अभिभाषण के जरिए उन आश्वासनों को संवैधानिक पुष्टि प्राप्त हुई है। ‘नए भारत’ के संकल्प में कुछ यथार्थ रोड़ा बन सकते हैं या उन्हें असत्य साबित करते लग सकते हैं। राष्ट्रपति अभिभाषण में अनुच्छेद 370 और 35-ए का कोई उल्लेख नहीं है। कश्मीर में विधानसभा चुनाव का भी जिक्र नहीं किया गया है। अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर निर्माण पर भी खामोशी है। आजादी के 72 सालों के बाद भी जीडीपी का मात्र 1.4 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर और करीब 2.5 फीसदी शिक्षा पर खर्च किया जाता है, जबकि यह करीब 5-6 फीसदी जरूर होना चाहिए। मुजफ्फरपुर में जितने बच्चों की मौत हुई है, वह ‘आयुष्मान भारत’ योजना की नाकामी है। उन परिवारों तक इस योजना का लाभ क्यों नहीं पहुंच पाया, जबकि केंद्र और बिहार में एनडीए की ही सरकारें हैं? एक दलित सरपंच और मंदिर में जाने पर एक दलित लड़के की हत्या कर दी गई। यह 200 साल पुरानी ‘अछूतपन’ की तस्वीर है या ‘नए भारत’ की कल्पना है? बहरहाल अभिभाषण के तमाम आंकड़े और ऐलान ही ‘न्यू इंडिया’ नहीं हैं, लेकिन यह तय है कि भारत की तस्वीर बदल रही है। उसमें सरकारी मदद भी मिले, तो हम जल्द ही बुलंदियां छू सकते हैं।