हिंसा-त्याग का संदेश देती है महेश नवमी

महेश नवमी ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। यह नवमी माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का दिन है। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान स्वरूप मानी गई है। महेश नवमी ‘माहेश्वरी धर्म’ में विश्वास करने वाले लोगों का प्रमुख त्योहार है। इस पावन पर्व को धूमधाम से मनाना प्रत्येक माहेश्वरी का कर्त्तव्य है और समाज उत्थान व एकता के लिए अत्यंत आवश्यक भी है। ‘महेश’ स्वरूप में आराध्य ‘शिव’ पृथ्वी से भी ऊपर कोमल कमल पुष्प पर बेलपत्ती, त्रिपुंड्र, त्रिशूल, डमरू के साथ लिंग रूप में शोभायमान होते हैं। भगवान शिव के इस बोध चिह्न के प्रत्येक प्रतीक का अपना महत्त्व होता है।

माहेश्वरी समाज की उत्त्पत्ति

ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को महेश नवमी या महेश जयंती का उत्सव माहेश्वरी समाज द्वारा मनाया जाता है। यह उत्सव महेश यानि शिव और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है। महेश यानि शंकर, जो त्रिदेवों-ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से एक हैं। ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के नवें दिन भगवान शंकर की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी।

शिव की कृपा

धर्मग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज पूर्वकाल में क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वह ऋषियों के श्राप से ग्रसित हुए। किंतु इस दिन भगवान शंकर ने अपनी कृपा से उन्हें श्राप से मुक्त कर न केवल पूर्वजों की रक्षा की, बल्कि इस समाज को अपना नाम भी दिया। इसलिए यह समुदाय ‘माहेश्वरी’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शंकर की आज्ञा से ही इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य या व्यापारिक कार्य को अपनाया। इसलिए आज भी माहेश्वरी समाज वैश्य या व्यापारिक समुदाय के रूप में पहचाना जाता है।

धार्मिक महत्त्व

माहेश्वरी समाज के लिए यह दिन बहुत धार्मिक महत्त्व का होता है। इस उत्सव की तैयारी करीब तीन दिन पूर्व ही शुरू हो जाती है, जिनमें धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन उमंग और उत्साह के साथ होता है। ‘जय महेश’ के जयकारों की गूंज के साथ चल समारोह निकाले जाते हैं। महेश नवमी के दिन भगवान शंकर और पार्वती की विशेष आराधना की जाती है। समस्त माहेश्वरी समाज इस दिन भगवान शंकर और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रकट करता है। जगत् कल्याण करने वाले भगवान शंकर ने जिस तरह क्षत्रिय राजपूतों को शिकार छोड़कर व्यापार या वैश्य कर्म अपनाने की आज्ञा दी, यानि हिंसा को छोड़कर अहिंसा के साथ कर्म का मार्ग बताया, इससे महेश नवमी का यह उत्सव यही संदेश देता है कि मानव को यथासंभव हर प्रकार की हिंसा का त्याग कर जगत् कल्याण, परोपकार और स्वार्थ से परे होकर कर्म करना चाहिए।