किसी अजूबे से कम नहीं हैं

महाभारत के पात्र

कर्ण कभी भी शकुनी की पांडवों को छल-कपट से हराने की योजनाओं से सहमत नहीं था। वह सदा ही युद्ध के पक्ष में था और सदैव ही दुर्योधन से युद्ध का ही मार्ग चुनने का आग्रह करता। यद्यपि वह दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए द्यूत क्रीड़ा के खेल में सम्मिलित हुआ जो बाद में कुख्यात द्रौपदी चीरहरण की घटना में फलीभूत हुआ। जब शकुनी छल-कपट द्वारा द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर से सब कुछ जीत गया तो पांडवों की पटरानी द्रौपदी को दुःशासन द्वारा घसीट कर राजसभा में लाया गया और कर्ण के उकसाने पर, दुर्योधन और उसके भाइयों ने द्रौपदी के वस्त्र हरण का प्रयास किया। कर्ण द्रौपदी का अपमान यह कहकर करता है कि जिस स्त्री का एक से अधिक पति हो, वह और कुछ नहीं बल्कि वेश्या होती है…

-गतांक से आगे…

द्यूत क्रीड़ा

कर्ण कभी भी शकुनी की पांडवों को छल-कपट से हराने की योजनाओं से सहमत नहीं था। वह सदा ही युद्ध के पक्ष में था और सदैव ही दुर्योधन से युद्ध का ही मार्ग चुनने का आग्रह करता। यद्यपि वह दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए द्यूत क्रीड़ा के खेल में सम्मिलित हुआ जो बाद में कुख्यात द्रौपदी चीरहरण की घटना में फलीभूत हुआ। जब शकुनी छल-कपट द्वारा द्यूत क्रीड़ा में युधिष्ठिर से सब कुछ जीत गया तो पांडवों की पटरानी द्रौपदी को दुःशासन द्वारा घसीट कर राजसभा में लाया गया और कर्ण के उकसाने पर, दुर्योधन और उसके भाइयों ने द्रौपदी के वस्त्र हरण का प्रयास किया। कर्ण द्रौपदी का अपमान यह कहकर करता है कि जिस स्त्री का एक से अधिक पति हो, वह और कुछ नहीं बल्कि वेश्या होती है। उसी स्थान पर भीम द्वारा यह प्रतिज्ञा ली जाती है कि वह अकेले ही युद्ध में दुर्योधन और उसके सभी भाइयों का वध करेगा। और फिर अर्जुन, कर्ण का वध करने की प्रतिज्ञा लेता है।

सैन्य अभियान

पांडवों के वनवास के दौरान कर्ण, दुर्योधन को पृथ्वी का सम्राट बनाने का कार्य अपने हाथों में लेता है। कर्ण द्वारा देशभर में सैन्य अभियान छेड़े गए और उसने राजाओं को परास्त कर उनसे ये वचन लिए कि वह हस्तिनापुर महाराज दुर्योधन के प्रति निष्ठावान रहेंगे अन्यथा युद्धों में मारे जाएंगे। कर्ण सभी लड़ाइयों में सफल रहा। महाभारत में वर्णन किया गया है कि अपने सैन्य अभियानों में कर्ण ने कई युद्ध छेड़े और असंख्य राज्यों और साम्राज्यों को आज्ञापालन के लिए विवश कर दिया जिनमें हैं कंबोज, शक, केकय, अवंतय, गंधार, माद्र, त्रिगर्त, तंगन, पांचाल, विदेह, सुह्मस, अंग, वांग, निशाद, कलिंग, वत्स, अशमक, ऋषिक और बहुत से अन्य जिनमें म्लेच्छ और वनवासी लोग भी हैं।

श्रीकृष्ण और कर्ण

दुर्योधन के साथ शांति वार्ता के विफल होने के पश्चात श्रीकृष्ण, कर्ण के पास जाते हैं जो दुर्योधन का सर्वश्रेष्ठ योद्धा है। वह कर्ण का वास्तविक परिचय उसे बताते हैं कि वह सबसे ज्येष्ठ पांडव है और उसे पांडवों की ओर आने का परामर्श देते हैं। कृष्ण उसे यह विश्वास दिलाते हैं कि चूंकि वह सबसे ज्येष्ठ पांडव है, इसलिए युधिष्ठिर उसके लिए राजसिंहासन छोड़ देंगे और वह एक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। पर कर्ण इन सबके बाद भी पांडव पक्ष में युद्ध करने से मना कर देता है क्योंकि वह अपने आप को दुर्योधन का ऋणी समझता था और उसे ये वचन दे चुका था कि वह मरते दम तक दुर्योधन के पक्ष में ही युद्ध करेगा। वह कृष्ण को यह भी कहता है कि जब तक वे पांडवों के पक्ष में हैं जो कि सत्य के पक्ष में हैं, तब तक उसकी हार भी निश्चित है। तब कृष्ण कुछ उदास हो जाते हैं, लेकिन कर्ण की निष्ठा और मित्रता की प्रशंसा करते हैं और उसका यह निर्णय स्वीकार करते हैं और उसे ये वचन देते हैं कि उसकी मृत्यु तक वह उसकी वास्तविक पहचान गुप्त रखेंगे।

कवच-कुंडल की क्षति

देवराज इंद्र को इस बात का ज्ञान होता है कि कर्ण युद्धक्षेत्र में तब तक अपराजेय और अमर रहेगा जब तक उसके पास उसके कवच और कुंडल रहेंगे, जो जन्म से ही उसके शरीर पर थे। इसलिए जब कुरुक्षेत्र का युद्ध आसन्न था, तब इंद्र ने यह ठानी कि वह कवच और कुंडल के साथ तो कर्ण को युद्धक्षेत्र में नहीं जाने देंगे।