स्कूलों में तीन भारतीय भाषाएं सीखेंगे छात्र

तीसरी कक्षा के बाद इच्छुक विद्यार्थियों को विदेशी भाषा सिखाना जरूरी, नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार

शिमला – प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नई शिक्षा नीति-2019 का मसौदा तैयार हो गया है। खास बात यह है कि इस मसौदे में अब सरकारी स्कूलों में भाषा को भी तवज्जो दी गई है। सरकारी स्कूलों में प्री-नर्सरी और पहली क्लास में छात्रों को तीन भारतीय भाषाओं में पढ़ाना होगा। इसके अलावा जो छात्र मातृ भाषा में पढ़ना चाहते हैं, उन्हें उनकी मातृ भाषा में भी पढ़ाया जा सकेगा। दरअसल नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को पढ़ाई का बोझ न डालकर, बल्कि उनकी रुचि के अनुसार उन्हें पढ़ाने पर जोर दिया गया है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की नई शिक्षा नीति के तहत प्री-स्कूल और पहली क्लास में तीन भारतीय भाषाओं में छात्रों को पढ़ाना, तीसरी क्लास के बाद दो और भारतीय भाषाएं लिखाना शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। नई शिक्षा नीति के मसौदे में भारतीय भाषाओं के अलावा विदेशी भाषा में भी छात्रों को पढ़ाए जाने के  बारे में कहा गया है। हालांकि चौथी विदेशी भाषा को उन्हीं छात्रों को पढ़ाया जाएगा, जो छात्र उस भाषा में पाठ पढ़ना चाहते हैं। भारत सरकार ने सरकारी स्कूलों में छात्रों को हर वह भाषा सिखाने का टारगेट तय किया है, जो निजी व कॉन्वेंट स्कूलों में छात्रों को पढ़ाई जाती है। दो साल में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की टीम ने नई शिक्षा नीति के नियमों को तैयार किया है। अहम यह है कि नई शिक्षा नीति में अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन के साथ पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना का शामिल करना, शिक्षा का अधिकार 2009 को विस्तृत करने की सिफारिश की गई है। जानकारी के अनुसार प्री नर्सरी के छात्रों को भी शिक्षा का अधिकार 2009 में शामिल करने की सिफारिश की गई है। प्री-नर्सरी के छात्रों को भी आरटीई के नियमों में शामिल कर वे सारी सुविधाएं दी जाएंगी, जो अन्य छात्रों को दी जाती हैं। सरकारी स्कूलों में नई शिक्षा नीति के तहत प्री-नर्सरी के छात्रों को भी कक्षाओं में भाषाओं का ज्ञान देना शुरू कर दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद शिक्षकों पर भी एमएचआरडी की सीधी नजर रहेगी कि वे स्कूलों में छात्रों को किस भाषा में पढ़ा रहे हैं, वहीं क्या शिक्षक भी छात्रों को पाठ समझाने में सफल हो रहे है या नहीं।

क्षेत्रीय भाषा का भी मिलेगा ज्ञान

एमएचआरडी से मिली जानकारी के अनुसार छात्रों को कक्षाओं में पहले उनके क्षेत्र की भाषा को भी सिखाया जाएगा, ताकि वह अपनी भाषा के बोलचाल को आसानी से बोल व समझ सकें। एमएचआरडी ने इसी वजह से भारत की चार भाषाओं को कक्षाओं में इस्तेमाल करने की सिफारिश की है, ताकि छात्र अपनी संस्कृति व अपनी परंपराओं से भी न भाग पाएं।