किसी अजूबे से कम नहीं हैं

महाभारत के पात्र

उन्होंने यह योजना बनाई कि वह मध्याह्न में जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा होता है, तब वह एक भिक्षुक बनकर उससे उसके कवच-कुंडल मांग लेंगे। सूर्यदेव इंद्र की इस योजना के प्रति कर्ण को सावधान भी करते हैं, लेकिन वह उन्हें धन्यवाद देकर कहता है कि उस समय यदि कोई उससे उसके प्राण भी मांग ले तो वह मना नहीं करेगा। तब सूर्यदेव कहते हैं कि यदि वह स्ववचनबद्ध है तो वह इंद्र से उनका अमोघास्त्र मांग ले। तब अपनी योजनानुसार इंद्रदेव एक भिक्षुक का भेष बनाकर कर्ण से उसका कवच और कुंडल मांग लेते हैं। चेताए जाने के बाद भी कर्ण मना नहीं करता और हर्षपूर्वक अपना कवच-कुंडल दान कर देता है…

-गतांक से आगे…

उन्होंने यह योजना बनाई कि वह मध्याह्न में जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा होता है, तब वह एक भिक्षुक बनकर उससे उसके कवच-कुंडल मांग लेंगे। सूर्यदेव इंद्र की इस योजना के प्रति कर्ण को सावधान भी करते हैं, लेकिन वह उन्हें धन्यवाद देकर कहता है कि उस समय यदि कोई उससे उसके प्राण भी मांग ले तो वह मना नहीं करेगा। तब सूर्यदेव कहते हैं कि यदि वह स्ववचनबद्ध है तो वह इंद्र से उनका अमोघास्त्र मांग ले। तब अपनी योजनानुसार इंद्रदेव एक भिक्षुक का भेष बनाकर कर्ण से उसका कवच और कुंडल मांग लेते हैं। चेताए जाने के बाद भी कर्ण मना नहीं करता और हर्षपूर्वक अपना कवच-कुंडल दान कर देता है। तब कर्ण की इस दानप्रियता पर प्रसन्न होकर वह उसे कुछ मांग लेने के लिए कहते हैं, लेकिन कर्ण यह कहते हुए कि ‘दान देने के बाद कुछ मांग लेना दान की गरिमा के विरुद्ध है’, मना कर देता है। तब इंद्र उसे अपना शक्तिशाली अस्त्र वासवी प्रदान करते हैं जिसका प्रयोग वह केवल एक बार ही कर सकता था। इसके बाद से कर्ण का एक और नाम वैकर्तन पड़ा क्योंकि उसने बिना संकुचित हुए अपने शरीर से अपने कवच-कुंडल काट कर दान दे दिए।                                          

कुंती और कर्ण

जब महाभारत का युद्ध निकट था, तब माता कुंती, कर्ण से भेंट करने गई और उसे उसकी वास्तविक पहचान का ज्ञान कराया। वह उसे बताती हैं कि वह उनका पुत्र है और ज्येष्ठ पांडव है। वह उससे कहती हैं कि वह स्वयं को कौंतेय (कुंती पुत्र) कहे, न कि राधेय (राधा पुत्र)। तब कर्ण उत्तर देता है कि वह चाहता है कि सारा संसार उसे राधेय के नाम से जाने, न कि कौंतेय के नाम से। कुंती उसे कहती हैं कि वह पांडवों की ओर हो जाए और वह उसे राजा बनाएंगे। तब कर्ण कहता है कि बहुत वर्ष पूर्व उस रंगभूमि में यदि उन्होंने उसे कौंतेय कहा होता तो आज स्थिति बहुत भिन्न होती। पर अब किसी भी परिवर्तन के लिए बहुत देर हो चुकी है और अब यह संभव नहीं है। वह आगे कहता है कि दुर्योधन उसका मित्र है, उस पर बहुत विश्वास करता है और वह उसके विश्वास को धोखा नहीं दे सकता। लेकिन वह माता कुंती को यह वचन देता है कि वह अर्जुन के अतिरिक्त किसी और पांडव का वध नहीं करेगा। कर्ण और अर्जुन दोनों ने ही एक-दूसरे का वध करने का प्रण लिया होता है और इसलिए दोनों में से किसी एक की मृत्यु तो निश्चित है। वह कहता है कि उनके कोई भी पांच पुत्र जीवित रहेंगे, चार अन्य पांडव और उसमें या अर्जुन में से कोई एक। कर्ण अपनी माता से निवेदन करता है कि वह उनके संबंध और उसके जन्म की बात को उसकी मृत्यु तक रहस्य रखे। कुंती, कर्ण से एक और वचन मांगती है कि वह नागास्त्र का उपयोग केवल एक बार करे। कर्ण यह वचन भी कुंती को देता है। परिणामस्वरूप बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण एक बार से अधिक नागास्त्र का प्रयोग नहीं कर पाता।

महाभारत का युद्ध

महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पूर्व भीष्म ने, जो कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे, कर्ण को अपने नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में भागीदारी करने से मना कर दिया। यद्यपि दुर्योधन उनसे निवेदन करता है, लेकिन वे नहीं मानते। और फिर कर्ण दसवें दिन उनके घायल होने के पश्चात ग्यारहवें दिन ही युद्धभूमि में आ पाता है।