क्रिकेट रूप और विज्ञापनी लीला

रामविलास जांगिड़

स्वतंत्र लेखक

अर्जुन अपने बल्ले को निराशा में लटकाए क्रिकेट पिच के बीचोंबीच पैड बांधे, ग्लव्ज पहने श्री कृष्ण से 10वां चैप्टर पढ़ता है, किंतु खाली शब्दों की कमेंट्री से अर्जुन को मजा नहीं आता है। अर्जुन पिच के बीचोंबीच अपने हेलमेट को श्रीकृष्ण के एडीडासी जूतों में रखकर कहता है- हे मैच फिक्सर! हे सुपर सेल्समेनेजरेश्वर! मैं आपका क्रिकेट तत्त्व रहस्य सुन चुका हूं। आपने विस्तार से वर्णन किया है, किंतु प्लीज! आपका दिव्य क्रिकेट रूप लाइव टेलीकास्ट करो। हे सखा हैट्रिक मैना! आप बीच-बीच में स्लो मोशन में अपना एक्शन री-प्ले भी करो, ताकि मैं अपनी नजरों से आपके दर्शन कर इस पिच पर रन बनाने का करतब दिखा सकूं। मुझे आपके क्रिकेटमयी अविनाशी स्वरूप का दर्शन करा दीजिए, ताकि मैं शानदार चौका जड़ सकूं। ऐसा कहकर अर्जुन ने पिच पर ढेर सारा थूक उगल कर गले में बंधे ताबीज को चूम लिया। इस पर श्री कृष्ण ने अपना हैट ठीक करते हुए कहा- हे अर्जुन! भक्त में जिज्ञासा हो, तो भगवान उसका जवाब देते हैं। मेरे क्रिकेट रूप और मेरी विज्ञापनी लीला का कोई पार नहीं है। यह अरबों-खरबों और सब धर्मों से भी अधिक परे है, परंतु तुझे तेरी अखियों से ये सब स्पष्ट दिखाई नहीं देगा। तेरी आंखें सदा मैच से पहले व मैच के बाद गोली मारने के ही काम आती हैं। तूने हमेशा अखियों से गोली मारने का कार्य मात्र किया है, क्योंकि मैं नियम से तुम्हें गीता विषय के 11वें चैप्टर की ट्यूशन पढ़ा रहा हूं। तुझे मेरा अविनाशी क्रिकेट रूपा-स्वरूपा देखना है। अतएव ये आंखें मुझे दे दो अर्जुन! कहकर श्री कृष्ण अर्जुन की आंखें निकाल लेते हैं। अर्जुन इस समय रोता है, गिड़गिड़ाता है, मगर श्री कृष्ण अच्छे डाक्टर की हैसियत से अर्जुन का रोना-बिलखना भी नहीं सुनते हैं। वे अर्जुन को खुद की एक जोड़ी आंख अपने पेंट की पिछली जेब से निकाल कर दे देते हैं। इन्हीं विशिष्ट आंखों की मदद से अर्जुन देखते हैं कि ये क्रिकेट व्यापार, राजनीति, धर्म, अर्थ, काम,  मोक्ष आदि से भरपूर है। यह खेल के अलावा सब कुछ है। खेल बस छलावा है और बाकी सब कुछ भुलावा है। यह मात्र विज्ञापनों का बुलावा है। आम आदमी के लिए ठलवा-ठुलावा है।