भवाना के क्षेत्र में था बघाट के राजा जन्मीपाल का अधिकार

 राणा नारायण पाल को मार कर भवाना के क्षेत्र पर बघाट के राणा जन्मीपाल का अधिकार हो गया, परंतु बाद में यह क्षेत्र बघाट के हाथ से निकल गया। इसका उल्लेख नहीं मिलता कि किस राणा के समय में यह बघाट के हाथ से छूट गया। एक जन श्रुति है कि मुगल राज परिवार के कुछ सदस्य ग्रीष्म ऋतु बिताने के लिए शिवालिक पहाडि़यों के आंचल में स्थित पिंजौर में आते थे…

 गतांक से आगे …

 राणा नारायण पाल (1585 ई.) ः यह राजा अकबर का समकालीन था। उसके समय में बघाट ठुकराई में खुशहाली के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे। बसंतपाल से 86वां राणा जन्मी पाल, परंतु ऊपर दी गई वंशावली के अनुसार 64वां शासक एक योग्य शासक था। मुगल बादशाह ने उससे प्रसन्न होकर उसे दिल्ली बुलाया और खिल्लत देकर सम्मानित किया। जब वह दिल्ली  वापस आ रहा था तो मार्ग में भवाना (कालका के निकट) के राम ने पुरानी  शत्रुता का बदला लेने के लिए उद्देश्य से उस पर आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में राजा मारा गया और उसकी सेना भाग गई। इसके कारण भावना के क्षेत्र पर बघाट के राणा जन्मीपाल का अधिकार हो गया, परंतु बाद में यह क्षेत्र बघाट के हाथ से निकल गया। इसका उल्लेख नहीं मिलता कि किस राणा के समय में यह बघाट के हाथ से छूट गया।

एक जन श्रुति है कि मुगल राज परिवार के कुछ सदस्य ग्रीष्म ऋतु बिताने के लिए शिवालिक पहाडि़यों के आंचल में स्थित पिंजौर में आते थे। इन पहाड़ी राजाओं को भय होने लगा कि कहीं ये लोग वहां से पहाड़ों में न आ जाएं। इसलिए सावधानी के तौर पर बघाट ने अपने राजगढ़, अजमानगढ़, टकसाल, लखनपुर और थूरू के किले सुदृढ़ किए। साथ ही इन पहाड़ी राजाओं ने उनके पास खिराज और उपहार लेकर ऐसे आदमी पिंजौर भेजे जिनके गले में गलगंड थे। उन्होंने यह भी बात फैला दी कि यहां के पानी से गलगंड का रोग हो जाता है। इस रोग के हो जाने के भय से मुगल राजसी परिवारों ने इस ओर आना छोड़ दिया। मुगलों के पतन के साथ-साथ पंजाब में सिखों की बारह मिसलों की एक बाढ़ सी आ गई। इन मिसलों में प्रत्येक ने अपनी सत्ता कायम रखने के लिए लूट खसोट मचाई। कुछ एक ने सतलुज पार करके पूर्व की ओर बढ़ने का प्रयास किया। इस भाग दौड़ में एक सिंधपुरिया सरदार ने बघाट के घार और टकसाल क्षेत्र हथिया लिए। राणा सारंगधार पाल ने मुकाबला किया, परंतु क्षेत्र हाथ से निकल गया। सारंगधार पाल चुप बैठने वाला नहीं था। कुछ समय के पश्चात उसने सिंधपुरिया सरदारों को वहां से खदेड़ दिया।

रघुनाथ पाल (72वें) के समय हिंदूर राजपरिवार में एक कलह मच गई। इस समय हिंदूर में राजा मान चंद (1756-1761) का राज ा था। मान चंद को उसके चाचा पद्म चंद ने धोखे से मार दिया। पद्म चंद को इसका दंड देने के लिए कहलूर के राजा देवी चंद (1741-1778) ने बघाट के राणा रघुनाथ पाल से सहायता मांगी। इसके कारण पद्म चंद ‘जरजोहरू’ के पास लड़ाई में मारा गया। इसके पश्चात कहलूर के राजा ने विजय सिंह को हिंदूर की गद्दी पर बैठाया। इस घटना को हिंदूर का इतिहास कुछ और प्रकार से प्रस्तुत करता है, जो उस राज्य के इतिहास के अंतर्गत दिया गया है।